शबाहत हुसैन विजेता
मस्जिदें मुसलमान को बुलातीं हैं कि आओ, अल्लाह की इबादत करो, आओ कामयाबी की तरफ आओ, आओ अल्लाह से अपने गुनाहों और गल्तियों की माफी मांगो। आओ अपनी और अपने मुल्क की कामयाबी की दुआ करो। यह मस्जिदें इंसान की दुआओं को पूरा करती रही हैं इसी वजह से ही तो लगातार आबाद रहती हैं।
मस्जिदें रमज़ान के महीने में सबसे ज्यादा गुलज़ार रहती हैं। दिन भर की भूख प्यास के साथ मुसलमान जब अपने मुल्क की कामयाबी की दुआ मांगता है तो अल्लाह जल्दी सुनता है लेकिन यह पहला ऐसा साल है कि रमज़ान के दौरान मस्जिदों में ताला लटका हुआ है। अज़ान की आवाज़ तो अपने वक्त पर आ रही है मगर अज़ान देने वाला यह भी बता रहा है कि आप अपने घरों में ही इबादत करें। मस्जिदों में तशरीफ़ न लायें। अल्लाह आपकी इबादत को क़ुबूल कर लेगा।
मस्जिद में नमाज़ का कांसेप्ट समाज को करीब लाने के लिए है। यह कांसेप्ट छोटे और बड़े का फर्क मिटाने के लिए है। मस्जिद की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि जो पहले आएगा वह आगे खड़ा होगा और जो बाद में आएगा वह पीछे खड़ा होगा। नमाज़ पढ़ने के लिए चपरासी अगर पहले आ जाएगा और गवर्नर बाद में आएगा तो चपरासी को गवर्नर के आगे जगह मिल जायेगी। नमाज़ के दौरान कई बार मिनिस्टर और लेबर पास-पास खड़े होकर नमाज़ पढ़ते नज़र भी आये हैं।
मस्जिद ही वह जगह है जहाँ पर सब बराबर हैं। वहां न कोई छोटा है न बड़ा। किसी शायर ने लिखा भी था, एक ही सफ में खड़े हो गए महमूद-ओ-अयाज़ न कोई बन्दा रहा और न कोई बन्दा नवाज़।
मस्जिद में नमाज़ की असल वजह यही थी कि लोग एक दूसरे को पहचानें। एक दूसरे के दुःख-सुख में शरीक हों। रोज़ाना मस्जिद में आने वाला कोई नमाज़ी किसी दिन मस्जिद में नहीं आएगा तो बाक़ी नमाज़ियों को यह फ़िक्र होगी कि आखिर वह क्यों नहीं आया? वह किसी मुश्किल में तो नहीं? एक नमाज़ी दूसरे नमाज़ी की फ़िक्र करेगा तो पूरा समाज सुकून से रहेगा।
यही वजह है कि ईद, बकरीद और जुमे की नमाज़ को मस्जिद में अदा करना ज़रूरी करार किया गया ताकि अगर कोई बहुत बिज़ी रहता है तो कम से कम हफ्ते में एक दिन मस्जिद में ज़रूर चला जाए और उसके समाज में रिश्ते बने रहें। वह अल्ग-थलग न पड़ जाए।
कोरोना वायरस जैसी महामारी ने दुनिया में पाँव पसारे तो इसके इलाज की पहली कड़ी सोशल डिस्टेंसिंग की शक्ल में सामने आयी। इसी के बाद मंदिर-मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारों और इमामबाड़ों को बंद किया गया। वहां लोगों को जाने से मना किया गया। यह फैसला ज़िन्दगी को बचाने के लिए किया गया है। यह फैसला इसलिए किया गया है कि ज़िन्दगी बाकी बचेगी तो ज्यादा दिन तक इबादत करने का मौका मिलेगा।
जब से होश संभाला अपने बुजुर्गों से यही सुनता आया कि मस्जिद का रास्ता कामयाबी की तरफ ले जाता है। मस्जिद जाने वाला गुनाहों के रास्ते से दूर रहता है। मस्जिद जाने वाले के मन में अल्लाह का डर रहता है इसलिए वह अल्लाह की बनाई हर चीज़ की इज्जत करता है।
