न्यूज डेस्क
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर पुरातनपंथी होने और उसी सोच को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है, लेकिन आरएसएस ऐसा नहीं मानता। समय के साथ संघ ने काफी बदलाव किया है। सोशल मीडिया से लेकर कई जगह संघ की दखल हो गई है। अब संघ किताब के जरिए लोगों को बताने की तैयारी में है कि उसकी सोच आधुनिक है और वह वक्त के हिसाब से नई चीजें स्वीकार करने के लिए तैयार है।
संघ प्रचारक और एबीवीपी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुनील आंबेकर ने ‘आरएसएस- रोडमैप फॉर द 21 सेंचुरी’ नाम से किताब लिखी है। इसका विमोचन एक अक्टूबर को संघ प्रमुख मोहन भागवत करेंगे।
इस किताब में संघ की सोच को बताया गया है। संघ प्रचारक आंबेकर ने बताया कि इस किताब के जरिए हम बता रहे हैं कि संघ भूतकाल में नहीं जीता बल्कि भूतकाल से सीखता है, जो अहम है। साथ ही संघ नई चीजें स्वीकारने के लिए तैयार है।
आंबेकर ने किताब का जिक्र करते हुए कहा कि इस किताब के जरिए संघ परिवार को लेकर क्या सोचता है, इस किताब में बताया गया है। संघ का मानना है कि घर के कामों में महिलाओं के साथ पुरुषों की भी भागीदारी होनी चाहिए। चूंकि परिवार अब छोटे हो रहे हैं और महिलाएं भी कमाई के काम में हिस्सा ले रही हैं और इसलिए इस नए फैमिली स्ट्रक्चर में पुरुषों का रोल भी बदलता है।
उन्होंने कहा कि पहले पुरुष कमाई करते थे और महिलाएं घर का काम करती थी। इस तरह से काम का बंटवारा था। हालांकि तब भी गांवों में महिलाएं खेती का काम करती थी, लेकिन अब शहर बढ़ रहे हैं और न्यूक्लियर फैमिली बन रही हैं और ज्यादातर महिलाएं वर्किंग हैं। उन्होंने कहा कि पहले परिवार का पुराना मॉडल था, लेकिन अब नया मॉडल है इसलिए काम के बंटवारे का भी नया मॉडल ईजाद करना होगा।
आंबेकर ने कहा कि अक्सर यह सवाल उठता रहा है कि हिंदू राष्ट्र में मुस्लिमों का क्या होगा? हम इस किताब के माध्यम से बताना चाहते हैं कि संघ के बढऩे से किसी को डरने की कोई जरूरत नहीं है।
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