Friday - 25 October 2024 - 9:52 PM

तो क्‍या सूर्य यान वाकई लैंड कर गया

सुरेंद्र दुबे

शिवसेना नेता संजय राउत अंतत: शिवसेना अध्‍यक्ष उद्धव ठाकरे को मुख्‍यमंत्री बनवाने में सफल रहे। चुनाव परिणाम आने के बाद से ही संजय राउत ने शिवसेना का ही मुख्‍यमंत्री बनवाने की रट लगाना शुरू कर दी थी। तब उनकी बात पर बहुत विश्‍वास करने का मन नहीं हो रहा था। पर अब जब उद्धव ठाकरे मुख्‍यमंत्री हो ही गए हैं तो उनकी एक बात याद करने का मन हो रहा है।

उनका दावा था कि सूर्य यान महाराष्‍ट्र विधानमंडल पर लैंड होकर रहेगा और अब लैंड हो गया है। अब इस सूर्य यान की असली धमक तब पता चलेगी जब इसकी रोशनी दिल्‍ली तक पहुंचेगी। तो एक और यान की चर्चा कर लेते हैं जो आज ही प्रक्षेपित हुआ है। परंतु बदली राजनैतिक परिस्थितियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईवेंट मैनेजमेंट कला से महरुम है।

ईसरों ने आज मिलिट्री सैटेलाइट कार्टोसैट-3 प्रक्षेपित किया, जो डिफेंस के लिहाज से बहुत ही महत्‍वपूर्ण है। कार्टोसैट-3 सैटेलाइट पीएसएलवी-सी 47 (PSLV-C47) रॉकेट से छोड़ा गया। कार्टोसैट-3 के साथ अमेरिका के 13 नैनो सैटलाइट्स PSLV c47 से लॉन्च कर दिए गए। ये सैटेलाइट्स कॉमर्शियल उपयोग के लिए हैं। कार्टोसैट-3 पृथ्वी से 509 किलोमीटर की ऊंचाई पर चक्कर लगाएगा।

अगर महाराष्‍ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चारों खाने चित न हुए होते तो इस यान का पूरे देश के सामने बखान करते हुए अपनी पीठ थपथपा रहे होते और मोदी भक्‍त ऐसे मोदी-मोदी कर रहे होते जैसे यान मोदी ने ही बनाया है। ये अफसोस की भी बात है कि जिस यान के प्रक्षेपण के लिए इसरो वैज्ञानिकों के सम्‍मान में बैंड बाजे बजाये जाने चाहिए थे, बदले राजनैतिक परिदृश्‍य में सब सूने-सूने ही निपट गया।

चलिए फिर सूर्य यान पर आते हैं, जिसके सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की चाणक्‍यगिरी परास्‍त हो गई। सूर्य यान के असली प्रक्षेपक एनसीपी नेता शरद पवार ने कुछ ऐसा करतब कर दिखाया, जिससे सत्‍ता पक्ष के साथ ही विपक्ष भी हतप्रभ है। पवार के भतीजे अजित पवार ने एक दांव के तहत पहले भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस की सरकार बनवाई और तीन दिन बाद खुद उपमुख्‍यमंत्री पद से इस्‍तीफा देकर सरकार गिरवा दी।

अजित पवार फिर अपने चाचा शरद पवार के पास लौट आएं हैं। अजित पवार ने तीन दिन में ही अपने खिलाफ चल रहे सिंचाई घोटाले के नौ मामले रफा दफा करवा लिए। अब तो सरकार उनके चाचा की ही बनने वाली है, जिसमें वह स्‍वयं भी मंत्री हो सकते हैं। इसलिए बाकी मामले भी आगे पीछे निपट ही जाएंगे।

 

महाराष्‍ट्र में बीजेपी की करारी हार एक प्रदेश में ही सरकार न बन पाने का ही दर्द नहीं है, ये दर्द अगर ज्‍यादा बढ़ा तो इसकी चीखें अन्‍य राज्‍यों में भी सुनाई देंगी। हो सकता है केंद्र सरकार के पेट में दर्द शुरू भी हो गया है। साढ़े पांच साल में यह पहला अवसर आया है जब महाराष्‍ट्र के दो दिग्‍गज नेताओं शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने ऐसी स्थिति उत्‍पन्‍न कर दी है, जहां कहा जा सकता है कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे।

मुंबई धन्‍नासेठों की नगरी है, जिन्‍हें आधुनिक भाषा में कॉर्पोरेट घराने कहा जाता है। इन धन्‍नासेठों पर कई दशकों से शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का दबदबा था। राजनीति के लिए पूरे देश में ज्‍यादातर थैलियां यहीं से भेजी जाती हैं। भाजपा ने इन धन्‍ना सेठों को अपने कब्‍जे में ले लिया था, जिससे अन्‍य राजनैतिक दल अपने आप को काफी गरीब महसूस कर रहे थे।

भारतीय राजनीति में सिद्धांत और शुचिता अब गए जमाने की बातें हो गई हैं। राजनीति करनी है तो अथाह पैसा चाहिए, जिसकी मुंबई में भरमार है। महाराष्‍ट्र का विपक्षी गठबंधन पूरे देश में एकजुट होने का संकेत दे सकता है। भाजपा या यूं कहें कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की स्‍वेच्‍छाचारिता से न केवल विपक्षी दल बल्कि गिरती अर्थव्‍यवस्‍था से जूझ रहा आम आदमी भी त्रस्‍त है। देखना होगा कि पूरे देश में राजनैतिक संकट से जूझ रही पार्टियां महाराष्‍ट्र मॉडल से कोई सबक लेती हैं या नहीं।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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