सुरेंद्र दुबे
जब कोई व्यक्ति बेइज्जत करके किसी घर से, समाज से और अगर नेता हुआ तो पार्टी से निकाला जाता है तो फिर कहते हैं, बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले या कहें कि निकाले गए। उन्नाव रेप कांड मामले में आरोपी चर्चित विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को आज भारतीय जनता पार्टी ने अपनी आबरू बचाने के लिए पार्टी से निकाल दिया। अब यहां ये समझ में नहीं आ रहा है कि इसमें बेआबरू कौन था।
मेरी दृष्टि में बेआबरू तो भारतीय जनता पार्टी हुई जो वर्षों से सेंगर जैसे गंदे आदमी को कमल के फूल में छिपाये हुए थी। सेंगर तो वैसे ही बेआबरू है क्योंकि किसी नाबालिग लड़की के साथ जो नेता रेप करें और गैंगरेप करवाए उसकी कोई आबरू हो ही नहीं सकती। यह अलग बात है कि भारतीय जनता पार्टी को एक घटिया दर्जें के बेआबरू नेता को पार्टी से निकाल कर अपनी आबरू बचानी पड़ी। पर भगवा चुनरी में दाग तो लग ही गया है जो छिपाये नहीं छिपेगा।
वर्ष 2018 में जब उन्नाव रेप कांड सुर्खियों में आया था तब लोगों को यह आशा थी कि भाजपा अपनी छवि गंदी होने से बचाने के लिए कुलदीप सिंह सेंगर को कम से कम पार्टी की सदस्यता से निलंबित जरूर कर देगी। परंतु भाजपा ऐसा न करके अपनी छीछालेदर कराती रही और कुलदीप सिंह सेंगर और उनके गुर्गें रेप पीड़िता और उसके परिवार के लोगों को धमकाते रहे।
जनता में इसका संदेश गया कि सत्ता में चाहे जो पार्टी हो हर एक पार्टी अपने माननीयों को बचाने में अपनी सारी राजनैतिक मर्यादाएं तोड़ देती है। समाजवादी पार्टी के शासनकाल में गायत्री प्रजापति पर एक युवती के साथ बलात्कार के जब आरोप लगे थे तो यही भाजपा पानी पी-पीकर सपा को कोस रही थी और कुछ इस अंदाज में विहेव कर रही थी जैसे अगर भाजपा की सरकार होती तो गायत्री प्रजापति जैसे नेता को पार्टी से निकालकर जेल के सलाखों के पीछे पहुंचा देते।
पर ऐसा कुछ चरित्र भाजपा का देखने में नहीं आया। सेंगर के खिलाफ भाजपा ने आज तब आनन-फानन में निष्कासन की कार्रवाई की जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया और चीफ जस्टिस ने पूरे मामले पर गंभीरता से संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरु कर दी। भाजपा के आलाकमान ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह को कल ही दिल्ली मुख्यालय तलब कर लिया, जिन्होंने कल यह कहकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी कि कुलदीप सेंगर तो पहले ही पार्टी से निलंबित किए जा चुके हैं।
हालांकि उनका यह बयान सत्य से परे है। कल अपनी आबरू बचाने के लिए स्वतंत्र देव सिंह ने इस तरह का बयान दे दिया था क्योंकि विपक्षी दल लगातार सेंगर को पार्टी से निकाले जाने की मांग कर रहे थे।
पिछले साल सेंगर के जेल जाने के बाद से इस मामले पर कोई चर्चा नहीं हो रही थी और ऐसा लगता था कि सेेंगर इस मामले से बरी होने का कोई न कोई जुगाड़ कर लेंगे। लेकिन 28 जुलाई को रायबरेली में पीड़िता की कार को एक ट्रक ने टक्कर मारकर पूरे परिवार को समाप्त कर देने की कोशिश की। इस दुर्घटना में कार के परखच्चे उड़ गए और पीड़िता तथा उनका वकील गंभीर रूप से घायल हो गए जो इस समय लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में जीवन और मौत से जूझ रहे हैं। इस दुर्घटना में पीड़िता की चाची और मौसी की मृत्यु हो गई। इस दुर्घटना में साजिश की बू आई इसलिए मामले ने तूल पकड़ लिया और मीडिया तथा विपक्ष ने जमकर भाजपा को घेरा।
इस मामले की जब प्राथमिक जांच हुई तो पता चला कि ट्रक के नंबर प्लेट पर कालिख पुती हुई थी और पीड़िता को मिले अंगरक्षक नदारद थे। एक भोंडा तर्क दिया गया कि पीड़िता ने स्वयं उन्हें अपने साथ आने से मना कर दिया था। अब ये सब सीबीआई जांच में पता चलेगा कि पूरी साजिश कैसे रची गई। हो हल्ला मचने पर सरकार ने घटना से पल्ला झाडऩे के लिए मामले को सीबीआई के सुपुर्द कर दिया।
इस बीच यह भी रहस्योद्घाटन हुआ कि पीड़िता के परिवार की ओर से पहले ही सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को पत्र लिखकर अपनी जान को खतरा होने की आशंका जताई थी। यह मामला तब और गूढ़ हो गया जब पता चला कि चीफ जस्टिस को लिखी गई पत्र चीफ जस्टिस के सामने पेश ही नहीं की गई।
इस पर नाराजगी जताते हुए चीफ जस्टिस ने पूरे मामले की सुनवाई करने का निर्णय लिया जिसके फलस्वरूप आज सुप्रीम कोर्ट में इस पूरे मामले को उत्तर प्रदेश के बाहर दिल्ली में ट्रायल कराये जाने का आदेश दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को समझते हुए आज ही पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट भी तलब कर ली और ऐसा समझा जा रहा है कि पीड़िता को इलाज के लिए दिल्ली लाया जा सकता है।
पीड़िता जिस दिन से लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए भर्ती है तभी से उसके परिजन उसे दिल्ली के एम्स में भर्ती कराए जाने की मांग कर रहे हैं। इसके दो कारण हैं- एक तो उन्हें लखनऊ में चल रहे इलाज पर भरोसा नहीं है और दूसरे उन्हें जान का खतरा है। परिजन इतना भयभीत व आतंकित हैं कि उन्हे उत्तर प्रदेश में न्याय मिलने की उम्मीद नहीं है। इसलिए वे मुकदमा दिल्ली से बाहर चलाए जाने की भी मांग करते रहे हैं।
देखा जाए तो सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता व उसके परिवार की दोनों मांगे मानकर फौरी तौर पर उन्हें न्याय देने की कोशिश की है और अगर भाजपा चाहती तो ये दोनों मांगे स्वयं मानकर अपनी छीछालेदर से बच सकती थी। परंतु उनके विधायक प्रेम ने उसे ऐसा कुछ नहीं करने दिया। अंतत: सुप्रीम कोर्ट की तत्परता को देखते हुए भाजपा ने डैमेज कंट्रोल करते हुए सेंगर को पार्टी से निकाल कर अपनी आबरू बचाने की कोशिश की। पर यह घटना भाजपा के दामन पर एक काले धब्बे की तरह चिपक गई है जिसे मिटाकर अपनी चादर साफ-सुथरी दिखाने में भाजपा सफल होगी या नहीं, यह उत्तर भविष्य के गर्भ में छिपा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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