Tuesday - 29 October 2024 - 2:42 AM

इस्लाम से क्या पूछते हो कौन हुसैन, हुसैन है इस्लाम को इस्लाम बनाने वाले…

स्पेशल डेस्क

लखनऊ। किसी शायर ने इमाम हुसैन की शहादत को अपने अंदाज में इस तरह से बयां किया …

क्या जलवा कर्बला में दिखाया हुसैन ने,
सजदे में जा कर सिर कटाया हुसैन ने,
नेजे पे सिर था और ज़ुबान पे अय्यातें,
कुरान इस तरह सुनाया हुसैन ने।
सिर गैर के आगे ना झुकाने वाला,
और नेजे पे भी कुरान सुनाने वाला,
इस्लाम से क्या पूछते हो कौन हुसैन,
हुसैन है इस्लाम को इस्लाम बनाने वाला।

मोहम्मद पैगम्बर के नवासे इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाने वाला मुहर्रम का आगाज हो गया है।। शिया मरकजी चांद कमेटी के अध्यक्ष मौलाना सैय्यद सैफ अब्बास ने कहा है कि 31 अगस्त (शनिवार) को मोहर्रम के चांद की तस्दीक हो गई है और इसके साथ ही कल यानी रविवार एक सितम्बर को पहली मोहर्रम होगी। इसके साथ ही मजलिसों और मातम सिलसिला शुरू हो गया है।

मोहर्रम कोई त्यौहार नहीं है बल्कि मातम का वक्त होता है

बहुत से लोग मोहर्रम को त्यौहार समझते है लेकिन असल में यह कोई त्यौहार नहीं होता है  बल्कि इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत गम वाले महीने से होती है।। दरअसल पैगम्बर मोहम्मद साहब के नाती ने कर्बला में अपने नाना के दीन को बचाने के लिए पूरा घर कुरबान कर दिया था। शिया समुदाय के लिए मोहर्रम का एक अलग महत्व रखता है। इतना ही नहीं दस दिन इमाम हुसैन की शहादत को याद किया जाता है और मातम मनाया जाता है। दरअसल हजरत ईमाम-ए-हुसैन का काफिला 61 हिजरी (680ई) कर्बला की जमीन पर अपना कदम रखा था। उस वक्त कर्बला की जमीन तपती हुई रेगिस्तान बन चुकी थी। मोहर्रम के महीने में इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयाइयों को को शहीद कर दिया गया था।

इस्लाम को बचाने के लिए जुल्म के खिलाफ निकले थे हुसैन

मुस्लिम इतिहास के पन्नो को पलटे तो पता चलेगा कि यजीद नामक शासक कितना बड़ा जालिम बादशाह था। इस्लाम की आड़ में छल-कपट, झूठ, मक्कारी, जुआ, शराब, जैसी चीजें को बढ़ावा दे रहा था और ये चीजे इस्लाम में हराम बतायी गई है। इसी को रोकने के लिए इमाम हुसैन ने अपनी कुर्बानी दी थी। तब से इस्लाम अनुयायियों के लिए मोहर्रम की अहमियत सबसे अलग है।

इमामबारगाह को नया रूप दे रहे हैं अकीदतमंद

मोहर्रम का महीना शुरू हो गया हैं। इमामबाड़े की शान हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शबीह यानि ताजिया और जरीह की दुकानें लग गई हैं। रौजा-ए-काजमैन, मदरसा सुल्तानिया और मुफ्तीगंज समेत अन्य जगहों पर शनिवार की शाम से दुकानों पर ताजियें मिलने शुरू हो गए हैं। बड़े ताजियों का हदिया (कीमत) जहां डेढ़ हजार से 20 हजार रुपये तक है, वहीं छोटे ताजिया की कीमत150 रुपये से पांच हजार तक निर्धारित है।

नवाबी नगरी में इमामबारगाहों, रौजोंऔर घरों के अजाखानों को को नया रूप देने में अकीदतमंद जुटे हैं। मुफ्तीगंज, बजाजा, दरगाह रोड, काजमैन, नक्खास,वजीरगंज, नूरबाड़ी, कश्मीरी मोहल्ला, गोलागंज, अलीगंज, नैपियर कॉलोनी, नरही, सरफराजगंज, हुसैनगंज समेत अन्यइलाकों में अय्यामे अजा की तैयारियां जोरों पर हैं।

अपने इमाम को मेहमान बनाने के लिए अजादार कोई कमी नहीं छोडऩा चाहते।

पुराने शहर की मुख्य इमामबारगाहों मेंअशरा-ए-मजलिस की तैयारियां भी तकरीबन मुकम्मल हो गई हैं।

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