न्यूज डेस्क
कारगिल युद्ध के नायक और पूर्व सेना अधिकारी मोहम्मद सनाउल्लाह को विदेशी घोषित किया किया है। इसके बाद उन्हें हिरासत में लेकर नज़रबंदी शिविर भेज दिया गया। सनाउल्लाह लंबे समय तक सेना में सूबेदार फिर मानद लेफ्टिनेंट पद पर काम किए। जी हां, असम के मोहम्मद सनाउल्लाह जिन्होंने 30 साल तक भारतीय सेना में अपनी सेवा दी, उन्हें असम के विदेशी न्यायाधिकरण ने उन्हें विदेशी घोषित कर दिया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह मामला 2008 से चल रहा था, तब सनाउल्लाह का नाम मतदाताओं की सूची में ‘डी’ (संदिग्ध) मतदाता के रूप में दर्ज किया गया था।
द एशियन एज में प्रकाशित खबर के अनुसार ट्राइब्यूनल के इस कदम से सूबेदार सनाउल्लाह के कोलोही गांव के लोग काफी नाराज हैं। उनके चचेरे भाई और रिटायर्ड सैन्याधिकारी अजमल हक कहते हैं कि सनाउल्लाह को कोर्ट में दायर एक झूठे बयान के आधार पर विदेशी घोषित कर दिया गया। विदेशी घोषित होने के बाद सनाउल्लाह को परिवार सहित गोलपाड़ा के नज़रबंदी शिविर भेजा गया।
बयान में रिटायर्ड सूबेदार के हवाले से यह आरोप है कि उन्होंने 1978 में सेना में नौकरी शुरू की, जबकि उनका जन्म 1967 में हुआ था।अजमल कहते हैं, ‘हमने उन्हें दस्तावेज दिखाए कि वे (सनाउल्लाह) 1987 में सेना में शामिल हुए थे। उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया।
सनाउल्लाह ने कभी यह नहीं कहा कि उन्होंने 1978 में आर्मी जॉइन की थी।’ उन्होंने कहा कि, ‘ट्राइब्यूनल ने नाम में जरा सी गलती के चलते उनके जमीनी कागजात तक स्वीकार नहीं किए। अब स्पेलिंग सही नहीं है तो हम क्या कर सकते हैं? यह तो सरकारी अधिकारियों की जिम्मेदारी है।’
सनाउल्लाह ने कहा, ‘उनका दिल टूट गया है। भारतीय सेना में तीस साल तक सेवा देने के बाद मुझे यह ईनाम मिला है।’ सनाउल्लाह ने शिविर में जाने से पहले पत्रकारों से कहा कि वह एक भारतीय नागरिक हैं और उनके पास नागरिकता संबंधी सभी आवश्यक दस्तावेज हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने देश की सेना में 30 वर्षों (1987-2017) तक इलेक्ट्रॉनिक और मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के एक अधिकारी के रूप में सेवा की और 2014 में राष्ट्रपति के पदक से सम्मानित किया गया।
सनाउल्लाह को विदेशी घोषित करने वाले ट्राइब्यूनल के सदस्य और वकील अमन वादुद ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखी। इसमें उन्होंने रिटायर्ड सैनिक को लेकर लिए गए फैसले की एक वजह का जिक्र किया। उन्होंने लिखा, ‘सनाउल्लाह 1986 की वोटर लिस्ट में शामिल नहीं थे। वे तब 19 साल के थे। वहीं, 1989 में वोट डालने के लिए जरूरी उम्र 21 से 18 हो गई थी।’
पुलिस पर ठीक से जांच न करने का आरोप
इस मामले की ठीक से जांच न करने का पुलिस पर आरोप है। हालांकि पुलिस ने इससे इनकार किया है। पुलिस का कहना है कि उसने दो मौकों पर सूबेदार के बयान लिए हैं।
उसने बताया कि न्यायाधिकरण के फैसले के बाद सनाउल्लाह को हिरासत में ले लिया गया है। उधर, सनाउल्लाह के परिवारवालों ने बताया कि वे न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ गोवाहाटी उच्च न्यायालय में अपील करेंगे।