जुबिली न्यूज ब्यूरो
आप भले ही इस बात से निश्चिंत हों कि आप सिगरेट नहीं पीते और इसके धुएं से आप बचे हुए हैं , मगर हकीकत तो ये हैं कि ज्यादातर भारतीय सेकेंड हैण्ड स्मोक के शिकार हो रहे हैं।
भारत में तंबाकू नियंत्रण कानून – मूल और प्रस्तावित सुधार शीर्षक से जारी एक नई रिपोर्ट ने मौजूदा तंबाकू नियंत्रण कानून कोटपा 2003 पर कई सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस कानून में कई महत्वपूर्ण खामियां हैं। इसके तहत रेस्त्रां, होटल और हवाईअड्डों पर स्मोकिंग एरिया बनाने या रखने की अनुमति है जबकि भारत में धूम्रपान कई जगहों पर प्रतिबंध है।
यही नहीं, प्रतिबंध के बावजूद तंबाकू उत्पादों से संबंधित विज्ञापन दुकानों और गुमटियों में प्रमुखता से प्रदर्शित रहते हैं, कोटपा 2003 के तहत इस समय लगने वाले जुर्माने पर्याप्त नहीं हैं और भारत में खुली सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों की भी खुली बिक्री आम है।
सिगरेट के पैकट पर जो एमिशन यील्ड लिखा रहता है वह अक्सर भ्रमित करने वाली छवि देता है। ये सब कुछ ऐसी गड़बड़ियां हैं जो तंबाकू नियंत्रण से संबंधित मौजूदा कानून कोटपा 2003 की खामियों के कारण है। इस तरह यह तंबाकू की खपत को नियंत्रित करने के लिहाज से अप्रभावी है। दूसरी ओर, इन खामियों के कारण भारत में लोग सेकेंड हैंड स्मोक (यानी दूसरों के धुंए) का शिकार हो रहे हैं। रिपोर्ट में इन सारी बातों का खुलासा किया गया है।
नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू) ने यह रिपोर्ट जारी की है। इसके लिए सिगरेट और अन्य तम्बाकू उत्पाद (विज्ञापन का प्रतिषेध और व्यापार तथा वाणिज्य, उत्पादन, प्रदाय और वितरण का विनियमन) नियंत्रण अधिनियम 2003 का विश्लेषण किया गया है। इस रिपोर्ट का मकसद कोटपा 2003 का व्यापक विश्लेषण करना है और इसमें उन कमियों की पहचान की जानी है और सुधार का प्रस्ताव करना है जो संसदीय समिति की सिफारिशों, दूसरे देशों द्वारा अपनाए जाने वाले सर्वश्रेष्ठ व्यवहारों तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन के फ्रेमवर्क कनवेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल (डब्ल्यूएचओ एफसीटीसी) के तहत तंबाकू नियंत्रण पर वैश्विक जन स्वास्थ्य संधि के तहत विनिर्दिष्ट दिशानिर्देशों के अनुकूल है।
एनएलएसआईयू के वाइस चांसलर प्रो. (डॉ.) सुधीर कृष्णस्वामी ने कहा, “तंबाकू उपयोग के नुकसानदेह प्रभाव सुस्थापित हैं और वैश्विक स्तर पर स्वीकार किए जाते हैं। इस रिपोर्ट के जरिए एनएलएसआईयू में उपभोक्ता कानून और व्यवहार पर चेयर ने भारत के मौजूदा तंबाकू कानून (कोटपा 2003) में कमियों की पहचान की गई है।
यह रिपोर्ट विधायी सुधारों की सिफारिश करती है जो ग्लोबल पबलिक हेल्थ ट्रीटी, एफसीटीसी पर आधारित है। भारत इस संधि पर दस्तखत करने वालों में है। इसके अलावा दूसरे देशों में अपनाए जाने वाले सर्वश्रेष्ठ व्यवहारों की भी चर्चा की गई है। हम उम्मीद करते हैं कि सरकार इन सिफारिशों पर विचार करेगी और एक व्यापक कोटपा संसोधन विधेयक पेश करेगी।”
एनएलएसआईयू की रिपोर्ट ने कोटपा संशोधन के लिए कुछ सिफारिशों का प्रस्ताव किया है जिसमे कहा गया है कि निर्धारित स्मोकिंग क्षेत्रों पर प्रतिबंध लगाया जाए। इसके लिए उस प्रावधान को हटाया जाए जो स्मोकिंग एरिया या स्पेस की इजाजत देता है, बिक्री की जगह पर सारे विज्ञापन प्रतिबंधित किए जाएं, दुकानों और गुमटियों में तंबाकू उत्पादों का प्रदर्शन प्रतिबंधित किया जाए, स्पष्ट किया जाए कि विज्ञापन और प्रचार नए इंटरनेट माध्यम पर भी प्रतिबंधित है, सभी तंबाकू कंपनियों के स्पांसरशिप प्रतिबंधित किए जाए इसमें कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी की गतिविधियां शामिल हों, एमिशन यील्ड का आंकड़ा प्रदर्शित करना प्रतिबंधित किया जाए, कंटेंट और एमिशन को नियंत्रित किया जाए इसमें फ्लेवर्ड तंबाकू पर प्रतिबंध शामिल है, तंबाकू की पैकिंग से संबंधित बृहद नियमन हो, बिक्री के लिए खरीदार की आयु बढ़ाकर 18 साल से 21 साल कर दी जाए, खुली सिगरेट, तंबाकू या छोटे पैक की बिक्री प्रतिबंधित की जाए तथा इन उल्लंघनों के लिए जुर्माने में वृद्धि की जाए।
