मनीष जैसल
3 साल की बच्ची ट्विंकल जो इस दौर में हमारी आपकी या किसी की भी बहन बेटी हो सकती है, उसका बलात्कार एक ऐसे देश में हो गया जो अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए दुनियां भर में सराहा जाता है।
दरअसल यह इस देश में पहली घटना नही है जब किसी भी जाति धर्म सम्प्रदाय की किसी भी उम्र की लड़की महिला के साथ बलात्कार हुआ हो और फिर उसकी हत्या की गई हो। रोज सैकड़ो ऐसे मामले समाज में होते होंगे ऐसा मेरा अनुमान है।
क्योंकि यह समाज दरिंदगी करने में अपने आपको काफी कम्फर्ट बना चुका है। निर्भया केस के बाद से देश और दुनियां में भारत पर दुनियां की नज़र बलात्कार के मामलों को लेकर भी रहने लगी है। कोई भी राष्ट्र अब इसे मुद्दा बनाकर थू थू कर सकता है।
कैण्डल मार्च से लेकर अधिकारियों को ज्ञापन देने की एक परंपरा जो इस देश में बन चुकी है यह किसी भी तरह से बलात्कार और हत्या को कम करने में कारगर नही रहे हैं। अलीगढ़ में हुई 3 वर्षीय ट्विंकल शर्मा के साथ हुई घटना बताती है कि हम कितने बेशर्म और जानवर लोग हैं। साथ ही साथ हमें यह भी देखना होना की ऐसी घटनाएं जब जब देश में हुई हैं लोगों ने जाति धर्म के साथ देखते हुए आरोपी का सेलेक्टिव विरोध भी किया हैं।
आरोप प्रत्यारोप वाले समाज में ऐसे मामलों पर भी जब सेलेक्टिव विरोध होता है तो यह समाज में एक नई तरह की दूरी को जन्म देते हुए दिखता है। आप खुद सोचिए बीते साल कठुआ में 8 दरिंदों ने जिस तरह एक मंदिर में आसिफा के साथ सुलूक किया उसे ट्विंकल के साथ जोड़ना कितना सही है। जो लोग आसिफा के लिए न्याय मांग रहे थे वो ट्विंकल के लिए मांगे या न मांगे लेकिन उनसे सवाल पूछने वाले खुद की भूमिका जरूर स्पष्ट करें। संवेदनाओं के सेलेक्टिव हो जाने से सभ्यता और समाज की संस्कृति को सबसे ज्यादा चोट पहुंचती है साथ ही एक दूसरे जाति धर्म के प्रति द्वेष पूर्ण भावना भी।
ट्विंकल हो या आसिफा यह देश बलात्कार और फिर हत्या जैसे मामलों पर एक जुट होकर ऐसे कृत्यों और अपराधियों का सामाजिक बहिष्कार करें। जिसे ऐसा करने वालों को स्पष्ट संदेश जाए। उनमें डर और सामाजिकता के दूर होने की संभावना रहे।
ताजा मामले में अलीगढ़ में धारा 144 और पांच लोगों की हिरासत की खबरे आ रही हैं। लेकिन निर्भया से लेकर आसिफा तक के मामले में गिरफ्तारियां हुई लेकिन बलात्कार और हत्याओं के मामले नही रुके। सरकारें और देश का कानून भी इसमें अपनी भूमिका सौ फीसदी स्पष्ट करने के बावजूद भी इन्हें नही रोक सकता। क्योकि यह बिल्कुल निजी मामला है और एक इंसान ही इसे अपने विवेक और ज्ञान से समझ सकता है। हर व्यक्ति को समाज में नैतिक मानदंडों को समझते हुए खुद ऐसे ज्ञान को अग्रेषित करता चले जिन परचलते हुए इन सभ्य समाज का निर्माण किया जा सकता है।
हम जोरो शोरो से आसिफा बनाम ट्विंकल शर्मा की लड़ाई जिस तरफ मीडिया से लेकर आम जन की बहसों में सुन रहे हैं वह इस समाज का सबसे बुरी और दयनीय स्थिति को दर्शाती है ।मंदिर में हुआ रेप हो मस्जिद में, हिन्दू ने किया हो या मुस्लिम ने अपराध की श्रेणी और उसका गुनाह किसी भी स्तर पर कम नही हो सकता।
ऐसे मामलों पर खुद अगर नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझें तो अपने आस पास के वातावरण को दूषित होने और समाज में बन रही खाई को भरने का काम कर पाएंगे। लड़ाई अभी ऐसे अपराध और उनसे जुड़े लोगों से हैं ना कि उसमें जाति धर्म और उम्र देखते हुए सेलेक्टिव संवेदना व्यक्त करने की।
याद रखिये संवेदना इस मनुष्य के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। जिसने भी अपनी संवेदना को व्यक्त करने में किसी भी तरफ की चालबाज़ी दिखाई वह मनुष्य हो ही नही सकता। रेप के आरोपी और रेप करने से ज्यादा गंदे बयानों को देने वाले नेताओं को जब तक फॉलो करते रहेंगे हमें यह सीख मिलती रहेगी। जरूरी है गांधी के विचारों को एक कदम आगे ले जाते हुए उसको जीवन में आत्मसात करे। बुरा न देखने, न करने, न सुनने के आदर्श को जीवन में भी अपनाए। सेलेक्टिव होने से बचें।
(लेखक ज्ञानार्थी मीडिया कॉलेज, काशीपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)