जुबिली न्यूज डेस्क
हर साल फाल्गुन पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन की परंपरा निभाई जाती है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस वर्ष होलिका दहन 13 मार्च, गुरुवार को मनाया जाएगा। हालांकि, इस बार होलिका दहन के समय पर भद्रा काल का प्रभाव रहेगा, जो पूरे दिन रहेगा। ज्योतिषियों के अनुसार, छोटी होली पर दिनभर भद्रा का साया रहेगा, इसलिए होलिका दहन के लिए समय सीमित रहेगा। आइए जानते हैं इस दिन के मुहूर्त और इसके साथ जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में।
होलिका दहन की तिथि और मुहूर्त:
- फाल्गुन पूर्णिमा की तिथि 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे से शुरू होकर 14 मार्च को दोपहर 12:24 बजे तक रहेगी।
- चूंकि 13 मार्च को भद्रा काल का प्रभाव रहेगा, होलिका दहन का सबसे उचित समय रात 11:26 बजे के बाद होगा, जब भद्रा समाप्त हो जाएगा।
होलिका दहन की पौराणिक कथा:
होलिका दहन का इतिहास हिंदू पुराणों से जुड़ा हुआ है, जिसमें एक राजा हिरण्यकशिपु की कहानी है। वह अमर होने की इच्छा से ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करता है। ब्रह्मा जी उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे पांच वरदान देते हैं, जिसमें यह भी शामिल था कि वह किसी भी प्राणी के हाथों नहीं मरेगा, न तो दिन में और न रात में, न पृथ्वी पर और न आकाश में, न ही किसी हथियार से, और न किसी देवता या असुर के हाथों। इस वरदान के बाद वह आत्मविश्वास से भर गया और उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए सबको डराना और मारना शुरू कर दिया।
हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था और उसने अपने पिता के खिलाफ जाकर भगवान विष्णु की पूजा जारी रखी, जिससे हिरण्यकशिपु गुस्से में आ गया। उसने अपने पुत्र को मारने के लिए कई प्रयास किए, जिनमें से सभी असफल रहे। फिर उसने अपनी बहन होलिका की मदद ली, जो ब्रह्मा जी से एक ऐसा वरदान प्राप्त कर चुकी थी, जिससे वह कभी आग से नहीं जल सकती थी।
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होलिका ने प्रह्लाद को अपनी गोदी में लेकर आग में बैठने का प्रयास किया, लेकिन जब प्रह्लाद ने भगवान विष्णु का जाप करना शुरू किया, तो होलिका का अग्निरोधक वस्त्र प्रह्लाद के ऊपर आ गया और वह बच गया। वहीं, होलिका आग में जलकर भस्म हो गई। यह घटना बुराई पर अच्छाई की जीत और भगवान विष्णु की कृपा का प्रतीक मानी जाती है।
होलिका दहन का पर्व इस महान कथा को याद करते हुए मनाया जाता है, जो हमें सिखाता है कि सत्य और भक्ति हमेशा विजय प्राप्त करती है।