राजीव ओझा
चंद्रयान 2 मिशन सौ फीसदी सफल नहीं रहा। जब ऑर्बिटर से अलग होकर लैंडर विक्रम अंतिम क्षणों में भटक गया तो प्रधानमंत्री ने कहा था विज्ञान में असफलता जैसी कोई चीज नहीं होती। जब तक सौ फीसदी सफलता न मिले तब तक प्रयास करते रहना चाहिए। यही विज्ञान की परिभाषा है। यही भाषा मिसाइलमैन एपीजे अब्दुल कलाम की थी और यही भाव राकेटमैन के सिवन के है।
चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में असफल रहा। इस मौके पर के सिवन भावुक हो गए थे। उस समय मिसाइलमैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की यादें ताज हो गईं। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम कहा करते थे कि मेरे लिए नकारात्मक अनुभव जैसी कोई चीज़ नहीं है। जिंदगी और समय, विश्व के दो सबसे बड़े अध्यापक हैं। इंसान को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है, क्योंकि सफलता का आनंद उठाने के लिए ये जरूरी है।
हमे प्रयत्न करना नहीं छोड़ना चाहिए और समस्याओ से नहीं हारना चाहिए। एक ने आम बेच कर पढ़ाई की, दूसरे ने अखबार। एपीजे कलाम और के सिवन में अद्भुत समानता है। दोनों अत्यंत गरीब परिवार से थे। कलाम के पिता नाव चलाते थे और सिवन के पिता आम बेंचते थे। अवुल पकिर जैनुलअबिदीन अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक मुसलमान परिवार मैं हुआ। उनके पिता जैनुलअबिदीन एक नाविक थे।
उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थे इसलिए उन्हें छोटी उम्र से ही काम करना पड़ा। अपने पिता की आर्थिक मदद के लिए बालक कलाम स्कूल के बाद समाचार पत्र वितरण का कार्य करते थे। अपने स्कूल के दिनों में कलाम पढ़ाई-लिखाई में सामान्य थे पर नयी चीज़ सीखने के लिए हमेशा तत्पर और तैयार रहते थे।
उनके अन्दर सीखने की भूख थी और वो पढ़ाई पर घंटो ध्यान देते थे।
उन्होंने अपनी स्कूल की पढ़ाई रामनाथपुरम मैट्रिकुलेशन स्कूल से पूरी की और उसके बाद तिरूचिरापल्ली के सेंट जोसेफ्स कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने सन 1954 में भौतिक विज्ञान में स्नातक किया। उसके बाद वर्ष 1955 में वो मद्रास चले गए जहाँ से उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की। वर्ष 1960 में कलाम ने मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।
1969 में उन्हें ISRO भेज दिया गया जहाँ उन्होंने परियोजना निदेशक के पद पर काम किया। उन्होंने पहला उपग्रह प्रक्षेपण यान (Satellite Launch Vehicle – SLV III) और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (Polar Satellite Launch Vehicle -PSLV) को बनाने में अपना अहम् योगदान दिया जिनका प्रक्षेपण बाद में सफल हुआ।
1980 में भारत सरकार ने एक आधुनिक मिसाइल प्रोग्राम अब्दुल कलाम के डायरेक्शन से शुरू करने का सोचा। इसलिए उन्होंने दोबारा DRDO में भेजा। डॉक्टर अब्दुल कलाम के निर्देशों से ही अग्नि मिसाइल, पृथ्वी जैसे मिसाइल का बनाना सफल हुआ। बात 1979 की है जब अब्दुल कलाम उस समय भारत के प्रथम सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल(SLV-VIII) के प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे और सतीश धवन इसरो के चेयरमैन थे।
लॉन्च के असफल होने की बात याद करते हुए उन्होंने जो कुछ कहा था वह बहुत प्रेरणादायी है। 1979 की उस असफलता को याद करते हुए डॉ. कलाम ने 2013 में एक कार्यक्रम के दौरान बताया था कि असफलता का प्रबंधन कैसे करते हैं। उन्होंने कहा था, ‘वो साल था 1979। मैं प्रोजेक्ट डायरेक्टर था। मेरा मिशन सैटेलाइट को ऑर्बिट में स्थापित करने का था। हजारों लोगों ने 10 साल तक इस पर काम किया।
