Saturday - 26 October 2024 - 3:31 PM

अकीदत और एहतराम के साथ निकला शाही जरीह का जुलूस

जुबिली स्पेशल डेस्क

लखनऊ। राजधानी में शोकाकुल माहौल के बीच गुरुवार को परंपरागत तरीके से शाही जरीह का जुलूस बड़ा इमामबाड़ा से निकाला गया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के रौजे की शक्ल में बनी लगभग 1.5 क्विंटल मोम की बनी जरीह को देखकर अजादार अपने आंसू रोक नहीं सके और सिसकने लगे।

‘कह रहीं थी नबी की नवासी… आज पहली है माहे अजा की। मोमिनों सिर को पीटो बसद गम, आज पहली है माहे अजा की’। इन्हीं दर्द भरी सदाओं के बीच शाही मोम की जरीह का जुलूस बड़ा इमामबाड़ा परिसर से निकला तो, हर तरफ से रोने की आवाजे फिजाओ में गूंजने लगीं।

सूरज ढलते ही गुरुवार को शाही जरीह जैसे ही कांधो पर इमामबाड़ा से बाहर लाई गई तो, हर अजादार बोसा लेने को बेकरार था। 20 फुट की मोम जरीह और 15 फुट की अबरक की जरीह को देख अकीदतमंद गमे हुसैन में फफक फफक कर रोने लगे। जुलूस को इस बार 184 बरस हो गए हैं।

जुलूस मार्ग पर सड़ के दोनों किनारो पर बड़ी संख्या में खड़ी महिलाएं और बच्चे भी शरीक हुए। कर्बला के शहीदों की याद में जारों-कतार रोकर अपने गम का इजहार किया।

गुरुवार शाम जिला प्रशासन के चाकचौबंद प्रबंध के बीच निकाले गए शाही जरीह के जुलूस में परंपरा के अनुसार शाही बाजा, रोशन चौकी से गूंजती मातमी शहनाई, शाही निशान लिए हाथी, ऊंट का कारवां आगे आगे चल रहा था। इसके पीछे मातमी बैंड हुसैन का गम मना रहे थे। सोजख्वान ..ऐ मोमिनों हुसैन से मकतल करीब है मरसिया पढ़ रहे थे जिसे सुन कर अजादार रो रहे थे।

इसी के साथ हजरत इमाम हुसैन की सवारी दुलदुल, हजरत अब्बास का अलम और छह माह के मासूम अली असगर का झूला भी गमगीन अजादारों को रोने के लिए बेकरार कर रहा था। ताबूत, अलम और झंडों के बीच जब मोम की शाही जरीह निकली तो जुलूस के साथ चल रहे अजादार उसकी जियारत को बेकरार हो रहे थे।

शाही दौर के जुलूस की यादें हुईं ताजा

जुलूस में शामिल सात हाथी और 16 ऊंट , शहनाई, रौशन चौकी, सबील, चांदी के शाही चिह्न, ताज, शेर, चांदी का सूरज व चांद और शाही बाजे पर बजती मातमी धुनों ने शाही दौर की याद ताजा की।

बैंड और नक्कारे मातमी धुनें सुनाकर, इस बात का ऐलान कर रहे थे कि मोहर्रम की शुरुआत हो गई है। इसके पीछे अमारी, ऊंट, काली झंडी, हरी झंडी, चांदी की नक्काशी झंडी, बल्लम, बरछी, जरीजे और मोर पंखी भी थीं।

जुलूस में हजरत इमाम हुसैन (अ.स) की सवारी का प्रतीक जुलजुनाह (घोड़ा), हजरत अब्बास की निशानी दो अलम के साथ दस अन्य अलम और ताबूत आदि शामिल रहे। जुलूस के साथ अंजुमन शब्बीरिया नौहाख्वानी और सीनाजनी करती चलती रही।

बड़ा इमामबाड़ा से निकला जुलूस रूमी गेट, घंटाघर, हुसैनाबाद के पास पहुंचा तो, यहां बड़ी तादात में खड़े अकीदतमंदों ने दुआएं और मन्नतें मांगीं। इसके बाद जुलूस छोटा इमामबाड़ा में देर रात संपन्न हुआ।

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