पश्चिमी बंगाल की राजधानी के एक सीलन भरी पुरानी इमारत के अंधेरे कमरे से, देश की सबसे बड़ी विधान सभा के चुनाव के लिए, उन्हें निकाला गया। झाड़ा-पोंछा गया। उनके सारे सर्किट मकड़जाल में घिरे हुए थे। कुशल हाथों में आकर उनमें आक्सीजन का संचार हुआ। बत्तियां जल उठीं। उन पर ओके का ठप्पा लगा दिया गया। चूहों और मकड़ियों ने उन्हें भावभीनी विदाई दी। जल्दी मिलने की कामना की। उन्हें बक्सों में डालकर जिलेवार तैयार कर खांचों में फिटकर दिया गया।
वो अपने बगल में एक पुरानी सहेली को पाकर चहक उठी, ‘अरे ईवीएम कुमारी! कैसी हो?”
‘हाय डियर क्या बात है, इतने दिनों बाद मिली हो लेकिन बड़ी तरोताजा लग रही हो। कैसे बीते दिन, कैसी बीती रतियां?” न्यू ईवीएम ने पुरानी ईवीएम का हाल-चाल लिया।
पुराना ईवीएम-‘अरे, वह सब छोड़ यार! अपुन को इस उम्र में कौन पूछेगा। पिछली बार तो जिसे देखो उसी ने मेरे एक-दो बटन पर ही उंगली दबा-दबाकर कचूमर निकाल दिया। बड़े दिनों तक दर्द में तड़पती रही। अबकी बार देखो क्या होता है?”
न्यू ईवीएम-‘कोई कह रहा था कि इस बार तो हार्मोनियम की तरह बटन दबेंगे।”
पुराना ईवीएम-‘चल हट! जानती हूं। तू यह सब मुझे बहलाने के लिए कह रही है।”
न्यू ईवीएम-‘नहीं, मेरी जान, ऐसा मैंने खबरिया चैनल पर सुना है। सुना तो यह भी कि इस बार ब्राह्मण वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए घमासान मचा है।”
पुराना ईवीएम-‘तूने ठीक ही सुना है बहन। पिछली बार से इस बार बहुत ज्यादा लोग मेरा स्पर्श पाने के लिए लम्बी-लम्बी लाइनें लगायेंगे। पिछली बार माछ हरदी झौल (मिर्च) सुवाषित उंगलियों के स्पर्श से मुझे तो मदर टच सी फीलिंग होने लगती थी। लेकिन बाद में ऐसी-ऐसी उंगलियां आयीं कि मत पूछो।”
पुराना ईवीएम – ‘कैसी-कैसी! जरा हमें भी तो बताओ।”
पुराना ईवीएम – ‘ए…ओ…सॉरी मिस। ऐसा कुछ नहीं। बस कुछ मोटी-मोटी, कुछ चूना लगी, कुछ नाक में गयी, कान खुजाई हुई, महीन सी, पतली सी, खुरदुरी, कुछ गंदे नाखून वाली, कुछ भदेस नेल पालिश वाली, चुनौटी आैर बीड़ी-सिगरेट की बू वाली…और क्या। इस बार सेनेटाइज उंगलियां ज्यादा रहेंगी। यार कुछ उंगलियां जब पास आती है तो गुदगुदी सी महसूस होती है!”
पुराना ईवीएम-‘अच्छा ये गुदगुदी क्या होती है, कहां होती है?”
पुराना ईवीएम-‘फ्रिक न करो बहना, तुम्हें भी जल्दी पता चल जाएगा।”
न्यू ईवीएम-‘कुछ पार्टी वाले हमें हटाने पर तुले हैं। कहते हैं कि हमारे साथ छेड़छाड़ की जाती है। भई मैं तो अभी जवान हूं लेकिन मुझे छेड़ने तो आज तक कोई भकुवा नहीं आया!”
पुराना ईवीएम-‘अजीब बुड़बक हैं। जब जीत जाते हैं तो फट से शपथ ले लेते हैं। तब नहीं कहते कि इसमें घोटाला है। जब हमारी विश्वसनीयता पर उंगलियां उठती हैं तो बहुत कष्ट होता है।”
न्यू ईवीएम-‘एक बार तो खुला चैलेंज भी दिया गया कि हमारे चाल चलन को बदल कर दिखाओ। तब मुआ कोई नहीं फटका।”
पुराना ईवीएम-‘इन्हें तो अपनी हार को छुपाने के लिए हमारा ही पल्लू मिलता है। इस बार तो बड़े बड़े पहलवान ग्रुप बनाकर धोबी पछाड़ की फिराक में हैं।”
न्यू ईवीएम-‘क्या मतलब, सिस।”
पुराना ईवीएम-‘अरे घबराओ नहीं। सीधा सा मतलब यह है कि गिरोहबंदी होती है और जब हम पर उंगलियां ज्यादा उठती हैं तो नतीजा चौंकाने वाला होता है। इस बार तो यही लगता है। बोलो जय श्रीराम।”
न्यू ईवीएम-‘जय श्रीराम। कोई बात नहीं। प्रदेश के भले के लिए चाहे जितनी उंगलियां हम पर उठें, स्वीकार। हम पर दाग भी लग जाए तो वो भी अच्छे हैं।”
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)