मैं श्रीहरिकोटा के लॉन्च पैड पर पहुंच चुका था। काउंटडाउन शुरू हो चुका था… टी माइनस 4 मिनट, टी माइनस 3 मिनट, टी माइनस 2 मिनट, टीम माइनस 1 मिनट, टी माइनस 40 सेकंड। और कम्प्यूटर ने उसे होल्ड पर रख दिया… इसे लॉन्च मत करो। मैं मिशन डायरेक्टर था, मुझे निर्णय लेना था।’ मैंने अपने पर भरोसा किया और लॉन्च करने का निर्णय लिया और मिशन फेल हो गया।
तब इसरो के चेयरमैन सतीश धवन मेरे पास आए और कहा चलो प्रेस को जवाब देना है। प्रेस ने कहा कि आप ने करोड़ों रूपये समुद्र में डूबा दिये । तब सतीश धवन ने कहा था कि मुझे अपनी टीम पर भरोसा है और हम जल्द ही इससे बड़े लक्ष्य हांसिल करेंगे। अगले साल ही जब मिशन सफल हुआ तो सतीश धवन ने कलाम से कहा बा तुम प्रेस कांफ्रेंस करो। उस सफलता के साथ भारत अंतरिक्ष मिशन पूरा करने वाला छठवां देश बन गया था।
इसके बाद मई 1981 और अप्रैल 1983 में भी इस रॉकेट की सफल लॉचिंग की गई थी। यही लीडर की पहचान है। वह असफलता की जिम्मेदारी से भागता नहीं और सफलता का श्रेय अपनी टीम को देना भूलता नहीं। कलाम और सिवन में है समानता के सिवन का पूरा नाम है कैलाशावादिवो सिवन। कन्याकुमारी में पैदा हुए। गांव का नाम सरक्कालविलाई। के सिवन की पढ़ाई के लिए भी पैसे नहीं थे।
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गांव के ही सरकारी स्कूल में 8वीं तक पढ़े। आगे की पढ़ाई के लिए गांव से बाहर निकलना था लीडर लेकिन घर में पैसे नहीं थे। के सिवन को पढ़ने के लिए फीस जुटानी थी और इसके लिए उन्होंने पास के बाजार में आम बेचना शुरू किया। जो पैसे मिलते, उससे अपनी फीस चुकाते। आम बेचकर पढ़ाई करते-करते के सिवन ने इंटरमीडिएट तो कर लिया, लेकिन ग्रैजुएशन के लिए और पैसे चाहिए थे।
पैसे न होने की वजह से उनके पिता ने कन्याकुमारी के नागरकोइल के हिंदू कॉलेज में उनका दाखिला करवा दिया। सिवन ने पढ़ाई की और अपने परिवार के पहले ग्रैजुएट बने। मैथ्स में 100 में 100 नंबर लेकर आए। और फिर उनका मन बदल गया। अब उन्हें मैथ्स नहीं, साइंस की पढ़ाई करनी थी। और इसके लिए वो पहुंच गए एमआईटी. यानी कि मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी।
वहां उन्हें स्कॉलरशिप मिली और इसकी बदौलत उन्होंने 1980 में एरोऩॉटिकल इंजीनियरिंग (हवाई जहाज बनाने वाली पढ़ाई) में बीटेक किया। एमआईटी में उन्हें एस नमसिम्हन, एनएस वेंकटरमन, ए नागराजन, आर धनराज, और के जयरमन जैसे प्रोफेसर मिले, जिन्होंने के सिवन को गाइड। जब के सिवन आईआईएस बैंगलोर से बाहर निकले तो वो वो एयरोनॉटिक्स के बड़े साइंटिस्ट बन चुके थे।
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ISRO यानी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेश के साथ उन्होंने अपनी नौकरी शुरू की। पहला काम मिला पीएसएलवी बनाने की टीम में. पीएसएलवी यानी कि पोलर सेटेलाइट लॉन्च वीकल। ऐसा रॉकेट जो भारत के सेटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेज सके। के सिवन और उनकी टीम इस काम में कामयाब रही। रॉकेट साइंस में के सिवन ने इतना काम किया कि उन्हें ISRO का रॉकेट मैन कहा जाने लगा।
उनकी अगुवाई में ISRO ने 15 फरवरी, 2017 को एक साथ 104 सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे. ऐसा करके ISRO ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया। और इसके बाद ISRO का सबसे बड़ा मिशन था चंद्रयान 2, जिसे 22 जुलाई, 2019 को ल़ॉन्च किया गया। 2 सितंबर को चंद्रयान दो हिस्सों में बंट गया। पहला हिस्सा था ऑर्बिटर, जिसने चंद्रमा के चक्कर लगाने शुरू कर दिए। दूसरा हिस्सा था लैंडर, जिसे विक्रम नाम दिया गया था।
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इसे 6-7 सितंबर की रात चांद की सतह पर उतरना था। सब ठीक था कि अचानक संपर्क टूट गया। और फिर जो हुआ, वो दुनिया ने देखा। भावुक पल. ISRO चीफ पीएम मोदी के गले लगकर रो पड़े। सबकुछ उम्मीद के मुताबिक नहीं हुआ। लेकिन ये के सिवन हैं। अपनी ज़िंदगी में भी परेशानियां झेलकर कामयाबी हासिल की है।