सुरेंद्र दुबे
कल आठ मार्च को महिला दिवस है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना ट्वीटर हैंडल कल के लिए महिलाओं को समर्पित कर रखा है। इसके पहले प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया छोड़ देने की धमकी दी थी, जिस पर दिन भर उनकी मनुहार हुई और जैसा कि अपेक्षित था वह सोशल मीडिया न छोड़ने के लिए राजी हो गए।
इसके साथ ही उन्होंने घोषणा कर दी कि आठ मार्च को उनका ट्वीटर हैंडल महिलाओं को समर्पित रहेगा। तब ऐसा लगा था कि शायद प्रधानमंत्री मोदी महिलाओं की शान में कसीदे कढ़ने या उनके सशक्तीकरण के लिए कुछ अहम घोषणाएं करें।
पता नहीं कल प्रधानमंत्री क्या करेंगे पर कल यानी कि छह मार्च को दिन भर शाहीन बाग की तर्ज पर देश भर में चल रहे आंदोलनों की हवा निकालने का जो प्रयास गोदी मीडिया ने किया वह हमारे समाज में महिलाओं की वाकई क्या स्थिति है, इसका जीता जागता एक नमूना है।
लगभग 82 दिन से दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में देश के लगभग 100 स्थानों पर मुस्लिम महिलाएं प्रदर्शन कर रही हैं। इन्हें डरा धमका कर प्रदर्शन समाप्त कराने की तमाम असफल कोशिशें हुई। क्योंकि इन प्रदर्शनकारी महिलाओं से सरकार की साख पर बट्टा लग रहा है।
सरकार का कहना है कि जब एक कानून संसद से पारित कर दिया गया तो उसके विरोध में प्रदर्शन क्यों किए जा रहे हैं। सरकार के प्रवक्ता यह भी तर्क देते हैं कि उनके पास संसद में पूरा बहुमत है और वह कोई भी कानून पास कर सकते हैं। परंतु ये लोग यह भूल जाते हैं कि लोकतंत्र में जनता के पास सरकार व उसके कानूनों के खिलाफ अहिंसात्मक ढंग से अपनी आवाज उठाने का अधिकार संविधान ने दे रखा है।
फिलहाल सरकार और प्रदर्शनकारी दोनों अपनी जिद्द पर अड़े हैं। सरकार कहती है कि सीएए कानून वापस नहीं लेंगे और प्रदर्शनकारी कहते हैं कि इस कानून के वापस होने तक प्रदर्शन जारी रहेगा।
कल यानी कि छह मार्च को सोशल मीडिया पर एक खेल की शुरूआत हुई, जिसका नाम था शाहीन बाग खाली हो रहा है। इस खेल के साथ ही देश के नामी गिरामी टीवी मीडिया ने इस आंदोलन को बदनाम करने की मुहिम छेड़ दी। बड़े-बड़े चैनलों के रिपोर्टर शाहीन बाग पहुंच गए और यह बताने लगे कि धरना स्थल से अधिकांश महिला प्रदर्शनकारी नदारद हैं।
लखनऊ के घंटाघर स्थित शाहीन बाग सहित देश के अन्य राज्यों में शाहीनबाग की तर्ज पर चल रहे प्रदर्शनों पर भी ऑपरेशन टीवी शुरू हो गया। सारे रिपोर्टर ये बताने में व्यस्त थे कि प्रदर्शनस्थल से महिलाएं गायब हैं। कुछ रिपोर्टरों ने तो बाकायदा महिला प्रदर्शनकारियों की गिनती कर उन्हें लज्जित करने की कोशिश की।
इन लोगों का उद्देश्य सिर्फ ये लगता था कि शाहीनबागनुमा प्रदर्शनों की हवा निकल गई है। हमें ये नहीं मालुम की हमारे संविधान में प्रदर्शन के लिए कितनी भीड़ का होना आवश्यक है। पर टीवी ये बताने में व्यस्त रहा कि अंतत: प्रदर्शनकारी महिलाएं थक हार कर घर बैठ गई हैं।
जैसा कि सब जानते हैं, इन दिनों बच्चों की बोर्ड की परीक्षाएं हो रही हैं। इसलिए जाहिर है महिलाएं अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बाद ही धरना स्थल पर आती होंगी। इन महिलाओं को पता नहीं था कि धरना देने के लिए उन्हें अपने बच्चों को इम्तिहान देने से भी रोकना पड़ेगा। ताकि उनके आंदोलन को बदनाम न किया जा सके। कल जम कर बारिश भी हुई थी
इसलिए तमाम महिलाएं घर चली गई होंगी। जिस समय टीवी के रिपोर्टर अपनी कलाबाजी दिखाने पहुंचे, तमाम महिलाएं जुमे के कारण मस्जिदों में नमाज पढ़ने गई होंगी। पर इन सबसे क्या जब आंदोलन की हवा ही निकालनी है और अधिकांश मीडिया सत्ता के साथ है तो फिर महिला प्रदर्शनकारियों का हौसला तोड़ने के लिए इस तरह के षड़यंत्र तो होंगे ही।
सरकार का नारा है बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ। पर सरकार ने ये नारा कभी नहीं दिया कि बेटी को आंदोलन करना सिखाओ। अब अगर बेटियां आंदोलन पर उतर आई हैं तो सरकार की तेवरियां चढ़ी हुई हैं। उनके समर्थक कभी उनपर पैसा लेकर आंदोलन में शामिल होने का आरोप लगाते हैं तो कभी तथाकथित नामी गिरामी पत्रकारों के जरिए उनके आंदोलन में फूट डलवाने का प्रयास करते हैं। कई बार बंदूकधारियों को भेजकर महिला प्रदर्शनकारियों को डराने व धमकाने की भी कोशिश की गई।
पर महिलाएं झुकने को तैयार नहीं हैं। परंतु पुरूष प्रधान समाज को ये बातें फूटी आंख नहीं सुहा रहीं हैं। कम से कम महिला दिवस की लगभग पूर्व संध्या पर महिला प्रदर्शनकारियों को अपमानित करने का अभियान नहीं चलाया जाना चाहिए था। अगर महिलाएं हार गई हैं तो जाहिर है कि वे आंदोलन का रास्ता छोड़ मन मसोस कर अपने घर जा बैठेंगी। पर सरकार का भी अपना एक दंभ होता है। शायद वो यह दिखाना चाहती है कि आखिरकार महिलाओं को उसके आगे झुकना ही पड़ा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)