Monday - 28 October 2024 - 2:13 AM

वैचारिक परिपक्वता के सोपान चढ़ती आरएसएस

केपी सिंह

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वैचारिक परिपक्वता के नये युग की ओर अग्रसर है। मोहन भागवत ने अपने कार्यकाल में आधुनिक तकाजे के मद्देनजर संघ के वैचारिक संस्कारों में जो रूढ़ि का रूप ले चुके थे 90 डिग्री का बदलाव लाने की कोशिश की है। मोहन भागवत संघ के सबसे सफल प्रमुख हैं। जिनके कार्यकाल में पहली बार संघ के मार्गदर्शन के कारण भाजपा को केन्द्र में बड़ा बहुमत मिला और उसने अपनी सत्ता को दूसरी बार रिपीट किया।

उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में बड़े बहुमत से भाजपा सत्ता के दुर्ग में मजबूती के साथ कब्जा जमाने में सफल रही है। निश्चित रूप से मोदी और शाह की जोड़ी का भी इस सफलता में महती योगदान है। लेकिन आज के समय में अगर संघ का नेतृत्व प्रभावी हस्तक्षेप में सक्षम न होता तो क्या गुजरात के लोकल माने जाने वाले ये नेता राष्ट्रीय पटल पर उभार में आ सकते थे।

संघ प्रमुख का ताजा मूर्तिभंजक बयान राष्ट्रवाद को लेकर है। उन्होंने स्वयं सेवकों को इसके प्रयोग से बाज आने को कहा है। उन्होंने कहा है कि इससे नाजीवाद और हिटलरवाद की बू आती है जिसके कारण राष्ट्रवाद की दुहाई को लेकर विश्व बिरादरी में अर्थ का अनर्थ हो सकता है।

इसके पहले उन्होंने राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जब यह पूछा गया कि क्या अब संघ कृष्ण जन्म भूमि की मुक्ति के लिए आंदोलन का सूत्रपात करेगा तो कहा कि संघ ने न तो राम मंदिर के लिए आंदोलन छेड़ा था और न कृष्ण मंदिर के लिए छेड़ेगा। संघ का कार्य मानव निर्माण है और वह इसी में लगा रहेगा। जहां तक राम मंदिर आंदोलन का प्रश्न है उसमें संघ की भागीदारी के पीछे ऐतिहासिक कारण थे।

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संघ की सर्व भारतीय समाज में स्वीकार्यता के लिए मोहन भागवत के इस बयान ने कट्टरता की उसकी आम छवि को काफी हद तक पोंछने का काम किया है जो कि प्रशंसनीय है। संघ की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की थ्योरी को वे ऐसा मोड़ दे रहे हैं जो कि मुसलमानों के लिए सांत्वनाप्रद हो और इस वजह से मुसलमानों का एक वर्ग भले ही उसकी संख्या कम हो संघ से जुड़ने लगा है।

इस समय देश नाजुक मोड़ पर खड़ा है। अतिवादी शक्तियों को इस दौरान जाने अनजाने में जबरदस्त बढ़ावा मिला है। भाजपा के केन्द्रीय मंत्री तक बेहूदा बयानवाजी से बाज नहीं आते। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आवेशपूर्ण प्रतिक्रियायें इस आग में घी डालने का काम कर रही हैं।

संघ ऐसे में अगर अपनी भूमिका स्पष्ट नहीं करेगा तो देश में अनर्थ रच जायेगा। संघ में स्वयं सेवकों को संस्कारित करने के लिए ट्रेनिंग होती है जिससे वे संयत और आज्ञाकारी होते हैं। संघ का नेतृत्व उन्हें अपने तरीके से मोड़ने में सफल रहता है। उदाहरण सामाजिक समरसता के मोर्चे पर संघ का काम है। जातिगत ऊंच नीच की कट्टर भावनायें रखने वाले स्वयं सेवकों ने भी अपने नेतृत्व से दिशा निर्देशित होने के बाद तथाकथित अछूतों को भी उनकी मानवीय गरिमा के अनुरूप उन्हें अपनाकर दिखाया। यह कार्य किसी क्रांति से कम नहीं है लेकिन संघ के स्वयं सेवक मौन साधक हैं।

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विश्व हिन्दू परिषद, गौ रक्षक दल और अनेकों स्वयंभू हिन्दू संगठन इस बीच खरपतवार की तरह उगे हैं जो स्वयं को समाज में संघ की मानस संतान के रूप में प्रस्तुत करते हैं। संघ अपनी इन अयाचित संतानों को लेकर सार्वजनिक रूप से इनसे पल्ला झाड़ने की घोषणा भी नहीं कर सकता ऐसे में संघ प्रमुख का यह कदम बेहद बुद्धिमत्ता से भरा है जिसमें वे बड़ी लकीर खींचकर संघ की स्थिति बिना तनाव उत्पन्न किये हुए स्पष्ट करते जा रहे हैं।

राष्ट्रवाद को लेकर जिस तरह का बयान संघ प्रमुख ने दिया वैसे विचार अगर किसी और ने दिये होते तो सोशल मीडिया पर उसकी मां बहिन शुरू हो गई होती। यह तरीका भी बेहद गलत है और इससे हिन्दुओं की सुसभ्य व सुसंस्कृत छवि में जबरदस्त दरकन आ रही है।

हिन्दुओं में शास्त्रार्थ की परंपरा रही है जिसके तहत अनर्गल लगने वाले विचारों को उसके मनीषी विद्वतापूर्ण तर्को से काटते थे। इस तरह अध्यवसाय की परंपरा यहां के समाज की विशेषता बन गया था पर भाजपा के समर्थन के नाम पर जंगलीपन की इंतहा होती जा रही है।

ऐसे में व्यापक मंच की जरूरत है जो स्थितियों को संभाल सके। संघ की वर्तमान में विराट स्वीकार्यता बन चुकी है लेकिन उसकी महानता यह है कि बड़प्पन के इस एहसास से इतराने की बजाय वह देश और समाज को पटरी पर बनाये रखने के अपने ऊपर गुरूतर बोझ को समझने का एहसास करा रहा है। जो कि वर्तमान दौर में लोकतंत्र को बचाये रखने के लिए संजीवनी के विकल्प की तरह है।

सरकार चलाने के अलावा सामाजिक स्तर पर देश में अभी बहुत कार्य होना है। संघ सरकार से निश्चित दूरी बनाकर इसके लिए काम की शुरूआत कर सकता है तो गांधी और जेपी जैसे संरक्षकों पूर्ति के लिए उसके जरिये बड़ा कार्य संभव है।

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