राजेन्द्र कुमार
गरीबी संत्रास ग्रस्त के साथ ही उपेक्षित भी होती है। देश और प्रदेश में सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या बीजेपी की, ये सत्य जस का तस है। उत्तर प्रदेश के हर गाँव में इस सत्य के दर्शन होते हैं।
यूपी के लगभग सभी गांवों में यह दिखता है कि गावों के दक्षिणी कोने में रहने वाली गरीबी जब हादसों का शिकार होती है तो उनके चिन्तक मुखर होते हैं लेकिन जमीनी हकीकत की तस्दीक करने वहां तक कोई जाता नहीं। गजब विडम्बना है।
गांव तक शौचालय पहुँचाने वाली मोदी-योगी सरकार के शासन में भी हादसों का शिकार होने वाले गरीब की सुध नहीं ली गई। समरसता का समाज बनाने का नारा लगाने और दावा करने वाली योगी सरकार के इस रुख को समूचे प्रदेश ने देखा। यहां बात हो रही है, लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले के मोहम्मदपुर खाला इलाके के रानीगंज क्षेत्र की, जहाँ बीते दिनों सरकारी ठेके से देशी शराब खरीद कर पीने वाले 20 से अधिक लोगों की मौत हो गई। और 20 से अधिक लोगों की आखों की रोशनी चली गई।
सूबे की राजधानी से सटे इस जिले में इतनी दुखद धटना घटी, लेकिन सत्ताधारी दल के आबकारी मंत्री जय प्रकाश सिंह से लेकर कोई राजनेता मौके पर नहीं पहुचा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जरुर इस घटना पर तब दुःख जताया, जब उन्हें यह पता चल गया कि ये दुःखद घटना स्थानीय पुलिस और आबकारी विभाग की लापरवाही के चलते हुई है। मुख्यमंत्री ने मृतकों के परिवारीजनों को दो-दो लाख रुपये की सहायता दिए जाने की घोषणा करते हुए दोषियों के खिलाफ कड़ी कारवाई करने का दावा भी किया। लेकिन मुख्यमंत्री ये विश्वास नहीं दिला सके कि राज्य में अब ऐसी घटना नहीं होने पायेगी।
वास्तव में मुख्यमंत्री ये दावा करने की स्थिति में नहीं हैं, यदि वह राज्य में जहरीली शराब की बिक्री रोकने में सक्षम होते तो बीते दो वर्षों में जहरीली शराब पी कर करीब दो सौ लोगों की मौत नहीं हुई होती। आबकारी विभाग के आंकड़े बताते हैं कि बीते दो वर्षों में राज्य के आजमगढ़, कानपुर देहात के सचेंडी और रूरा, सहारनपुर, कुशीनगर, कानपुर के घाटमपुर और सीतापुर में डेढ़ सौ से अघिक लोग जहरीली शराब पा कर अपनी जान गंवा चुके हैं।
ये मौते भी तब हुई हैं, जबकि योगी सरकार ने अवैध शराब के कारोबार को रोकने के लिए आबकारी अधिनियम में बदलाव कर अवैध शराब से हुई मौतों के मामले में आरोपी को सजा-ए-मौत तक का प्रावधान किया है। और अवैध शराब की बिक्री के प्रकरणों में अधिकारियों की मिलीभगत और लापरवाही पाए जाने पर बर्खास्तगी तक का प्रावधान किया। लेकिन अब तक इस क़ानून का भय राज्य में नहीं दिखा है। बाराबंकी में हुई घटना इसका सबूत है। यहां के सरकारी शराब ठेके में मिलावटी शराब बेची जा रही थी। जिसे पीकर 20 से अधिक लोगों की जान चली गई।
इस घटना के बाद ठेका मालिक दानवीर सिंह, विक्रेता पप्पू जायसवाल व मनीष सिंह के खिलाफ हत्या व जहरीली शराब बेचने से मौत की धारा में केस दर्ज किया गया है। डीएम उदयभानु त्रिपाठी ने मैजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिए हैं। मुख्यमंत्री ने आबकारी आयुक्त की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की है, जो अपनी जांच रिपोर्ट शासन को देगी।
समिति में आबकारी आयुक्त के अलावा अयोध्या मंडल के कमिश्नर और आईजी अयोध्या को रखा गया है। समिति पता लगाएगी कि जहरीली शराब की आपूर्ति का स्रोत क्या है? और इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं? मुख्यमंत्री के इस एक्शन के बाद प्रशासन ने जिला आबकारी अधिकारी एसएन दुबे, आबकारी निरीक्षक राम तीर्थ मौर्य, सीओ रामनगर पवन गौतम और इंस्पेक्टर रामनगर राजेश कुमार सिंह सहित 15 अधिकारियों और कर्मचारियों को निलंबित कर दिया है। शराब बेचने वाले ठेकेदार को भी गिरफ्तार कर लिया गया है, पर सवाल यह है कि सख्त क़ानून बनाये जाने के बाद भी ऐसी घटनाए रुकती क्यों नहीं है?
