न्यूज़ डेस्क
धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश में भेदभाव के मामले में सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की पीठ गुरुवार को सुनवाई के कानूनी प्रश्न तय करेगी। यह मामला नौ जजों की पीठ को भेजा जा सकता है कि नहीं इस पर भी विचार होगा। कुछ वकीलों ने सबरीमाला के साथ सभी धर्मों में महिलाओं से भेदभाव का मामला रिव्यू की सुनवाई में बडी पीठ को भेजने पर आपत्ति उठाई थी।
सुप्रीम कोर्ट विभिन्न धर्मों में और केरल के सबरीमला मंदिर सहित विभिन्न धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के बारे में चर्चा के लिए आज मुद्दे तय करेगा। इन मुद्दों में मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश, दाउदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं का खतना और गैर पारसी पुरूषों से शादी कर चुकी पारसी महिलाओं के पवित्र अग्नि स्थल में प्रवेश शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से SG तुषार मेहता ने बहस की शुरुवात की। SG तुषार मेहता ने कहा कि सभी पक्षों में सवालों को लेकर सहमति नही बन पाई है। पीठ को सवाल खुद तय करने चाहिए किन सवालों पर सुनवाई हो। इसके लिए ये जरुरी नहीं कि खुली अदलत में ही ये तय किया जाये। सवालों को आप चैम्बर में भी तय कर सकते हैं।
जबकि पक्षकारों की ओर वरिष्ठ वकील फली नरीमन ने पांच जजों के संविधान पीठ द्वारा बडी बेंच को भेजे जाने पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि क्या इस मामले में पुर्विचार करते समय इस क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल किया जा सकता है?
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की संविधान पीठ ने कहा कि, ‘हम यहां सबरीमला पुनर्विचार के लिए नहीं हैं। बल्कि हम यहां बड़े मुद्दे को तय करने के किये बैठे हैं’। जिसमें सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की मांग जैसी मुस्लिम महिलाएं भी मस्जिद में प्रवेश मांग रही हैं।
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इसके साथ ही दाउदी बोहरा में महिलाएं का खतना और पारसी महिलाओं के दूसरे धर्म में शादी करने पर अग्यारी पर रोक को भी चुनौती दी है। मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद प्रवेश मामले में CJI जस्टिस बोबड़े ने कहा एक वर्ग का कहना है कि मुस्लिम महिलाएं मस्जिद में तो प्रवेश कर सकती है लेकिन वो पुरुषों के साथ इबादत नही कर सकती।
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वहीं, कपिल सिब्बल ने वरिष्ठ वकील फली नरीमन की बात पर सहमति जताते हुए कहा कि ये ऐसे मुद्दे है जिसका असर सभी धर्मों और वर्गों पर पड़ेगा। आप जो भी बोलेंगे उसका असर सभी पर पड़ेगा। इसका असर जाति व्यवस्था पर भी पड़ेगा आप इसे कैसे तय करेंगे।
गौरतलब है कि 28 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल से 50 साल के उम्र की महिलाओं को सबरीमाला के भगवान अयप्पा के मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी। इसके साथ ही कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक की परंपरा को असंवैधानिक बताया था।
हालांकि, कोर्ट के इस फैसले पर कई लोगों को संस्थाओं ने आपत्ति जताई थी। इसके बाद कई याचिकाएं इस फैसले के खिलाफ दाखिल की गई थीं। पिछले साल 14 नवंबर को दूसरी पांच जजों की बेंच ने मामला सात जजों की बेंच तो सौंप दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 13 दिसंबर को कहा था कि सबरीमाला मंदिर मसले पर साल 2018 का आदेश अंतिम नहीं था। बाद में चीफ जस्टिस ने सभी संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के लिए नौ जजों की बेंच का गठन कर दिया था।