सीमा रहमान
साल 1984 से अमेरिका में अप्रैल का महीना child abuse prevention month के रूप मे मनाएं जाने की शुरुआत हुई। कई लोगों को लगता है की ये अमेरिका में ये समस्या है इसलिए वे ऐसा करते हैं , मगर हम इस महीने को इस रूप में क्यों मनाएं , ये हमारी समस्या तो है नहीं और हममें से कईयों को ये भी लगता है कि इस तरह कि समस्या अमेरिका जैसे विकसित देश की हो सकती है हमारी नही,हमारे आस पास ऐसा कुछ भी देखने सुनने मे नही आता है, इसलिए हमें इस बारे में सोचने की ख़ास जरुरत नहीं है।
लेकिन ज़रा ध्यान से अपने आस पास का जायजा लिजिए , तो आप को बहुत सारे उदाहरण देखने और सुनने को मिल जायेंगे । सच थोड़ा भयावह है पर सच है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक बामा ने कहा था कि हमें हर बच्चे को सुरक्षित,संतुलित और अच्छे वातावरण मे जीने का अधिकार देना है जहां बच्चे हर तरह की abuse से सुरक्षित हों, तो क्या यही अधिकार हमारे देश के बच्चों का भी नही है ? हम क्योँ नही ये सोच कर चिंतित हैं। शायद इसलिये कि हम इस समस्या का सामना करने की हिम्मत ही नही जुटा पा रहे हैं ।
Child abuse क्या है ?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ये मानसिक,शारीरिक ,भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक हो सकता है। जब अभिभावक या अन्य कोई व्यक्ति जो बच्चे की देख रेख का ज़िम्मेदार हो वो अपनी ये ज़िम्मेदारी भली भांति पूरी नही कर पाता चाहे। कारण चाहे कुछ भी हों , तो ये भी child abuse है। अगर हम बच्चों को उपेक्षित करते हैं या उनकी सुरक्षा का खयाल नही रखते तो ये भी abuse है । मानसिक,शारीरिक या मनोवैज्ञानिक abuse के कारण जो नकारात्मक असर बच्चे पर होता है उसके बहुत दूरगामी परिणाम बच्चोँ के व्यक्तित्व पर देखने को मिलते हैं ।
सरकार ने बच्चों की सुरक्षा के लिये कानून तो बनाये हैं मगर यहाँ पीड़ित मासूम बच्चे हैं जो अपनी लड़ाई स्वयं नही लड़ सकते। उनको हमारी मदद की ज़रूरत है।
मैं विशेष रूप से child sexual abuse के बारे मे बात करना चाहूंगी। हममे से अधिकांश लोगों को लगता है कि ऐसी घटनाएं हमारे आस पास नहीं होती या हो सकती हैं, पर विश्वास करे ये हमारे बहुत आस पास भी घटित होता है और अधिकांश समय हम को पता भी नही चलता क्योंकि उसको देखने के लिये हम सजग ही नहीं है। अगर हम सजग हो भी जाये तो अपने बच्चों की सुरक्षा के लिये हम हर समय उनके साथ हों ये वास्तविक जीवन में संभव नही है। इसलिये जरूरी है कि हम उनको अपनी रक्षा स्वयं करना सिखाए ।
हम बच्चों को सुरक्षा से सम्बंधित बहुत सारे ज्ञान देते रह्ते हैं जैसे गरम स्टोव को मत छूना या सड़क पार करते समय पहले दोनो ओर देखना फिर सड़क पार करना , पर हम उनको अक्सर बॉडी सेफ़्टी के बारे मे नहीं बताते क्योंकि हम को लगता है अभी ये बहुत छोटे हैं। पर जब तक हम को लगता है अब उनको इस बारे मे बताने का सही समय है , और उनको इस बारे मे बताने का सोचते हैं अक्सर देर हो जाती है। आँकड़ो के अनुसार हर 6 बच्चों मे 1 और 4 बच्चियोँ मे एक 18 वर्ष से पहले यौन शोषण का शिकार होते हैं।
अब प्रश्न ये है कि हम उन छोटे छोटे बच्चों को क्या बताये जो इन बातों से पूरी तरह अनजान हैं और यही कारण है की लोग उनकी ना समझी का फायदा उठा सकते हैं।
सब से पहले ये ज़रूरी है कि हम उन्हें उनके शरीर के सभी अंगों के नाम सही बताएं और ये भी बताये की अपने शरीर पर उनको ही पूरा अधिकार है। यानी वो ही तय कर सकते है की उनको किस व्यक्ति के कितने पास जाना है और किस के पास जाने से,गोद मे उठाने से या प्यार करने पर वो असहज महसूस करते हैं। यदि आप का बच्चा ऐसा कोई भी संकेत आप को दे तो उसे नाकारने की बजाये सतर्क हो जाईये। अगर आप का बच्चा किसी क़रीबी मित्र या रिश्तेदार की उपस्थिति मे सहज नही मह्सूस करता तो इन संकेतों पर ध्यान दिजिये। उन पर कतई दबाव मत दीजिये कि वो उस व्यक्ति को प्यार करे या उनकी गोद मे बैठे ।
बच्चों को ये भी बताईये की उनके शरीर के कुछ अंग बहुत ही व्यक्तिगत हैं और उसका मतलब है कि वे उनको सब के सामने नही दिखा सकते या उनको कोई टच नही कर सकता है। जैसे उनको सब के सामने कपडे मत चेंज करने दीजिये, बच्चों को ये विश्वास दिलाइये कि वो आप से कुछ भी शेयर कर सकते हैं। उन के साथ अक्सर विभिन्न विषयोँ पर बातचीत करिये और समय दीजिये ताकि वो किसी भी समस्या मे हो तो उसे आप के साथ शेयर कर सके।
अगर वो आप को ऐसा कुछ कभी बताये तो बहुत परिपक्व ढंग से इस समस्या को सुलझाने का प्रयास करें और इस का समाधान खोजिये। बच्चो को दोषी मत ठहराईये नही तो वो आप पर फिर विश्वास नही कर पायेंगे।
ये भी ज़रूरी नही है की हर बच्चा आप से इस तरह की घटना शेयर कर पाये। बहुत बार बच्चे डर जाते हैं और अपनी समस्या को बता नहीं पाते। बच्चों के व्यवहार मे यदि कोई परिवर्तन अचानक दिखता है तो उसके प्रति भी सजग रहिये जैसे उनका अचानक ही बहुत शांत या डरा हुआ दिखना ,या बहुत चिड़चिड़ा हो जाना, गुस्सा अधिक आना आदि । कुछ भी सामान्य व्यवहार से अलग लगे तो उसके बारे मे बच्चे से बातचीत करे पर बहुत सहजता से।
किसी भी स्थिति मे बच्चे को दोषी मत महसूस होने दें क्योंकि अक्सर ऐसे मामलों में उन्हें लगता है कि ये उनकी ही गलती है और इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव उनके पूरे जीवन और व्यक्तित्व पर नकारात्मक असर डाल सकता है। फिर भी अगर आप को लगता है कि आप को किसी से मनोवैज्ञानिक से सलाह लेनी चाहिये तो बिना किसी देरी के ज़रूर ले।
(लेखिका मनोवैज्ञानिक हैं )