वह किसी भी दूसरे इंसान से नफरत के बारे में सोच ही नहीं सकता। मस्जिद जाने वाला यह जानता है कि दुनिया का हर शख्स क्योंकि एक ही ईश्वर की संतान है इस नाते सभी आपस में भाई-भाई हैं। मस्जिद लोगों को आपस में जोड़ना सिखाती हैं।
मस्जिदें दूसरे मजहबों को भी करीब लाती हैं। मस्जिद जाने वाला समाज में किसी नफरत वाली बात का भागीदार नहीं होता है। हमेशा बुजुर्गों ने सिखाया कि मस्जिद अल्लाह का घर है। अल्लाह के घर जाकर की जाने वाली इबादत का 11 गुना सवाब है।
हालात इस तरह से बदले हैं कि सभी को अपने घरों में रहने को मजबूर होना पड़ा है। बाज़ार बंद हैं। सभी ऑफिस बंद हैं। सभी कारखाने बंद हैं। दुनिया की प्रगति वाली गाड़ी में अचानक से ब्रेक लग गया है। हमारी हुकूमत यह साफ़ कर चुकी है कि जो अपने घरों में रहेगा वही जिन्दा रहेगा। वही सेफ रहेगा, वही इस महामारी से दूर रहेगा। कोरोना बहुत बड़ी बीमारी है मगर इससे बचाव बहुत आसान है। घर में रहो और सेफ रहो।
यहाँ यह बात बताना बहुत ज़रूरी लगता है कि जब अल्लाह ने इंसानों के रहने के लिए ज़मीन का फर्श बिछाया था। ज़मीन के इस फर्श पर आसमान की शक्ल में छत बनाई थी। जब प्यास बुझाने के लिए नदियाँ बनाएँ थीं, सांस लेने के लिए हवा चलाई थी। हवा को साफ़ रखने के लिए पेड़ लगाए थे तब मिट्टी से इंसान का पुतला बनाकर उसमें रूह डालने से पहले फरिश्तों से कहा था कि मेरी बनाई इस नई रचना को सब मिलकर सलाम करना। सब फरिश्तों ने वैसा ही किया था लेकिन शैतान ने ऐसा करने से इनकार करते हुए कहा था कि वह आग से बना है और इंसान मिट्टी से बना है इस नाते मैं उससे अफज़ल हूँ।
शैतान के इनकार ने उसे अल्लाह के दरबार से बाहर का रास्ता दिखा दिया। शैतान ने इस सज़ा के बाद अल्लाह से कहा कि हज़ारों साल उसने इबादत की है। इस इबादत के बदले वह कुछ माँगना चाहता है। अल्लाह ने कहा मांग ले। शैतान ने कहा कि रहती दुनिया तक मैं इंसानों को बहकाना चाहता हूँ, उसे तेरी बताई राह से भटकाना चाहता हूँ। अल्लाह ने इजाज़त दे दी। शैतान तब से लगातार लोगों को बहकाने में लगा है।
शैतान इंसान को पूरी ज़िन्दगी मस्जिद में जाने से रोकता है। जो शैतान के बहकावे में नहीं आ पाते वह मस्जिदों में जाकर अल्लाह की इबादत करते हैं लेकिन अब जब एक जगह पर लोगों का जमा होना मुनासिब नहीं है तब लोग घरों से इबादत कर रहे हैं। शैतान भी रमजान में कैद रहता है मगर हो सकता है कि इस रमजान में वह भी पेरोल पर आ गया हो। वह बहकाए कि मुसलमानों मस्जिद में चलों, वहां ज्यादा सवाब है। मुसलमानों को समझना चाहिए कि यह शैतान है जो ऐसे हालात में मस्जिद में बुला रहा है। वह बुलाएगा। तरह-तरह के फायदे बतायेगा। न जाने पर अल्लाह के गुस्से से डराएगा मगर घर में ही इबादत करना है। शैतान के बहकावे में आने का नहीं। जब तक कोरोना न चला जाए मस्जिदों में जाने का नहीं।