डा. रवीन्द्र अरजरिया
देश की राजनीति को लेकर पाकिस्तान में कसीदे पढे जा रहे हैं। विदेश नीति से लेकर रक्षा नीति तक की मजबूती की कसमें खाते हुए इमरान खान ने विगत कुछ दिनों में भारत की ओर आशा भरी नजरों से देखना शुरू कर दिया था।
मुसीबत में दुश्मन को गले लगाने की कवायत शुरू कर दी थी, परिणामस्वरूप उन्हीं के देश में उन्हें भारत जाने की सलाह दी जाने लगी। कानूनी दावपेंचों से कुर्सी बचाने की कोशिश पर आखिर पानी फिर ही गया।
अमेरिका को कोसने तथा विदेशी ताकतों के पाकिस्तान में घुसपैठ करने जैसे आरोपों के मध्य विपक्ष को घेरने की चालें आखिरकार असफल हो ही गईं। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देशों के साथ अपनी मत व्यक्त किया।
अविश्वास प्रस्ताव को लेकर लम्बे समय तक टोलमटोल चलता रहा। संवैधानिक संकट खडा करने की पुरजोर कोशिश की गई। जहां वर्तमान भारत की मजबूती को लेकर बयानबाजी हुई, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेई के पारदर्शी व्यक्तित्व को भी रेखांकित किया गया।
इमरान ने विश्व की महाशक्तियों को भी हिन्दुस्तान के सामने बौना साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोडी तो उनके विपक्ष ने अटल जी के सिध्दान्तों की दुहाई देते हुए वास्तविकता को स्वीकारने की सीख दे डाली।
पडोसी देश के राजनैतिक घटनाक्रम को लेकर समूची दुनिया मजे ले रही है। विश्व में नीचे से चौथे नम्बर के पासपोर्ट वाले देश की साख निरंतर ढलान पर लुढ़कती ही जा रही है।
जबकि स्पष्ट नीतियों और दूरगामी योजनाओं के कारण आज दुनिया में चौधराहट दिखाने वाले देश भी भारत के लिए रेड कारपेट बिछा रहे हैं। रूस-यूक्रेन मुद्दे पर अमेरिका ने भारत पर पहले व्यापक दबाव बनाने की प्रयास किया किन्तु अपने सिध्दान्तों पर अडिग रहने के कारण अंत में थकहार कर उसे भी नरम रुख अपनाना ही पडा।
विश्वगुरु के सिंहासन की ओर बढते देश को अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। खासतौर पर वित्तीय मजबूती, सुरक्षा उपकरणों पर स्वावलम्बन, उत्पादन में बढोत्तरी, खाद्यान्नों की पैदावार में वृध्दि, रोजगार की संभावनाओं की तलाश, विदेशी मुद्रा भण्डार में बढ़ोत्तरी, अलगाववादी ताकतों का निर्ममता से दमन, राष्ट्रद्रोहियों को कठोर दण्ड, षडयंत्रकारियों का सप्रमाण पर्दाफाश करने जैसे अनेक कारकों को अमली जामा पहनाना पड़ेगा और इन सब से ज्यादा जरूरी है एक देश-एक कानून-एक अधिकार।
विपक्ष को भी वास्तविक विपक्ष की भूमिका का निर्वहन करना चाहिये। सत्य की इसलिये आलोचना नहीं होना चाहिए कि वह किसी पार्टी विशेष व्दारा प्रस्तुत किया गया है। सत्ता और विपक्ष को रचनात्मक सोच के साथ नागरिकों के हितों में कार्य करना चाहिये, जबकि हो यह रहा है कि दलगत स्वार्थ और वोट बैंक की चालों ने वास्तविकता को हाशिये पर पहुंचा दिया है।
एक दल यदि कोई रचनात्मक कृत्य को परिणाम तक पहुंचाने की कोशिश करता है तो दूसरा उसे विध्वंसात्मक कार्य के रूप में परिभाषित करके स्वयं को ज्यादा ज्ञानी साबित करने में जुट जाता है।
