Saturday - 2 November 2024 - 5:50 PM

धारा 370 खत्म कर दिया तो 371 का क्या होगा?

न्यूज डेस्क

लोकसभा में आज गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन बिल का प्रस्ताव रखा। इस बिल के जरिए जम्मू-कश्मीर दो केंद्र शासित प्रदेश में विभाजित हो जाएगा। सोमवार को राज्यसभा में ये बिल पास हो गया था।

अमित शाह के बिल पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने कहा, ”मोदी सरकार ने ख़ुद से राय-मश्विरा कर जम्मू-कश्मीर को तोडऩे का फैसला कर लिया। गृहमंत्री ने अनुच्छेद 370 की धारा तीन को पढ़ा और इसी के आधार पर इसकी वैधता की बात कही।”

तिवारी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का मतलब राष्टपति शासन नहीं होता है। भारत के संविधान में केवल अनुच्छेद 370 नहीं है। इसमें 371 भी है, जिसमें पूर्वोत्तर के राज्यों को स्वातत्ता मिली हुई है। आने वाले दिनों में आप यहां भी राष्ट्रपति शासन लागू कर स्वायतत्ता ले सकते हैं।”

मनीष तिवारी ने कहा,  ”प्रदेश तो दो हिस्सों में बांट दिया लेकिन वहां के संविधान का क्या होगा? क्या आप संविधान को खत्म करने के लिए भी विधेयक लाएंगे। इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया।”

मनीष तिवारी ने कहा, ”जम्मू-कश्मीर राज्य को खत्म कर दो केंद्रशासित प्रदेश बनाने का प्रस्ताव लेकर यह सरकार सदन में आई है। ये जो आधुनिक जम्मू-कश्मीर है इसके निर्माण का अपना इतिहास है। देश आजादी के बाद दो मुल्क बने और 562 रियासतें। इन रियासतों को विकल्प दिया गया था कि वो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकते है।”

तिवारी ने कहा, ”जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ रियासतों को लेकर संवेदनशीलता थी। 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी कबाइलियों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया। हरि सिंह के पास दो विकल्प थे। या तो वह पाकिस्तान के सामने समर्पण कर देते या भारत के साथ आ जाते। हरि सिंह ने लडऩे और भारत से मदद लेने की अपील की। भीषण लड़ाई के बाद भारतीय फौज ने पाकिस्तानी कबाइलियों को खदेड़ा। 27 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर का भारत में सम्मिलन में हुआ।”

उन्होंने कहा, ”इस सम्मिलन को लेकर भारत ने जम्मू-कश्मीर को लेकर कुछ वायदे किए थे। जुलाई 1952 में दिल्ली के साथ करार हुआ। इसी के तहत संविधान में अनुच्छेद 370 को शामिल किया गया। इसी दौरान जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान बना।

24 फरवरी 1975 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और शेख अब्दुल्ला का करार हुआ। एक विशेष परिस्थिति में महाराजा हरि सिंह ने घुटने नहीं टेका बल्कि भारत से मदद लेने का फैसला किया। संविधान की धारा तीन ये कहती है कि किसी भी प्रदेश को तोडऩे से पहले यह अनिवार्य है कि उस प्रदेश की विधानसभा के साथ राय-मश्वरा कीजिए।”

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