Sunday - 17 November 2024 - 4:23 AM

राजनीति का सबसे बड़ा संकटमोचक आज स्वयं संकट में

न्‍यूज डेस्‍क

नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार आज यानी शुक्रवार को बैलार्ड एस्टेट स्थित प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर में पेश होंगे। शरद पवार ने अपने समर्थकों से अपील की है कि वे ईडी के दफ्तर के सामने न जुटें। हालांकि उनके पोते रोहित पवार ने पार्टी कार्यकर्ताओं से पेश के दिन मुंबई में जुटने की अपील की है जिससे शुक्रवार को शरद पवार की पेश के दौरान हंगामे के आसार हैं।

उधर, शरद पवार ने कहा कि हम संविधान का आदर करने वाले लोग हैं, इसलिए पुलिस और अन्य सरकारी एजेंसियों के साथ जांच में सहयोग करें। इसलिए किसी भी तरह का ऐसा कोई काम न करें, जिससे लोगों को दिक्कत हो। उन्‍होंने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए कहा है कि वे जेल जाने को तैयार हैं पर दिल्ली की सत्ता के सामने सिर नहीं झुकाएंगे।

पवार ने एक के बाद एक करके तीन ट्वीट किए और अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं से अपील की कि वो कुछ भी ऐसा न करें जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़े। उन्होंने कहा, ‘मैं कल यानी शुक्रवार को दोपहर दो बजे मुबई के बलार्ड एस्टेट स्थित ईडी कार्यालय जाउंगा।’

इस बारे में जब वरिष्‍ठ पत्रकार ओम दत्‍त से पूछा गया तो उन्‍होंने कहा कि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार दोबारा बनने के बाद से शुरू हुआ विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने का सिलसिला जारी है। कांग्रेस नेता पी चिदंबरम, डीके शिवकुमार, समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान पर सरकारी एजेंसियां शिकंजा कस चुकी हैं और चिदंबरम और शिवकुमार तो जेल भी पहुंचाए जा चुके हैं। अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार बीजेपी के निशाने पर हैं।

गौरतलब है कि शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया है। उनके साथ 70 लोगों को आरोपी बनाया गया है। कमाल की बात यह है कि जिस महाराष्ट्र राज्य कोऑपरेटिव बैंक में यह 25 हजार करोड़ का घोटाला बताया जाता है, बकौल शरद पवार वे उसके न तो सदस्य हैं और न ही उसकी निर्णय प्रक्रिया में किसी तरह से शामिल हैं। लेकिन, अब उनके खिलाफ एक कानूनी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और इस प्रकरण में उन्हें कई साल तक उलझे रहना पड़ सकता है।

मराठा क्षत्रप शरद पवार, सियासत का एक ऐसा नाम जिसे राजनीति का सबसे बड़ा संकटमोचक कहा जाता है। पवार को न तो सत्ता के लिए झुकने से गुरेज रहा और न ही विरोधी के सत्ता में रहने पर उसका भी समर्थन कर जाने से। सत्ता चाहे जिसकी भी रही, पवार की हनक कभी कम नहीं हुई। लेकिन अब परिस्थितियों ने ऐसी करवट ली, कि राजनीति का सबसे बड़ा संकटमोचक आज स्वयं संकट में है।

पवार ने कहा था कि वह शिवाजी के आदर्शों पर चलते हैं और दिल्ली की ताकत के आगे झुकना नहीं सीखा। पवार ने चुनावी मौसम में कड़ा बयान तो दे दिया, लेकिन वह चौतरफा संकट से घिरे हैं। 1976 से 2014 तक लगातार संसद में पांव जमाए रखने वाले पवार की पार्टी भी महाराष्ट्र की सियासत में अपना वजूद बचाए रखने की जद्दोजहद में जुटी है।

ऐसे समय में जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है, प्रदेश में सियासी सरगर्मी पूरे उफान पर है, मतदान में एक माह से भी कम समय शेष बचा है, कोऑपरेटिव बैंक घोटाले की जांच की आंच का शरद पवार तक पहुंचना न केवल उनके, बल्कि पार्टी के लिए भी खतरे का संकेत है. शरद पवार कई मौकों पर दिल्ली की सरकारों के संकटमोचक के रूप में सामने आए हैं, लेकिन अभी वह खुद संकटों से घिरते नजर आ रहे हैं।

आपको बता दें कि शरद पवार ने सोनिया गांधी को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के बाद उनके विदेशी मूल को मुद्दा बनाकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई और 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन वाली डॉक्टर मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री भी रहे। 2004 से 2014 के दौरान मनमोहन सरकार कुछ मौकों पर संकटों से घिरी और इस दौरान पवार जैसे दिग्गज की भूमिका अहम मानी जाती है।

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जब कांग्रेस के नेता भी उससे मुंह मोड़ने लगे, पवार की पार्टी ने कांग्रेस से किनारा नहीं किया। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले तक वह विपक्षी एकजुटता और महागठबंधन के लिए प्रयास करते रहे। हालांकि पवार के प्रयास राष्ट्रीय क्या महाराष्ट्र में भी रंग नहीं ला सके और भाजपा ने जबरदस्त जीत हासिल की।

जब कांग्रेस सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी पर हमलावर थी, शरद पवार ने राफेल के मुद्दे पर मोदी सरकार के प्रति सॉफ्ट रुख अपनाया। बीएमसी चुनाव के समय जब भाजपा और शिवसेना अलग-अलग मैदान में थे, तब भी पवार ने भाजपा के समर्थन की मन्शा प्रकट की थी। हाल ही में एक राज्यसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में भी पवार ने कांग्रेस का समर्थन करने से इनकार कर दिया था।

एनसीपी के इन सभी कदमों को पवार द्वारा मोदी सरकार को संदेश माना जा रहा था, लेकिन मराठा क्षत्रप का यह दांव भी काम न आया और अब ऐन चुनाव के समय सामने आए कोऑपरेटिव घोटाले के जिन्न ने महाराष्ट्र का सियासी तापमान बढ़ा दिया है।

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