शबाहत हुसैन विजेता
सियासत में चमक है, पॉवर है, तरक्की का फ्यूल है, यह घर है, आँगन है, स्कूल है। सब कुछ इसी के चारों तरफ घूमता है। सियासत के गलियारे में जो भी फिट हो जाता है वह कहीं भी मिसफिट नहीं होता, उसका कोई काम कहीं नहीं रुकता। सियासी आदमी जहाँ खड़ा हो जाता है लाइन वहीं से शुरू होती है। सियासत हर मुद्दे पर भारी है बावजूद इसके सियासत मेरे लिए हमेशा से एक अबूझ पहेली की तरह रही है।
सियासत का स्टूडेंट मैं शुरू से ही हूँ। जब से होश संभाला तब से इसका ककहरा पढ़ रहा हूँ। इसे समझने की कोशिश में जुटा हूँ। सियासत में किसी मुकाम की तलाश में हूँ। मैं सियासत की बारीकियां सिखाने के लिये एक इन्स्टीट्यूट की ज़रूरत बड़ी शिद्दत से महसूस करता हूँ।
मुझे लगता है कि अगर सियासत को सीखने के लिये कोई स्कूल हो तो वहां पर रहकर सियासत के वह सबक पढ़े जा सकते हैं जो हुकूमत की तरफ ले जाते हैं। कभी मौका मिला और सियासत के हर पहलू को सिखाने वाले स्कूल को खोलने का मौका मुहैया हुआ तो कुछ ही सालों में इस स्कूल को यूनीवर्सिटी के लेबिल तक ले जाऊंगा।
यूनिवर्सिटी का पूरा खाका ज़ेहन में तैयार है। वाइस चांसलर भी तय कर चुका हूँ। गुजरात वाले डॉ. शाह को वाइस चांसलर की बागडोर सौंपकर आराम की नींद सो जाऊँगा और यूनिवर्सिटी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की में लग जायेगी।
स्कूल और यूनिवर्सिटी यूं भी बड़े फायदे के बिजनेस हैं। यह बात वक्त ने साबित कर भी दी है। जिसके पास थोडा भी पैसा आ जाता है वह स्कूल में इन्वेस्ट करना पसंद करता है लेकिन आज तक मेडिकल, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के स्कूल खोलने वालों के दिमाग में यह नहीं आया कि सियासत सिखाने वाली यूनिवर्सिटी भी इस मुल्क में कितनी ज़रूरी है।
ऐसी यूनीवर्सिटी जिसमें पढ़ने के बाद बेरोज़गार न रहने की गारंटी भी साथ जुड़ जाए। सारी ज़िन्दगी के लिये पेंशन का इंतजाम हो जाये तो सिर्फ इस मुल्क के नहीं बल्कि अमरीका और चीन के स्टूडेंट भी यहाँ पढ़ने आने लगेंगे। जिस यूनीवर्सिटी का वाइस चांसलर गुजरात वाले डॉ. शाह होंगे वहां कामयाबी अपने आप चलकर आयेगी।
गुजरात वाले डॉ. शाह की डिग्रियों पर बात मत करना। यह सवाल मत उठाना कि उन्होंने सियासत कहाँ से सीखी। उनका सिर्फ काम करने का तरीका देखो। सियासत में हुकूमत कैसे बनाई जाती है इसका सलीका सीखो। जम्मू-कश्मीर से लेकर गोवा तक, कर्नाटक से लेकर महाराष्ट्र तक कहीं भी हुकूमत बनानी हो डॉ. शाह कभी फेल नहीं होते हैं। अगर उन्होंने कह दिया है कि हम सरकार बना रहे हैं तो इसे पत्थर की लकीर मान लो। डॉ। शाह ने साबित किया है कि सीटों का गणित और हुकूमत का गणित अलग-अलग चीज़ें हैं। सीटें कम हैं तो वह मैनेज हो सकती हैं।
उन्होंने बार-बार यह बताया है कि सियासत में कोई भी परमानेंट दोस्त और दुश्मन नहीं होता है। दुशमन को बताना पड़ता है कि ईडी क्या होती है। दुश्मन को समझाना पड़ता है की सीबीआई क्या होती है।
दुश्मन को पुलिस की पॉवर बतानी पड़ती है। जिस दिन सामने वाला यह समझ लेता है कि अगर कंधे पर डॉ. शाह का हाथ है तो राजभवन से लेकर राष्ट्रपति भवन तक उसी की ज़बान में बात करते नज़र आने लगते हैं, उसी दिन वह शख्स डॉ. शाह की गोद में बैठना पसंद करने लगता है।