सम्प्रदायवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद और परिवारवाद जैसे खटमलों से देश को खोखला करने की कोशिश की जा रही है। वास्तविक धर्म को किस्तों में कत्ल करने वाले कट्टरता के आइने में अपनी जीवन जीने की पध्दतियां, इबादत के तरीके और सामाजिक व्यवस्था को समूची दुनिया पर थोपने में लगे हैं। यहीं से शुरू होता है आतंकवाद, जेहाद और फरमानों का तांडव।
चन्द लोगों के बरगलाने वाले शब्दों के जाल में फंसकर लोग फिदायनी बन रहे हैं। अनदेखी दुनिया में हूरों के संग मौज करने के ख्वाइशमंदों की जिन्दगी से खेलने वाले खुद को कभी भी मोर्चे पर नहीं झौंकते।
पूरी दुनिया में वर्चस्व की जंग जारी है। कोई कर्ज देकर ब्याज पर ब्याज लगाकर गुलामों की तादात में इजाफा करने में जुटा है तो कोई देश की सीमायें बढाने में लगा है। कोई सदियों पुराने वाकया को आज भी दुश्मनी का जामा पहनाये बैठा है तो कोई काफिर के मायनों में पड़ोसी को ढूंढ रहा है। पैसों की दम पर शरीर का सुख चाहने वालों का जमीर खरीदने वाले चन्द लोग आज मजहब का वास्ता देकर इंशानियत का दुश्मन बनने में जुटे हैं। कुल मिलाकर भौतिकता ने अध्यात्मिकता को पूरी तरह से नस्तनाबूत कर दिया है।
जिस्म मौजूद है मगर उसके अन्दर का जमीर मरता जा रहा है। दुनिया का कोई भी मजहब जुल्म करना नहीं सिखाता, दूसरों को तकलीफ देना नहीं सिखाता, इंसानियत को अलविदा करना नहीं सिखाता, जबरजस्ती करना नहीं सिखाता, धोखा देना नहीं सिखाता।
अगर सिखाता है तो भाईचारा, मुहब्बत, हिफाजत, सहयोग और समर्पण। मगर अच्छाइयों से कोसों दूर पहुंच चुके अनेक स्वयंभू धर्मगुरुओं ने अपने-अपने खेमे बना डाले हैं। आग उगलना शुरू कर दिया है।
दूसरों का डर दिखाकर आक्रामक होना सिखा दिया है। यह सब यूं ही नहीं हुआ। दीर्घकालनीन षडयंत्र का ही परिणाम हैं वर्तमान वैमनुष्यता। इन षडयंत्रों का सामना करते हुए हमारे राष्ट्र ने अनेक कीर्तिमान भी बनाये हैं।
ईमानदाराना बात तो यह है कि सुखद परिणामों तक पहुंचाती है संकल्प शक्ति। अतीत गवाह है कि देश ने विगत कुछ सालों में जहां प्राकृतिक प्रकोपों से लेकर दैवीय आपदाओं को झेलते हुए भी उल्लेखनीय प्रगति की है।
चाहे यूक्रेन से छात्रों की सकुशल वापिसी हो या फिर अफगानस्तान से नागरिकों को बुलाना। तालिबान के कब्जे के बाद अफगानियों को खाद्यान्न पहुंचाना हो या श्रीलंका की सहायता। कोरोना काल में दुनिया को भेजी जाने वाली मदद हो या फिर दयनीय देशों को सहयोग।
इसी का परिणाम है कि आज तिरंगे के सामने दुनिया झुक रही है। ऐसे में यदि सभी दल मिलकर विकास के मार्ग प्रशस्त्र करने में सहयोगी बनकर उभरें, धर्मगुरू वास्तविक धर्म की शिक्षा देने लगें, जयचन्दों को बेनकाब किया जाने लगे, राष्ट्रद्रोहियों को कठोर सजा दी जाने लगे, एक देश-एक कानून-एक अधिकार लागू कर दिया जाये तो वह दिन दूर नहीं जब विश्वगुरू का सिंहासन स्वयं चलकर देश की चौखट पर दस्तक देने लगेगा। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।