रूबी सरकार
रामजन्मभूमि पूजन के तुरंत बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत का भोपाल आना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय है। सूत्रों के अनुसार ऐसे वक्त संघ प्रमुख स्वयंसेवकों से व्यक्तिगत बातचीत कर रहे हैं। जब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा और संगठन महामंत्री सुहास भगत कोरोना संक्रमण के चलते एक सप्ताह के लिए होम आईसोलेशन में हैं और उनकी मुलाकात शायद संघ प्रमुख से नहीं होगी। ऐसे में संगठनात्म बदलाव के संकेत और कई प्रचारकों को नई जिम्मेदारी सौंपना उपचुनाव को साधने की कोशिश तो नहीं है!
बताते चले, 2 जुलाई को मंत्रिमण्डल का विस्तार के साथ ही 24 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव की गतिविधियां तेज होने की संभावना जताई गई थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, जबकि उसके बाद उपचुनाव के सीटों की संख्या बढ़कर 27 हो गई। मंत्रिमण्डल विस्तार के बाद भाजपा ने 15 दिन में ही कांग्रेस को तीसरा बड़ा झटका दे दिया। 12 जुलाई को प्रद्युम्न सिंह लोधी, 17 जुलाई को सावित्री देवी के बाद 23 जुलाई को मांधाता सीट से कांग्रेस विधायक नारायण सिंह पटेल ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया। हालांकि झटके से उबरने के लिए कांग्रेस भी भाजपा पर पलटवार कर रही है।
कांग्रेस ने प्रेमचंद गुड्डू, बालेंदु शुक्ल, अजब सिंह के बाद भाजपा सरकार में मंत्री रहे कन्हैयालाल अग्रवाल को पार्टी में शामिल कर लिया है। विधायकों को तोड़कर भाजपा उप चुनावों में जीत का वातावरण बना रही है, तो कांग्रेस भी जीतने की क्षमता वाले नेता तोड़कर भाजपा पर पलटवार कर रही है। इस तरह भाजपा-कांग्रेस के बीच उपचुनाव में एक-दूसरे को मात देने का दिलचस्प खेल जारी है।
प्रदेश में 25 विधायकों के इस्तीफे से कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही है। पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के 22 विधायकों ने इस्तीफे दिए थे। इसके बाद तीन और ने दे दिए। दो सीटें विधायकों के निधन के कारण खाली हैं। उधर भाजपा अब भी कह रही है कि कांग्रेस के कुछ और विधायक संपर्क में हैं। ऐसा लग रहा है कि कमलनाथ के हाथ से सब फिसल रहा है।
इधर उपचुनाव के तारीखों का एलान न होने से 2 मंत्रियों के कुर्सी छीनने का खतरा बढ़ गया है। क्योंकि नियमानुसार बगैर विधानसभा का सदस्य रहे किसी को भी 6 माह के लिए ही मंत्री बनाया जा सकता है। उप चुनाव न हुए और मंत्री रहते 6 माह हो गए तो सबसे पहले मंत्री बनने वाले बागी विधायक तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को इस्तीफा देना पड़ सकता है। जिन्हें सबसे पहले कोरोना के दौर में शिवराज के 5 सदस्यीय मिनी कैबिनेट में अवसर मिल गया था।
इधर उपचुनाव जीतने की चुनौती के बीच कांग्रेस पार्टी में एक नई बात जो उभर कर आ रही है, वह यह है, कि युवा नेता के एक-दूसरे के प्रतिद्वंदी के रूप में सामने आने लगे हैं। जयवर्धन सिंह, नकुलनाथ, जीतू पटवारी तथा उमंग सिंघार में अलग प्रतिस्पर्द्धा देखी जा रही है।
सिंघार बड़े नेताओं पर हमला करने से नहीं चूकते, तो कमलनाथ के चिरंजीव और सांसद नकुलनाथ साफ तौर पर कह चुके हैं, कि मध्यप्रदेश में होने वाले 27 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनावों में युवाओं का नेतृत्व वे खुद करेंगे। उनकी बात का जनता यही मतलब निकाल रही है, कि आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी में उनका दखल बढ़ने वाला है। इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि उनके बेटे जयवर्द्धन को जनता प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। जयवर्द्धन को भावी मुख्यमंत्री बताए जाने वाले होर्डिंग उनके जन्मदिन पर कुछ दिनों पहले भोपाल में लगाए गये थे। हालांकि नकुलनाथ को नेतृत्व दिए जाने के होर्डिंग भी भोपाल में लगाए जा चुके हैं। बहरहाल कांग्रेस में कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह की पारी अभी और चलेगी या उनके राजनीतिक भविष्य पर विराम लग जाएगा, उप चुनाव के नतीजों से यह भी तय हो सकता है।
मध्यप्रदेश विधानसभा में सदस्यों की ताजा स्थिति…
- मध्य प्रदेश विधानसभा में कुल 230 सदस्य।
- 27 सीटें खाली होने से विधानसभा में 203 सदस्य बचे।
- कांग्रेस के अब 89 विधायक।
- भाजपा के पास 107 विधायक।
- 4 निर्दलीय, 2 बसपा और 1 सपा का विधायक।
- बसपा की रामबाई एवं सपा के राजेश शुक्ला को पार्टी से निकाला जा चुका है।