न्यूज़ डेस्क
नई दिल्ली। लॉकडाउन के चौथे दिन शनिवार को देशभर में मजदूरों का अपने- अपने घर के लिए पलायन एक बड़ी चुनौती बनकर सामने दिखा। इससे निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कई कदम उठाए हैं।
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दिल्ली-एनसीआर का हाल सबसे बुरा है, जहां मजदूर, रिक्शा चालक और फैक्ट्री कर्मचारी अपने अपने गांव की ओर लौटने के लिए हजारों की तादाद में निकल पड़े हैं। लेकिन सिर्फ दिल्ली एनसीआर नहीं बल्कि देश के दूसरे छोटे बड़े शहरों से भी लोगों का पलायन यूं ही जारी है। चाहे वो कानपुर हो, सोनीपत हो या फिर सिरसा या आगर मालवा।
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मजदूरों को कोरोना से संक्रमित हो जाने की कोई चिंता नहीं है। किसी दूसरे को संक्रमित कर देने का अंदेशा भी नहीं है। इन्हें घर जाना है, और इसीलिए बस में कैसे भी टिक जाने की बेताबी है।
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आनंद बिहार बस बड्डे पर भी मजदूरों का ऐसा ही रेला है। जेबें खाली हैं, परिवार को पालने कि चिंता ने चाल में रफ्तार ला दी है। जो मजदूर दिल्ली शहर को सुंदर बनाने के लिए अपना पसीना बहाता था, अट्टालिकाओं पर रस्सी के सहारे चढ़कर उन्हें सतरंगी बनाता था, जो मिलों में अपनी सांसों को धौंकनी बना देता था। वो मजदूर चल पड़ा है, सिर पर गठरी लादे, हाथ में बच्चा उठाए।
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ओखला मंडी में काम करने वाले मजदूरों को मालूम है कि दिल्ली से बहराइच की दूरी 600 किलोमीटर है। रास्ते बंद हैं। बसें बंद हैं। ट्रेन बंद हैं। फिर भी चल पड़े हैं पांव। ऐसे एक नहीं हजारों हजार मजदूर हैं।
कोई पैदल पटना निकल पड़ा है, कोई कदमों से नाप लेना चाहता है समस्तीपुर की दूरी। कोई जाना चाहता है गोरखपुर, झांसी, बहराइच, बलिया बलरामपुर।
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कोरोना वायरस का प्रसार रोकने के लिए जारी लॉकडाउन के चलते राष्ट्रीय राजधानी छोड़कर जा रहे प्रवासी मजदूरों से यहीं रहने की अपील करते हुए उन्हें आश्वासन दिया कि राज्य सरकार उनके लिए भोजन और रहने का इंतजाम कर रही है। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि उनकी सरकार ने इन मजदूरों के लिए बसें उपलब्ध कराई हैं।
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