प्रीति सिंह
और बीजेपी में बस यही अंतर है कि बीजेपी में पार्टी की मर्जी से अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है और हटाया जाता है, जबकि कांग्रेस में गांधी परिवार अपनी मर्जी से अध्यक्ष पद पर आसीन होता है और अपनी ही मर्जी से छोड़ता है। सौ साल से ज्यादा हो चुकी कांग्रेस पार्टी का दायरा आज भी गांधी परिवार के इर्द-गिर्द है, जबकि पिछले दो दशक से ज्यादा समय से कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप लगता आ रहा है और इसका खामियाजा कांग्रेस भुगत भी रही है।
शायद राहुल गांधी को इसका अंदाजा हो गया है तभी वह अब ना तो अध्यक्ष पद पर रहना चाहते हैं और ना ही वह अब गांधी परिवार से किसी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। फिलहाल राहुल अब अध्यक्ष पद पर नहीं रहेंगे। आज उन्हें एक बार फिर मनाने की कोशिश की गई लेकिन वह पद पर बने रहने के लिए तैयार नहीं हुए। राहुल के इस फैसले से यह तो तय हो गया कि दो दशक बाद गैर गांधी को कांग्रेस की कमान मिलेगी। सवाल उठता है कि गैर गांधी नेता को कांग्रेस की कमान देने से वंशवाद का तमगा हट पायेगा?
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कांग्रेस में ‘हाईकमान युग’ का अंत है?
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के तौर पर पहचाने जाने वाली कांग्रेस का क्या यह पराजय काल है। लोकसभा चुनाव में हार के बाद जिस तरह तेलंगाना से लेकर पंजाब और राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश तक, कांग्रेस में विवाद दिखा उससे तो ऐसा ही लगता है।
हालांकि राहुल ने नैतिक साहस दिखाते हुए इस्तीफे की पेशकर की है और वह अपने फैसले पर आडिग है। राहुल की इच्छा के अनुसार कांग्रेस की कमान गांधी परिवार के बाहर के नेता को दी जायेगी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये कांग्रेस में हाईकमान युग का अंत है।
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आजादी के बाद कांग्रेस की कमान रही नेहरू-गांधी परिवार के पास
करीब सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस पार्टी में भले ही सोनिया गांधी सबसे अधिक समय तक अध्यक्ष पद पर आसीन रही हो, किंतु आजादी के बाद पार्टी का नेतृत्व करने वाले कुल 19 नेताओं में से 14 नेहरू-गांधी परिवार से नहीं हैं। राहुल गांधी, नेहरू-गांधी परिवार की पांचवीं पीढ़ी के पांचवें ऐसे व्यक्तिहैं जो कांग्रेस अध्यक्ष बने।
आजादी के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद पर नजर डाले तो जवाहरलाल नेहरू ने प्रधानमंत्री रहते समय पांच वर्ष, इंदिरा गांधी भी करीब पांच वर्ष, राजीव गांधी भी करीब पांच वर्ष तथा पीवी नरसिंह राव ने भी करीब चार वर्ष तक इस जिम्मेदारी को संभाला। कांग्रेस में लाल बहादुर शास्त्री एवं मनमोहन सिंह दो ऐसे नेता हैं जो प्रधानमंत्री तो बने किन्तु वे पार्टी के अध्यक्ष नहीं बन पाये।
यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी जहां 19 वर्ष तक कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहीं, वहीं इस मामले में दूसरे स्थान पर उनकी सास इंदिरा गांधी रहीं, जिन्होंने अलग-अलग बार कुल सात साल तक इस दायित्व को निभाया।
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हालांकि बाकी गैर गांधी अध्यक्ष दो से चार साल तक रहे। 1996 में कांग्रेस अध्यक्ष बने सीताराम केसरी और सोनिया गांधी के बीच के मतभेद को तो बीजेपी ने इस लोकसभा चुनाव में बाकयदा भुनाया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक चुनाव रैली में कहा कि “देश को पता है कि सीताराम केसरी, दलित, पीडि़त, शोषित समाज से आए हुए व्यक्ति को पार्टी के अध्यक्ष पद से कैसे हटाया गया।”
सीताराम केसरी का मानना था कि वो एक आम कार्यकर्ता से पार्टी के अध्यक्ष पर चुने गए थे। उनका ये गुमान काफी लोगों को खलता था और गांधी परिवार के नजदीकी लोगों को लगता था कि केसरी अपने आप को एक सामान्य पृष्ठभूमि का नेता बताकर सोनिया और नेहरू-गांधी परिवार को चुनौती दे रहे हैं।
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1998 में कांग्रेस में एक बड़े ड्रामे के बाद केसरी को पद से हटा कर सोनिया गांधी को अध्यक्ष पद दिया गया था। उसके बाद यह दायित्व उनके बेटे राहुल गांधी को दिया गया। दिसंबर 2017 में राहुल ने कांग्रेस का कमान संभाला।
आजादी के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद पर आसीन नेता
1. आचार्य कृपलानी (1947-1948) 2. पट्टाभि सीतारमैया (1948-1950) 3. पुरुषोत्तम दास टंडन (1950-1951) 4. जवाहरलाल नेहरू (1951-1955) 5. यू. एन. धेबर (1955-1959) 6. इंदिरा गांधी (1959-1960 तथा 1978-84) 7. नीलम संजीव रेड्डी (1960-1964) 8. के. कामराज (1964-1968) 9. एस. निजलिंगप्पा (1968-1969) 10. पी. मेहुल (1969-1970) 11. जगजीवन राम (1970-1972) 12. शंकर दयाल शर्मा (1972-1974) 13. देवकांत बरुआ (1975-1977) 14. राजीव गांधी (1985-1991) 15. कमलापति त्रिपाठी (1991-1992) 16. पी. वी. नरसिंह राव (1992-1996) 17. सीताराम केसरी (1996-1998) 18. सोनिया गांधी (1998-2017), 19.राहुल गांधी (2017-वर्तमान)
चुनौतीभरा रहा राहुल का कार्यकाल
राहुल गांधी 2004 में अमेठी से चुनाव लड़कर लोकसभा में पहुंचे थे। 2004 से ही वह सक्रिय राजनीति में आए थे। राहुल के राजनीति में आने पर विपक्षी दलों ने खूब शोर मचाया था। कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप भी लगा था।
राहुल को जब 2013 में पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया था तो उन्होंने जयपुर में भाषण के दौरान अपनी मां एवं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की इस बात को बड़े भावनात्मक ढंग से कहा था कि ‘सत्ता जहर पीने के समान’ है। हालांकि, इसके ठीक पांच साल बाद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद संभाला। और सच में राहुल को विषपान करना भी पड़ा।
बीजेपी ने जिस तरह राहुल गांधी को चुनौती पेश की, उससे निपटना राहुल के लिए आसान नहीं रहा। विपक्षी नेता पिछले कुछ सालों से उन्हें ”शहजादा” और कई अन्य नामों से पुकार कर उनके महत्व को कम करने का कोई अवसर नहीं छोड़े। रही-सही कसर लोकसभा चुनाव के नतीजों ने पूरी कर दी।