न्यूज डेस्क
लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत पाकर दोबारा सत्ता में लौटे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब दुनिया जीतने निकले हैं। इसके लिए पीएम मोदी ने विदेश नीति पर काम शुरू कर दिया है। किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक नरेंद्र मोदी के लिए प्रधानमंत्री के रूप में दूसरे कार्यकाल में पहला ऐसा अहम सम्मेलन रहा, जिसमें कई देश शामिल हुए।
PAK से किनारा
पीएम मोदी ने गुरुवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अफगानिस्तान के अशरफ गनी से मुलाकात की। इस दौरान संयुक्त बैठक में पीएम मोदी का सामना इमरान खान से भी हुआ, लेकिन मोदी ने उन्हें एक नज़र नहीं देखा। इमरान खान और नरेंद्र मोदी के बीच की दूरी तीन सीटों का अंतर था, लेकिन बातचीत का अंतर कई मीलों वाला था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी। इसी मुलाकात में उन्होंने संदेश दिया कि पाकिस्तान से अभी भारत बात नहीं कर सकता है, क्योंकि माहौल सही नहीं है। पहले माहौल सही होना चाहिए और बाद में बात की जा सकती है।
आज भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई देशों के प्रमुखों के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे। इसमें कजाख्सतान के प्रमुख, सभी SCO लीडर्स के साथ फोटो सेशन, बेलारूस, मंगोलिया के राष्ट्रपति से भी मुलाकात होनी है। इतना ही नहीं, पीएम को ईरान के राष्ट्रपति डॉ. हसन रुहानी, भारत-कजाकिस्तान, द्विपक्षीय वार्ता, प्रेस वार्ता भी आज के कार्यक्रम में शामिल है। सभी मुलाकातें खत्म होने के बाद पीएम दिल्ली के लिए रवाना होंगे।
इससे पहले एससीओ की बैठक के दौरान प्रधानमंत्री ने चीन और रूस के शासनाध्यक्षों के साथ भी अहम बैठक की। 1996 में गठित किए गए एससीओ में पहले पांच देश शामिल थे, लेकिन अब इनकी संख्या आठ तक पहुंच गई है।
कैसा है एससीओ
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद यूरेशियन क्षेत्र (यूरोप और एशिया का एक हिस्सा) में सामाजिक और आर्थिक ढांचा ढह गया और नए समीकरण उभरने लगे। इन हालात में शंघाई-फाइव के नाम से एक संगठन अस्तित्व में आया, जिसमें चीन, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान शामिल थे। एससीओ का गठन 2001 में किया गया और इसमें उज्बेकिस्तान भी शामिल हुआ। 2017 में इसका फिर विस्तार हुआ और भारत और पाकिस्तान को जगह मिली। अपने गठन के बाद से एससीओ ने क्षेत्रीय गैरव्यापारिक सुरक्षा पर फोकस किया है, जिसमें आतंकवाद का सामना करना एक प्राथमिकता है। एससीओ का मंत्र है-तीन बुराइयों यानी आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ से निपटना।
एससीओ में भारत कैसे शामिल हुआ
मध्य एशियाई देश और चीन प्रारंभ में इस संगठन के विस्तार के पक्ष में नहीं थे। हालांकि रूस ने भारत को इसमें प्रवेश देने की पुरजोर वकालत की। चीन ने पाकिस्तान का नाम आगे बढ़ाया। मुंबई आतंकी हमले (2008) के बाद भारत ने भी इसमें शामिल होने के प्रति रुचि प्रदर्शित करनी शुरू की। 2009 में पर्यवेक्षक के रूप में भारत और पाकिस्तान इसमें शामिल हुए। इस दौरान तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की रूस में बैठक भी हुई। लगभग दस साल के प्रयासों के बाद जून 2017 में भारत और पाकिस्तान, दोनों इसमें शामिल हुए।
भारत को क्या फायदा हुआ
भारत के लिए दो अहम उद्देश्य हैं-आतंकवाद का मुकाबला और कनेक्टिविटी। ये दोनों उद्देश्य एससीओ के मंत्र से काफी मेल खाते हैं। भारत आतंकवाद से निपटने के लिए और अधिक खुफिया सूचनाएं चाहता है। उसके लिए स्थिर अफगानिस्तान भी एक प्राथमिकता है।
विदेश नीति के लिए अहम अवसर
चूंकि लंबे अर्से से सार्क यानी दक्षेस की बैठक नहीं हो पा रही है इसलिए भारत के लिए एससीओ एक बड़ा मंच है, जिसमें वह पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का मुद्दा उठा सकता है। चीन के राष्ट्रपति के साथ अपनी मुलाकात में पीएम मोदी ने यही किया भी। जहां तक चीन का सवाल है तो यह भारत के लिए ब्रिक्स के अलावा चीन के साथ संपर्क का एक अन्य अहम अवसर है कि दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने की कोशिश हो।
बाकी दुनिया के लिहाज से
अमेरिका के इस समय जिस तरह चीन, रूस और ईरान के साथ अलग-अलग मामलों को लेकर विवाद चल रहे हैं उसे देखते हुए एससीओ की बैठक में बाकी दुनिया की भी निगाहें लगी रहीं कि भारत, चीन और रूस के रिश्ते किस तरफ जा रहे हैं। हाल के समय में अमेरिका ने पाकिस्तान के प्रति भी काफी सख्ती का प्रदर्शन किया है, खासकर पुलवामा हमले के बाद से।