यूं तो ज्यादातर चाटवाले बताशों का अरेंजमेंट साइड में टेबल डालकर करते हैं। उनका सारा फोकस आलू टिक्की, मटर टिक्की, खस्ता, समोसा चाट और दही बड़ों और अब बास्केट चाट पर ही रहता है। कोई यकीन करेगा कि लखनऊ शहर में एक ऐसा प्रतिष्ठान जो पिछले चालीस सालों से सिर्फ पानी के बताशे को लेकर देश दुनिया में छा हुआ है। आखिर क्या खासियत है इनके बताशों की, पानी की और उसमें भरी जाने वाले मटर की। आइये इन सवालों का जवाब पाने के लिए काल के पहिये को थोड़ा उलटा घुमाते हैं।
कैंट यानी सदर क्षेत्र के जो पुराने बाशिंदे हैं वे स्व. श्री राम कुमार वैश्य जी से बखूबी परिचित होंगे। 1982 में एक ठेले पर राम कुमार जी ने ही पानी के बताशे लगाना शुरू किये थे।
वो सस्ती और मस्ती का जमाना था। आदमी सिर्फ खाने के लिए ही कमाता था। बताशे भी पचास पैसे में पांच मिला करते थे। बद बदकर बताशे खाये जाते। इधर शर्त लगती उधर बताशों की झड़ी।
सेहत का नुकसान तो कुछ होना नहीं था। राम कुमार जी देखरेख में मसाले घर में धोए-छाने, कूटे-पीसे जाते।आयुर्वेदिक मसालों से तैयार बताशों का पानी पेट के तमाम रोग दूर तो करता ही था, भूख बढ़ाता था सो अलग।
बताशों में मेन रोल होता है उसके बोलते हुए खरे मसालों से तैयार स्ट्रांग पानी का। पहले लोग गुटखा नहीं खाया करते थे। सो तीखा पानी सी सी करते हुए बताशे खाने के बाद, दोना थामे और दो ना और दो ना करते हुए कई कई दांव गटक जाते थे। आज गुटखा और पान मसाला प्रेमियों के लिए मीठा पानी रखा जाता है।
हां, तो बात हो रही राम कुमार जी के जमाने की। पिताजी के साथ उनके ज्येष्ठ पुत्र पवन कुमार जी, जब मात्र बारह साल के थे, तभी से उनका बताशे निर्माण से लेकर बिक्री तक में विशेष योगदान रहता।
पिताजी भी अपनी कार्यशाला में इस शिष्य पर विशेष कृपा बनाये रखते और सारे सीक्रेट उसकी घुट्टी में घोलते रहते। पवन कुमार जी अब पूरी तरह परफेक्ट हो गये तो ठेले से दुकान में काउंटर लगाकर सारा कार्यक्षेत्र शिफ्ट हो गया।
‘अब एक की जगह तीन रकम का पानी बताशों में भरा जाता। नार्मल, स्ट्रांग और मीठा। लोगों को बताशे इतने ज्यादा भाते कि वे मीलों दूर से सिर्फ बताशों का लुत्फ लेने चलकर आते।
शहर से बाहर जाने पर पार्सल मंगवाते। हमारे बताशे दिल्ली, मुम्बई, बंगलुरु, पंजाब तक रेगुलर जाते हैं। यही नहीं हमारे बहुत से ग्राहक अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, पेरिस, थाईलैंड व दुबई से जब भी लौटकर आते हैं न सिर्फ बताशे खाते हैं बल्कि बांध कर भी ले जाते हैं। हमारी शॉप पर अखिलेश दास व स्वाति सिंह जी भी आ चुकी हैं। यूं तो मुलायम सिंह जी व कल्याण सिंह के घर अक्सर हमारे बताशे ही जाते हैं। हमें अक्सर सुनने को मिल जाता है कि अंकल केवल बताशे ही क्यों रखते हैं? अगर आप चाट की पूरी रेंज रख लें तो हमें और कहीं नहीं जाना पड़ेगा।
कुछ नहीं तो दही चटनी के बताशे तो रख ही लीजिए! आखिर लोगों की जबर्दस्त डिमांड को पूरा करते हुए हमने दही चटनी के बताशे भी रखना हाल ही में शुरू किया है।
2016 में दुनिया से जाते समय मेरे पिताजी ने कहा था कि उतना ही बोझा सिर पर धरो कि जिससे तुम बिना गिराये और फैलाये सुविधाजनक स्थितियों में ले जा सको। कम काम फैलाओ, जो करो अच्छा करो। पिताजी की इस सीख को हम सब गांठ में बांधकर रखते हैं।” बताते हैं ओनर पवन कुमार जी।
‘हमारे बताशे के पानी में जो मसाले डाले जाते हैं उन्हें रोज के रोज फ्रेश पिसवाया जाता है। यही नहीं नींबू तक हम छील कर रस निकलवाते हैं। कालानमक को घोलकर छानकर इस्तेमाल करते हैं। पानी में डाली जाने वाली हींग भी बाहर से मंगवाई जाती है।
यह सब आरओ वाटर में ही घोले जाते हैं। हमारा पानी बाकी लोगों की बनिस्पत ज्यादा गाढ़ा व चटपटा होता है। चूंकि हम इमली और कली खटाई से पानी बनाते हैं।
हम टाटरी जैसे किसी कैमिकल का इस्तेमाल नहीं करते इसलिए हमारा पानी फायदा ही करता है नुकसान नहीं।” बताते हैं पवनजी।
‘आज हमारे जैसा लखनऊ में कोई दूसरा प्रतिष्ठान नहीं है।
हमारे वर्कर बाकायदा हेड कैप, गल्ब्स व वेल ड्रेस्ड (यूनीफार्म में) रहते हैं। हम हाईजीन और साफ सफाई का विशेष ध्यान रखते हैं। कोरोना की वजह से हम प्लेट में बताशों में मटर भरकर, बताशे का पानी गिलास में भर, प्लेट के साथ देते हैं।” बताती हैं पवन जी के साथ बिजनेस सम्भालती उनकी धर्मपत्नी प्रीति वैश्य।