न्यूज डेस्क
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के मन में लोकसभा चुनाव में हुई करारी हार की कसक अभी भी बनी हुई है। हार के बाद अपना इस्तीफा दे चुके राहुल का दर्द इस मुद्दे के जरा सा छिड़ते ही उभर कर सामने आ जाता है।
कुछ ऐसी ही नजारा शनिवार को महाराष्ट्र के नेताओं से हुई मुलाकात के दौरान नजर आया। सूत्रों की माने तो जब पार्टी के एक बेहद सीनियर नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री ने राहुल गांधी से अपना इस्तीफा वापस लेने के अपील की तो राहुल का जवाब था कि उस समय आप सब कहां थे, जब मैं अकेला लड़ रहा था।
एक विश्वस्त सूत्र ने बताया कि राहुल गांधी ने कहा कि वह इस बात से दुखी हैं कि उनके इस्तीफे के बावजूद पार्टी शासित राज्यों के कुछ मुख्यमंत्रियों, महासचिवों, प्रभारियों और वरिष्ठ नेताओं को अपनी जवाबदेही का अहसास नहीं हुआ।’
बता दें कि राहुल गांधी की यह टिप्पणी इस मायने में अहम है कि 25 मई को हुई कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में उन्होंने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ को लेकर विशेष रूप से नाराजगी जाहिर की थी।
राहुल गांधी ने यह भी कहा, ‘मैं अब अध्यक्ष नहीं रहूंगा। पार्टी में लोकतांत्रिक प्रक्रिया होनी चाहिए। किसी दूसरे को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। मैंने नए अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया से भी खुद को अलग करने का निर्णय लिया हैं। मैं पार्टी में सक्रिय रहूंगा और आपकी (युवाओं) तथा जनता की लड़ाई लड़ता रहूंगा।’
गौरतलब है कि यह पहला मौका नहीं होगा, जब राहुल गांधी का दर्द छलका हो, सीडब्ल्यूसी से लेकर, युवा पदाधिकारियों की मुलाकात तक में राहुल गांधी अपने पार्टी के सीनियर नेताओं के रवैये से आहत दिखे।
ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, पी चिदंबरम, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, शीला दीक्षित, अशोक चव्हाण, कपील सिब्बल, सलमान खुर्शीद, जयराम रमेश, नाना पटोल, प्रमोद तिवारी, राज बब्बर, सुशील कुमार शिंदे जैसे बड़े नेताओं के बीच राहुल गांधी अकेले कैसे हो गए।
आजादी के पहले बनी पार्टी के अध्यक्ष कैसे लोकसभा चुनाव के दौरान अकेले लोहा लेते रहे। क्या राहुल गांधी को पार्टी के नेता पसंद नहीं करते है या बीजेपी पर वरिष्ठ नेताओं की इज्जत न करने का आरोप लगाने वाले राहुल अपने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ सामंजस्य नहीं बना पाए।
राहुल के इस्तीफे के बाद पी चिदंबरम और शशि थरूर जैसे पार्टी के कई बड़े नेताओं ने आगे आकर उनसे इस्तीफा वापस लेने की अपील की। उनके इस्तीफे के बाद करीब 150 पदाधिकारियों और नेताओं ने अपने इस्तीफा उनको सौंपा है। कई राज्यों के प्रमुखों ने अपने पद से इस्तीफे दे दिया।
यूपी से एमएलसी दीपक सिंह से लेकर गोवा कांग्रेस के अध्यक्ष ने राहुल के समर्थन में अपना पद छोड़ दिया है। लेकिन अभी ये नेता इस बात का जवाब नहीं दे पा रहें हैं कि आखिर कांग्रेस की चुनाव में इतनी बुरी स्थिति कैसे हो गई है। बड़े नेताओं की फौज होने के बाद भी राहुल को आखिर क्यों मोदी-शाह की जोड़ी से अकेले लड़ना पड़ा।
लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के कई नेता घर से नहीं निकले तो कई अपने रिश्तेदारों और घर वालों को जिताने में लगे रहे। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत तो अपने बेटे को सांसद बनाने के लिए करीब 90 रैलियां की। लेकिन बाकी प्रत्याशियों के लिए उन्होंने समय नहीं निकाला। हाल ये रहा है कि मोदी सुनामी में न उनकी पार्टी जीत पाई और न उनका बेटा सांसद बन पाया।
कुछ ऐसा ही हाल मध्य प्रदेश में दिखा, जहां कमलनाथ की सरकार बनने के बाद भी कांग्रेस अपनी इज्जत नहीं बचा पाई। ऐसा ही हाल कांग्रेस देश के कई राज्यों में रहा, जहां कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के बावजूद पार्टी अपनी आशा के अनुरूप नतीजे हासिल नहीं कर पाई।
उत्तर प्रदेश में तो इस इंदिरा गांधी का अक्स लेकर मोदी लहर को रोकने आंदी बन कर उतरी प्रियंका गांधी कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाली अमेठी सीट को भी नहीं बचा पाई। राहुल गांधी को इस बात का भी दुख है कि जब पार्टी अमेठी सीट नहीं जीत पाई है इसका मतलब पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है।