Monday - 28 October 2024 - 8:56 AM

‘दूसरा जर्मनी’ बनना चाहता है सऊदी अरब

जुबिली न्यूज डेस्क

कोरोना महामारी की वजह से दुनिया के अधिकांश देशों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ है, लेकिन खाड़ी देशों को ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा।

फिलहाल अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में जुटा सऊदी अरब अब दूसरा जर्मनी की ओर आगे बढ़ रहा है। सऊदी अरब के
ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल्लाजीज बिन सलमान ने कहा है कि उनका देश आने वाले दिनों में अक्षय ऊर्जा से क्षेत्र में ‘दूसरा जर्मनी’  बनकर उभरेगा।

अब्दुल्लाजीज ने कहा कि देश में 50 प्रतिशत ऊर्जा की निर्भरता अक्षय ऊर्जा के जरिए पूरी की जाएगी। उन्होंने यह बातें बुधवार को रियाद में चल रहे फ्यूचर इन्वेस्टेमेंट इनिशिएटिव (एफआईआई) समिट में कही।

ऊर्जा मंत्री ने कहा कि हमारी स्वच्छ ऊर्जा की इस योजना से हजारों तेल के बैरल बचेंगे।

ये भी पढ़े: क्या करने जा रहे हैं 18 फरवरी को किसान

ये भी पढ़े:  प्रचंड ने ओली को लेकर भारत और चीन से मदद की लगाई गुहार 

दरअसल क्राउन प्रिंस के किंगडम विजन-2030 का उद्देश्य पोस्ट हाइड्रोकार्बन युग के लिए देश की अर्थव्यवस्था की तेल पर निर्भरता के इतर उसमें विविधता लाना है।

इस योजना के तहत सऊदी अरब अगले 10 सालों में 60 गीगावाट की अक्षय ऊर्जा की क्षमता विकसित करने पर काम करेगा। इसमें फोटोवोल्टिक सौर ऊर्जा के चालीस गीगावाट, केंद्रित सौर ऊर्जा के 3 गीगावाट और पवन ऊर्जा के सोलह गीगावाट शामिल होंगे।

ऊर्जा मंत्री अब्दुल्लाजीज ने कहा, ‘हम जो भी करेंगे फिलहाल उसमें कार्बन उत्सर्जन कम होगा। आर्थिक स्तर पर ये एक बड़ा मसला होगा। लेकिन सऊदी अरब को एक तर्कशील और अच्छे देश के तौर पर देखा जाएगा, क्योंकि हम दुनिया को जो देंगे वो बहुत अधिक होगा। अगले कुछ सालों में हम कई यूरोपीय देशों से अपनी तुलना कर सकेंगे।’

ये भी पढ़े: वैज्ञानिकों ने बताया कि चमोली में कैसे हुआ हादसा

ये भी पढ़े: जब हंगामा बढ़ा तो PM मोदी ने कहा-अधीर रंजन जी बहुत ज्यादा हो गया…

अब्दुल्लाजीज ने बताया कि हमारा देश हाईड्रोकार्बन के इस्तेमाल और उत्सर्जन को रिसाइकल करेगा। इससे वह ब्लू हाइड्रोजन और ग्रीन हाइड्रोजन का अग्रणी देश बनेगा।

क्या होता है ग्रीन और ब्लू हाइड्रोजन?

हाइड्रोजन रॉकेट ईंधन के रूप में लंबे समय तक इस्तेमाल किया जाता है। हाइड्रोजन मुख्य रूप से तेल शोधन में और उर्वरकों के लिए अमोनिया का उत्पादन करने के लिए यूज किया जाता है।

वर्तमान ग्रे हाइड्रोजन ज्यादातर प्राकृतिक गैस या कोयले से निकाला जाता है, इस प्रक्रिया में एक साल में कार्बन डाइऑक्साइड के 830 मिलियन टन का उत्सर्जन होता है।

पानी से इलेक्ट्रोलिसिस के जरिए निकाला जाने वाला हाईड्रोजन ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ कहलाता है। इसकी कीमत 1.50 डॉलर प्रतिकिलो तक होती है।

इतना ही नहीं प्रकृतिक गैस से निकाला जाने वाला हाइड्रोजन से उत्सर्जन कम होता है और इसे ‘ब्लू हाईड्रोजन’  कहते हैं।

ये भी पढ़े: मोदी सरकार की आपत्ति पर ट्विटर ने अपने जवाब में क्या कहा?

ये भी पढ़े: उज्ज्वला योजना : मुफ्त रिफिल के बाद भी नहीं भरवाए गए 9.88 करोड़ सिलेंडर

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com