डॉ. शाह के पास तमाम बीमारियों को जड़ से खत्म करने का फार्मूला है। उन्हें सियासत से जुड़ी बीमारियों की इतनी गहरी समझ है कि वह यह बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि किसे किस पॉवर की दवा देनी है।
दवा फ़ौरन देनी है या फिर कुछ दिन इंतज़ार करना है। डॉ. शाह की दवा खाने के बाद सियासी खिलाड़ी पर फ़ौरन असर होने लगता है और वह डॉ. शाह के मन मुताबिक़ काम करने लगता है, बयान देने लगता है।
सियासत का डाक्टर बनने के बाद डॉ. शाह ने अपने इस बेशकीमती फार्मूले का सबसे पहले खुद पर इस्तेमाल किया था। एक दौर था कि उनके सूबे की पुलिस उनसे नाराज़ थी। पुलिस नाराज़ थी तो अदालत भी नाराज़ हो गई। दोनों ने मिलकर उन्हें सूबे से निकल जाने को कहा, फिर कभी लौटकर न आने की ताकीद की। डॉ. शाह ने तय किया कि यही पुलिस मुझे सैल्यूट करेगी। न सिर्फ इस सूबे कि बल्कि पूरे मुल्क की पुलिस अपनी बागडोर मेरे हाथ में सौंप देगी। वक्त ने करवट बदली। डॉ. शाह को पूरे मुल्क की पुलिस की बागडोर मिल गई। अब पुलिस को डॉ. शाह की बताई राह पर चलना पड़ता है।
खुद पर यह प्रयोग पूरी तरह से सफल होने के पहले ही डॉ. शाह ने सियासत को हुकूमत की तरफ मोड़ने का फार्मूला भी तैयार कर लिया था। मौजूदा दौर में तो वह मुल्क में अकेले ऐसे डाक्टर हैं जो सीटें कितनी भी कम हों लेकिन हुकूमत बनवा देने के माहिर हैं। सीटों का गणित उन्हें इतनी अच्छी तरह से आता है कि सामने वाला कितना भी होशियार खिलाड़ी हो लेकिन वह इनके सामने पूरी तरह से चित्त हो जाता है।
इनकी बनाई हुकूमत चलती भी रहती है। सीटें कम होती हैं तो बीच-बीच में इलाज का तरीका बदलता रहता है। कभी-कभी दवाएं भी बदलनी पड़ती हैं लेकिन आखीर में मरीज़ खुद यह कहता है कि डॉ. हो तो डॉ. शाह जैसा ही हो।
हालात पुरसुकून हैं। यूनिवर्सिटी का खाका पूरी तरह से तैयार है। बिल्डिंग बनाने का पैसा आ जाये तो डॉ। शाह से वाइस चांसलर की पोस्ट संभालने की गुजारिश की जाये। यह यूनिवर्सिटी बन जायेगी तो अमरीका हमारे सामने झुका खड़ा होगा। चाइना सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा बिलकुल उसी अंदाज़ में गायेगा जैसे कि पाकिस्तान के निर्वासित नेता अल्ताफ लन्दन से गा रहे हैं।
पाकिस्तान जैसे देश तो हमारे मुल्क के क़दमों में लोटते नज़र आयेंगे। हिन्दुस्तान को विश्व गुरू होने की भविष्वाणी पहले ही की जा चुकी है। यह सच होती नज़र आ रही है। जितने फर्ज़ी गुरू थे वह जेल जा चुके हैं और असली गुरु मेरी यूनीवर्सिटी के तैयार होने का इंतज़ार कर रहा है। इस यूनिवर्सिटी को तैयार करने के लिये पूरे मुल्क को एकजुट हो जाना चाहिए। सब जाग जाएँ।
यूनीवर्सिटी के लिये एक-एक ईंट का इंतजाम करें। बूँद-बूँद से समुद्र बनता है और ईंट-ईंट से यूनिवर्सिटी। बनाने वाला तैयार है। वाइस चांसलर अवतार ले चुका है। अब कौन रोक पायेगा हिन्दुस्तान को विश्व गुरू बनने से। शायर ने तो बहुत पहले ही गाना शुरू कर दिया था कि वह सुबह कभी तो आयेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)
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