सवाल ये भी पूछा जा रहा है कि आखिर क्या वजह है कि यूपी के किसी न किसी जिले में हर साल जहरीली शराब लोगों की असमय मौत का कारण बनती है। सरकार की ओर से कड़े कदम उठाने के दावे जरूर किए जाते हैं, लेकिन अधिकारियों और शराब ठेकेदारों की मिलीभगत से फिर अवैध शराब का धंधा शुरू हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में फिर भट्ठियां धधकने लगती हैं और कच्ची शराब का धंधा शुरू हो जाता है।
ऐसे में आबकारी विभाग के अधिकारी इस मामले में क्यों चूक रहे हैं? राज्य के आबकारी आयुक्त पी गुरु प्रसाद इस सवाल का जवाब नहीं देते। जबकि उनके ही महकमे से एक उपनिरीक्षक पर हरिकेश शुक्ला पर बाराबंकी में जहरीली शराब बेचने वाले ठेकेदार से मिलीभगत के आरोप लगे हैं। राज्य के आबकारी आयुक्त का यह रुख निदनीय है तो राज्य के नेताओं का आचरण भी ऐसे मामलों में ठीक नहीं दिखा है।
बाराबंकी में हुई हाल की घटना में सबने यह देखा कि समरस समाज की बड़ी बड़ी बातें करने वाले सभी राजनीतिक दल और उनके नेता जहरीली शराब की घटना के बाद मौके पे नहीं गए। दुःख की बात तो यह है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव को छोड़ कर किसी विपक्षी दल ने इस मामले में योगी सरकार से जवाब नहीं माँगा। सिर्फ अखिलेश यादव ने यह कहा कि बाराबंकी में जहरीली शराब सरकारी ठेके से ही बेची गई और आबकारी और पुलिस विभाग की नाक के नीचे मौत का व्यापार चलता रहा।
बीजेपी सरकार के दो वर्ष के कार्यकाल में नकली शराब से ही सैकड़ों मौतें होना संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। अखिलेश के इस आरोप का बीजेपी ने कोई जवाब नहीं दिया। तो बाराबंकी की जनता की ओर से सवाल पूछा गया।
बाराबंकी के गांव वाले यह जानना चाहते हैं कि आखिर सबका साथ, सबका विकास की अवधारणा किसके लिए है? क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस नारे की परिधि में वे नहीं आते? क्या किसानों और गरीबों के विकास की बात करने वाली योगी सरकार की कार्रवाई को आधार मानकर अपने कर्तव्यों से किनारा कर सकती है? क्या बहुजन समाज पार्टी की पारम्परिक सोच में कोई परिवर्तन हुआ है? यदि नहीं तो उसके किसी भी नेता ने घटनास्थल की ओर कदम क्यों नहीं बढ़ाए ? क्या उत्तर प्रदेश में नींव तलाश रही कांग्रेस ऐसी घटनाओं से अधिक तरजीह किसी और को दे सकती है?
ये वो सवाल हैं जो जहरीली शराब काण्ड के शिकार हुए लोगों के परिजनों के जेहन में नेताओं के रवैये को लेकर उठे। जिनका वह अब जवाब चाहते हैं, उन सभी राजनेताओं से जो उनकी रहनुमाई का दम्भ भरकर उन्हें भ्रमित कर रहे हैं। फ़िलहाल जनता के इन सवालों के जवाब ना तो सूबे के आबकारी मंत्री दे रहे है और ना ही राज्य के आबकारी आयुक्त। बसपा में तो ऐसे सवालों का जवाब देने के लिए कोई प्रवक्ता ही नहीं है। कांग्रेस के नेता तो राहुल गांधी के इस्तीफ़ा देने के मामले में उलझे हैं ऐसे में वह इस मामले में कोई जवाब देना नहीं चाहते।