सुरेंद्र दुबे
मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा को केंद्र सरकार की रक्षा मंत्रालय की कमेटी का सदस्य मनोनीत कर भाजपा ने साबित कर दिया है कि प्रखर हिंदूवाद की छवि के नाम पर देश में राजनीति करना उनके एजेंडे में सबसे ऊपर है।
अगर ऐसा नहीं होता तो जो साध्वी प्रज्ञा महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोड़से की समर्थक हैं उन्हें रक्षा मंत्रालय की समिति में कतई नामित नहीं किया जाता। कहा जाता है कि साध्वी प्रज्ञा से स्वयं प्रधानमंत्री बेहद नाराज हैं इसलिए उनके मनोनयन को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। आखिर सरकार इस मनोनयन से जनता में क्या सदेंश देना चाहती है।
डिफेंस मामलों की इस कमेटी में कुल 21 सदस्य हैं। कमेटी में चेयरमैन राजनाथ सिंह के अलावा फारुक अब्दुल्ला, ए. राजा, सुप्रिया सुले, मीनाक्षी लेखी, राकेश सिंह, शरद पवार, जेपी नड्डा आदि सदस्य शामिल हैं। इतने कद्दावर नेताओं वाली कमेटी में साध्वी प्रज्ञा को जगह देकर उनका कद काफी बड़ा कर दिया गया है।
कमेटी में जितने भी सदस्य हैं उनमें साध्वी प्रज्ञा का बायोडाटा सबसे कमजोर है। बल्कि कहें तो बदनाम है। साध्वी प्रज्ञा पहली बार भाजपा की सांसद बनी हैं और उनके पास धरोहर के नाम पर मालेगांव ब्लास्ट के आरोप हैं, जिसमें वह काफी अर्से तक जेल की हवा तक खा चुकी हैं। मुकदमा अभी चल रहा है और वह अपना इलाज कराने के लिए जमानत पर बाहर हैं। न जाने कौन सी मजबूरी थी जिसके तहत एक दागी सांसद को देश की रक्षा के मामले में विचार विमर्श करने वाली कमेटी का सदस्य बना दिया गया है।
इस कमेटी में जम्मू-कश्मीर के कई बार के मुख्यमंत्री तथा केंद्र सरकार में मंत्री रहे फारुख अबदुल्ला भी एक सदस्य हैं जो इस समय कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से नजरबंद चल रहे हैं। हालांकि सरकार लगातार उनकी नजरबंदी से इनकार करती रही है।
कमेटी में दूसरा बड़ा नाम है भारतीय जनता पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा, जो एक साफ सुथरी छवि के नेता हैं और इन्हीं को साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ तथा कथित जांच का जिम्मा सौंपा गया था। हो सकता है कि इस तथा कथित जांच में ही साध्वी प्रज्ञा को निर्दोष पाए जाने के कारण उनका कद कार्यकारी अध्यक्ष के बराबर करने का निश्चय किया गया हो।
कमेटी में एक और बड़ा नाम जो इन दिनों महाराष्ट्र की राजनीति को लेकर पूरे देश में चर्चा का विषय है, शरद पवार का है जो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहने के अलावा केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। हाल ही में महाराष्ट्र में शिवसेना के नेता संजय राउत ने एक बयान के संदर्भ में कहा था कि शरद पवार को समझने में कई जन्म लगेंगे। अब इतने बड़े नेता के साथ साध्वी प्रज्ञा को क्यों जगह दी गई ये समझने में हम लोगों को कई जन्म न सही कई वर्ष तो लग ही सकते हैं। इस कमेटी में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सूले भी एक सदस्य हैं, जिनका कद हर हाल में साध्वी प्रज्ञा से बड़ा है। भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी भी कमेटी में एक बड़ा नाम हैं, जिन्हें पार्टी की दीर्घ कालीन सेवाओं के कारण पुरूस्कृत किया गया है।
हर सरकार में विभिन्न मंत्रालयों में तमाम सलाहकार समितियां बनाई जाती हैं, जिनमें योग्यता के साथ ही राजनीतिक समायोजन या किसी नेता विशेष को ओब्लाइज करना एक सामान्य सी प्रक्रिया है, जिसपर आजकल किसी टिप्पणी का कोई बहुत मतलब नहीं रह गया है। परंतु हर सरकार इस बात का ध्यान जरूर रखती है कि कोई ऐसा नेता कमेटी में न नामित न हो जाए, जिससे सरकार की किरकिरी हो।
परंतु यहां तो हेमंत करकरे ब्रांड साध्वी प्रज्ञा को नामित कर सरकार ने वाकई अपनी किरकिरी करा ली है। जरूर इसमें कोई बहुत बड़ी राजनैतिक मजबूरी रही होगी वर्ना रक्षामंत्री राजनाथ सिंह अपनी छवि के प्रति विशेष रूप से सतर्क रहने वाले नेता हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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