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे वेंकटचेलैया ने कहा, “मेडिकल साइंस स्पष्ट रूप से स्वीकार करता है कि तंबाकू दुनिया भर में मौत और बीमारों का अकेला सबसे बड़ा कारण है। भारत के संविधान के तहत सरकार की यह प्राथमिक जिम्मेदारी है कि जन स्वास्थ्य को बेहतर करे और उसकी रक्षा करे। एनएलएसआईयू की रिपोर्ट में जो सिफारिशें की गई हैं उन्हें शीघ्रता से लागू किए जाने की आवश्यकता है। भारत अगर तंबाकू का उपयोग कम करने और संविधान की धारा 21 के तहत गारंटीशुदा स्वास्थ्य के अधिकार की रक्षा के प्रति गंभीर है तो उसे यह काम तुरंत करना चाहिए।” उन्होंने आगे कहा, “केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय कोटपा 2003 में संशोधन पर ध्यान दे ताकि एफसीटीसी के तहत भारत की जिम्मेदारियां पूरी हों और सरकार संविधान के तहत अपनी जिम्मेदारियों में जन स्वास्थ्य की रक्षा तथा उसे बेहतर करने की अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी भी निभाए।”
एचजीसी सेंटर, बैंगलोर में हेड एंड नेक सर्जिकल ऑनकोलॉजी तथा रोबोटिक सर्जरी के प्रमुख डॉ. विशाल राव ने कहा, “तंबाकू उत्पादों के घातक होने से संबंधित पर्याप्त सबूत हैं। इसलिए इन्हें पहुंच से दूर कर दिया जाना चाहिए ताकि भारत के लोगों को तकलीफ और पीड़ा के जीवन से मुक्त किया जा सके। देश के तंबाकू नियंत्रण कानून को मजबूत करना महत्वपूर्ण है ताकि इस समय चल रहे प्रयासों को शक्ति मिले और तंबाकू से होने वाली महामारी नियंत्रित हो, खासकर इस चुनौतीपूर्ण समय में।”
भारत में तंबाकू का उपयोग करने वालों की संख्या दुनिया भर में दूसरे नंबर है (268 मिलियन या भारत में सभी वयस्कों का 28.6%)। इनमें से कम से कम 1.2 मिलियन की मौत हर साल तंबाकू से संबंधित बीमारियों से हो जाती है।
एक मिलियन मौतें धूम्रपान के कारण होती हैं और 200,000 से ज्यादा मौतें सेकेंड हैंड धुंए के संपर्क में रहने से होती है जबकि 35,000 से ज्यादा मामले धुंआहीन (खैनी पान मसाल आदि) तंबाकू के उपयोग के कारण होता है। भारत में कैंसर से सारे मामलों में लगभग 27% तंबाकू के उपयोग के कारण होते हैं।
तंबाकू उपयोग के कारण होने वाली बीमारियों का कुल प्रत्यक्ष और परोक्ष लागत 182,000 करोड़ रुपए है जो भारत की जीडीपी का लगभग 1.8% है।
कोटपा 2003 विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने तथा व्यापार और वाणिज्य के नियमों को लागू और उसका प्रावधान करने के लिए लागू किया गया था। यह भारत में सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण से भी संबंधित है तथा इसका मकसद तंबाकू उत्पादों की खपत और सेवन को हतोत्साहित करना तथा आम तौर पर जन स्वास्थ्य को बेहतर करना भी है। इस अधिनियम का मकसद तंबाकू नियंत्रण पर एक व्यापक कानून है और इसे 15 साल पहले अपनाया गया था पर समय के साथ-साथ इस कानून में खामियां बहुत स्पष्ट हो गई हैं और इसे प्रभावी ढंग से लागू करने की देशा में एक अगम चुनौती साबित हुई है।
मौजूदा कानून में ये खामियां विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में रेखांकित की गई है। इस रिपोर्ट का नाम है, हू रिपोर्ट ऑन दि टोबैको एपिडेमिक (जीटीसलीआर) 2019। यह तंबाकू नियंत्रण से संबंधित प्रमुख उपायों को लागू करने का प्रावधान करता है और यह अर्धवार्षिक आधार पर है। नियंत्रण और स्वास्थ्य चेतावनी के मामले में भारत ने सर्वश्रेष्ठ व्यवहार अपनाए हैं। अन्य सभी नीतियों के मामले में भारत का स्थान मॉडरेट (ठीक-ठाक) श्रेणी में है और 2008 की रिपोर्ट के बाद से आगे की ओर कोई प्रगति नहीं हुई है।