Monday - 28 October 2024 - 10:47 AM

‘रामनाम’ की गूंज में कौन तलाश रहा जीत का सियासी मंत्र

कुमार भवेश चंद्र

 

अगर आप ये सोच रहे हैं कि अयोध्या में राममंदिर या भगवान राम के प्रति आस्था अब चुनावी विषय नहीं रहेंगे तो आप गलत साबित होंगे। विधानसभा में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ताजा भाषण के बाद आपकी ये दुविधा समाप्त हो जानी चाहिए। बजट सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पेश करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनथा ने जो कहा उससे साफ है कि प्रदेश की सियासत में राम नाम की गूंज 2022 में भी सुनाई देगी और 2024 में भी।

चुनाव विश्लेषक ओपी यादव कहते हैं, “आरएसएस से जुड़े सभी संगठन के लिए हिंदुत्व एक बेहतर प्रयोग साबित हुआ है। जातियों और उप जातियों में बंटे वोटरों को एक मंच पर लाने का ये प्रयोग कुछ हद तक काम कर जाता है लिहाजा वे अपने उस पुराने प्रयोग को छोड़ना नहीं चाहते। इसके साथ बीजेपी अपने काम यानी ‘डेलीवरी’ को भी रामराज्य की परिकल्पना से जोड़कर यही प्रयास करती है। एक सियासी ताकत के रूप में उन्हें ये बात पूरी तरह पता है कि राम के प्रति आस्था वाली उनकी सोच उन्हें जमीन पर बड़ी मजबूती दिला सकती है। और इसीलिए राम नाम को लेकर उनका नजरिया बिल्कुल साफ है।”

ओपी यादव की बात को जमीन पर उतरते देखने के लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण में राजराज्य का उल्लेख करते हुए तुलसीदास रचित ये लाइनें सदन के सामने रखीं-

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।

सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।

मुख्यमंत्री ने राम राज्य की कल्पना से सियासी निहितार्थ पर भी बातचीत की। और विपक्ष के ऊपर तीखे हमले किए। उन्होंने न केवल राममंदिर के लिए रामभक्तों की मांग को वाजिब करार दिया बल्कि उनके ऊपर गोली चलाने वालों को गलत बताया। उन्होंने समाजवाद पर भी सवाल खड़े कर दिए। मुख्यमंत्री के इस भाषण के बाद प्रदेश की सियासत में रामराज बनाम समाजवाद का मुद्दा गरम हो गया है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक लंबा चौड़ा ट्विट करके मुख्यमंत्री को जवाब दिया है। उनके सामने पांच सवाल रख दिए हैं।

बहरहाल योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव के सियासी नोकझोंक से इतर हकीकत यही है कि देश में एक बार फिर रामनाम की गूंज पैदा करने की तैयारी हो चुकी है। एक तरफ राममंदिर की तैयारियों को लेकर अयोध्या में गतिविधियां तेज होने जा रही है तो दूसरी ओर विहिप ने देश भर में राम महोत्सव की तैयारी को अंतिम रूप दे दिया है।

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विहिप की कोशिश है कि इस महोत्सव को गांव-गांव तक पहुंचाया जाए। 25 मार्च को चैत नवरात्र की शुरुआत हो रही है। विहिप की योजना है कि 25 मार्च से 8 अप्रैल को हनुमान जयंती तक पूरे देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के राम भक्त श्रीराम महोत्सव के जरिए मंदिर निर्माण आंदोलन के विजय पर्व के तौर पर मनाएं। एक पखवाड़े तक चलने वाले इस उत्सव को गांव-गांव तक ले जाने की तैयारी है। विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल कहते हैं, “जिस प्रकार मंदिर आंदोलन के लिए गांव गांव से शिलाओं के माध्यम से मंदिर निर्माण में राम भक्तों ने अपना योगदान दिया था उसी तरह एक बार फिर मंदिर निर्माण के उत्सव से उन्हें जोड़ा जाएगा। दुनिया भर के राम भक्त अपने अपने स्थान पर श्रीराम महोत्सव के जरिए अपनी उस उपलब्धि के लिए जश्न मनाएंगे, जिसके लिए न जाने कितने रामभक्तों ने अपने जान तक की आहुति दे दी।” बंसल कहते हैं कि श्रीराम महोत्सव के दौरान मंदिर आंदोलन में अपना सर्वस्व निछावर करने वाले लोगों के परिवार को भी भी सम्मानित करने का संकल्प है। विहिप का कहना है कि मंदिर आंदोलन को अपने अंजाम तक पहुंचाने के संतोष के साथ उसने हिंदू समाज को जोड़े रखने का एक और संकल्प अपने हाथ लिया है।

योजना के मुताबिक विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता देशभर के दो लाख 75 हजार गांवों में श्रीराम महोत्सव का आयोजन को सफल बनाने के लिए काम करेंगे। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद कई वजहों से हिंदू समाज ने समारोह मनाकर खुशी जाहिर करने से परहेज किया था। लेकिन श्रीराम महोत्सव के जरिए रामभक्त और हिंदू समाज श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति का उल्लास पर्व मनाएगा।

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