Monday - 28 October 2024 - 4:45 PM

कोरोना : रेमडेसिविर दवा को अमेरिका की मंजूरी, भारत को कैसे मिलेगी दवा?

न्यूज डेस्क

इबोला के इलाज की दवा रेमडेसिविर से अब कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज किया जायेगा। अमेरिका ने गंभीर तौर पर बीमार कोरोना रोगियों के इलाज के लिए इस दवा के इस्तेमाल की मंज़ूरी दे दी है।

अमरीका के फूड एंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन के इस फैसले के बाद अस्पतालों में भर्ती कोविड-19 के गंभीर मामलों में इस ऐंटी-वायरल दवा का उपयोग किया जा सकता है।

दरअसल कुछ दिनों पहले ही इस दवा के क्लीनिकल ट्रायल से पता चला कि इससे गंभीर तौर पर बीमार रोगी जल्दी ठीक हो सकते हैं। हालांकि ऐसा नहीं देखा गया है कि इस दवा के इस्तेमाल से बचने की संभावना बढ़ जाती है।

यह भी पढ़ें :  कोरोना : दांव पर देश की 30 प्रतिशत जीडीपी व 11 करोड़ नौकरियां

जानकारों ने चेतावनी दी है कि इस दवा को कोरोना वायरस से बचने का रामबाण नहीं समझा जाना चाहिए।

अमरीका के कैलिफोर्निया प्रदेश में स्थित गिलीएड नाम की एक कंपनी है जो रेमिडेसिविर दवा बनाती है।  ये दवा वायरस के जीनोम पर असर करती है जिससे उसके बढऩे की क्षमता पर असर पड़ता है।

30 अप्रैल को भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रेस वार्ता में भी रेमडेसिविर का जिक्र हुआ था। ब्रीफिंग के दौरान संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा कि इस पर आगे कुछ भी कहने से पहले फिलहाल थोड़ा रुकना चाहिए।

साथ में उन्होंन यह कहा, “रेमडेसिविर उन तमाम मेडिकल प्रोटोकॉल में से एक है जिसे दुनियाभर में एक्जामिन किया जा रहा है। कोविड-19 के इलाज के लिए अभी तक कोई तय ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल फॉलो नहीं किया जा रहा है। रेमडेसिविर भी उन स्टडी में से एक है जो हाल में पब्लिश हुई हैं। स्टडी में अब तक ये साबित नहीं हुआ है कि ये दवा 100 फीसदी मददगार है। हालांकि इस मामले में कोई भी कदम लेने से पहले अभी हम और एविडेंस का इंतजऱ कर रहे हैं। ”

यह भी पढ़ें :  बेबस मजदूरों के पलायन से क्यों घबरा रही हैं राज्य सरकारें

 

अब जबकि अमेरिका ने कोरोना के इलाज में रेमडेसिविर दवा को मंजूरी दे दी है तो सवाल है कि भारत में ये दवा कैसे पहुंचेगी?

रेमडेसिविर दवा का भंडार सीमित है : गिलीएड

अब जबकि अमेरिका से मंजूरी मिल गई है तो दूसरे देश भी उम्मीद लगाए हुए हैं। दवा बनाने वाली कंपनी गिलीएड का कहना है कि अभी इस दवा का भंडार सीमित है।

अमरीकी सरकार अभी अमरीका के उन शहरों के अस्पतालों में इस दवा को बांटने का प्रबंध करेगी जहां कोविड-19 का असर सबसे ज़्यादा हुआ है। ऐसे में अभी ये स्पष्ट नहीं है कि क्या इसे अमरीका से बाहर भेजा जा सकेगा और उसकी कीमत क्या होगी।

गिलीएड का कहना है कि वो रेमडेसिविर के 15 लाख डोज दान करेगी। इसका मतलब है कि इससे 140,000 लोगों का मुफ्त इलाज हो सकता है, लेकिन दुनिया भर में, 185 देशों में कोरोना वायरस के 30 लाख से ज़्यादा मरीज हैं।

गिलीएड का यह भी कहना है कि वो अपने अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ मिलकर उत्पादन बढ़ाना चाहती है। उसका लक्ष्य है कि  अक्टूबर तक 5 लाख लोगों, दिसंबर तक 10 लाख लोगों और जऱत हुई तो 2021 तक लाखों और लोगों के लिए ये दवा तैयार की जा सकेगी।

यह भी पढ़ें :   कोरोना इफेक्ट : संकट में आया सऊदी अरब

वहीं दवाओं की कीमतों पर नजर रखने वाली अमरीकी संस्था द इंस्टीच्यूट फॉर क्लीनिकल ऐंड इकोनॉमिक रिव्यू का अनुमान है कि रेमडेसिविर के 10 दिन के इलाज की कीमत 10 डॉलर यानी लगभग 750 रुपए होनी चाहिए।

वहीं गिलीएड के चीफ एग्जेक्यूटिव डेनियल ओडे ने अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से मुलाकात के बाद एफ डीए से मंज़ूरी मिलने को एक महत्वपूर्म पहला कदम बताया।

उन्होंने कहा, “ये कोविड-19 का पहला आधिकारिक इलाज है, हमें इसका हिस्सा बनने पर फख्र है। ”

भारत को मिलेगी दवा? 

रेमडेसिविर दवा को लेकर आईसीएमआर के जानकारों का कहना है कि भारत में ये दवा कैसे आएगी, ये इस कंपनी की बिजनेस स्ट्रेटेजी पर निर्भर करता है। उनके पास दो-तीन विकल्प हैं। हालांकि उसे पहले अप्रूवल लेना होगा, लेकिन ये पूरी तरह गिलिएड कंपनी का आपसी मामला है कि वो किस तरह इस ड्रग को भारत में लाना चाहेंगे। रेमडेसिवियर नई दवा है, जिसका पेटेंट है। गिलिएड की ये अपनी प्रोपर्टी है। इसीलिए वही तय करेगी कि इसे कौन बना सकता है और कौन बेच सकता है।

यह भी पढ़ें :  पाकिस्तान पेट्रोल की कीमत कम कर सकता है तो भारत क्यों नहीं? 

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com