कृष्णमोहन झा
श्रीमद दयानंद कन्या गुरुकुल महाविद्यालय अमरोहा की छात्राओं को गत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत से संवाद करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
यह उनके लिए अनूठा अनुभव था जब सरसंघचालक ने सहज सरल बोधगम्य भाषा में उनके मन की जिज्ञासा को शांत किया। छात्राएं प्रश्न पूछ रही थी और सरसंघचालक उनके प्रश्नों का इस तरह उत्तर दे रहे थे मानों उनके और छात्राओं के बीच सामान्य वार्तालाप चल रहा हो। छात्राओं को निःसंकोच अपने प्रश्न पूछने की अनुमति थी और मोहन भागवत भी चेहरे पर स्मित हास्य के साथ पूरी तरह सहज होकर उनके हर प्रश्न का जबाब दे रहे थे।
छात्राओं को पल भर के लिए भी यह आभास नहीं हुआ कि उन्हें आज विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति से रूबरू होने का सौभाग्य मिला है।
संघ प्रमुख की व्यस्तता के कारण इस अनूठे संवाद का सिलसिला यद्यपि आधे घंटे तक ही जारी रह सका परन्तु श्रीमद दयानंद कन्या गुरुकुल महाविद्यालय की छात्राओं के लिए यह यादगार अनुभव था। छात्राओं ने सरसंघचालक से धर्म, अध्यात्म, राष्ट्र भक्ति , नारीशक्ति सहित अनेक विषयों पर आधारित प्रश्न पूछे और और उनकी हर जिज्ञासा का सुंदर समाधान संघ प्रमुख ने किया।
जब एक छात्रा ने उनसे प्रश्न किया कि आप सरसंघचालक होने के साथ देश के प्रधानमंत्री व अन्य वरिष्ठ पदों को प्राप्त कर सकते थे। आपने ऐसा क्यों नहीं किया तो संघ प्रमुख ने कहा कि मेरे साथ यहां जो कार्यकर्ता बैठे हैं ,सभी ऐसे हैं। हम सब यहां कुछ होने के लिए नहीं बल्कि देश की सेवा करने के लिए आए हैं। किसी भी स्वयं सेवक से पूछो वह शाखा चलाने की इच्छा जताएगा।
उसके लिए संघ का आदेश सर्वोपरि है।एक अन्य छात्रा का प्रश्न था कि अर्जुन के बलशाली होने पर भी श्रीकृष्ण के उपदेश की आवश्यकता पड़ी थी परन्तु आज उनके अभाव में क्या गीता उपदेश देने में सफल हो पाएगी। इस पर संघ प्रमुख ने उसे सरल शब्दों में समझाते हुए कहा कि
श्रीकृष्ण सत्य हैं। जो सत्य है उसका अभाव नहीं होता। असत्य का कहीं भाव नहीं होता। भारत TF में योगेश्वरों की कभी कमी नहीं रही है। न पहले थी न आज है।
धनुर्धर पार्थ चाहिए। ऐसे लोग चाहिए जो कर्तव्य पथ में धनुष उठाने के लिए तैयार रहें। गीता एक जीवन है। भारत के साथ सनातन संस्कृति बढ़ रही है। भारत चार कदम चला तो दुनिया को लगा कि भारत बढ़ी शक्ति बन रहा है। एक छात्रा के मन में संघ प्रमुख से जीवन के उन संघर्षों को जानने की उत्सुकता थी कि जिन पर विजय प्राप्त करके वे एक सफल व्यक्ति बने। इस प्रश्न के उत्तर में मोहन भागवत ने कहा कि मेरे बारे में सभी को जानने की जिज्ञासा है। ऐसा मैं अकेला नहीं हूं। संघ के सभी कार्य कर्ता ऐसे ही होते हैं। संघर्ष क्या है।
अहंकार को हावी न होने दें। हम अपने मन बुद्धि और शरीर पर वास्तविकता का आवरण करें।
एक दूसरे के सहायक बनें। संघ के विस्तार में महिलाओं की भूमिका से जुड़े प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि संघ में यह सीधे तौर पर नहीं दिखती लेकिन पर्दे के पीछे बहुत बड़ी भूमिका है। संघ के चार हजार स्वयं सेवक अविवाहित हैं और लाखों स्वयंसेवक गृहस्थी में रहकर संघ के काम कर रहे हैं।
उनके घर की माताएं बहनें संघ के लिए समर्पित होकर काम करने देती हैं इसलिए कर पाते हैं। मातृशक्ति के लिए संघ की राष्ट्र सेविका समिति की नौ हजार शाखाएं समाज के लिए काम कर रही हैं। संघ का काम नारियों को उन्नत नहीं सक्षम बनाना है।
मोहन भागवत एक छात्रा के इस प्रश्न पर मुस्कुरा उठे कि आपके नाम के दोनों शब्द ईश्वर का स्मरण कराते हैं। यह नाम रखने के पीछे क्या रहस्य है। भागवत ने कहा कि यह परिजनों का दिया नाम है। भागवत मेरे कुल का है जो बुजुर्गों का दिया हुआ है।
भक्ति का प्रचार करने वाले भागवत कहलाते हैं। हमारे कुल में भी ऐसे रहे होंगे। मैं तो देशभक्ति का प्रचार करता हूं। मैं देश व देव में अंतर नहीं मानता। सरसंघचालक एक छात्रा के इस प्रश्न से बहुत प्रभावित हुए कि देश व धर्म में किसे ऊपर स्थान देना चाहिए और क्या धर्म उन्नति और देश उन्नति अलग-अलग हैं।
इस प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि नहीं,सब एक हैं।जो दुनिया के समय से चलता आया है वह सनातन धर्म है। सत्यार्थ का प्रकाश दिल में हो हम देश हित के लिए काम करते रहें।
मोहन भागवत ने छात्राओं के साथ संवाद कार्यक्रम के पूर्व महाविद्यालय में आयोजित यज्ञ में भाग लिया और नवनिर्मित भवन उद्घाटन किया। उन्होंने महाविद्यालय की 134 छात्राओं के उपनयन संस्कार के बाद उन्हें आशीर्वाद दिया।