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मुंबई। रिजर्व बैंक की ओर से गठित एक समिति ने कहा है कि नवंबर 2016 में एक हजार रुपये और 500 रुपये के पुराने नोटों को प्रचलन से बाहर किये जाने का असर केंद्रीय बैंक की बैलेंसशीट पर भी पड़ा था, जिससे पिछले 5 साल की उसकी औसत विकास दर घटकर 8.6 प्रतिशत रह गयी।
आरबीआई के ‘इकोनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क’ की समीक्षा के लिए डॉ. विमल जालान की अध्यक्षता में बनी समिति ने इस महीने सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है। समिति ने अन्य बातों के साथ रिजर्व बैंक के वित्त वर्ष को बदलकर अप्रैल- मार्च करने की भी सिफारिश की है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 10 साल में रिजर्व बैंक के बैलेंसशीट की औसत वार्षिक विकास दर 9.5 प्रतिशत रही है जबकि 2013- 14 से 2017- 18 के 5 साल के दौरान इसकी औसत विकास दर 8.6 प्रतिशत रही। समिति ने कहा है कि बैलेंसशीट की विकास दर में गिरावट का 2016- 17 में की गयी नोटबंदी थी।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने 9 नवंबर 2016 से 500 रुपये और एक हजार रुपये के उस समय प्रचलन में जारी सभी नोटों को आम इस्तेमाल के लिए अवैध घोषित कर दिया था। इस प्रकार उस समय प्रचलन में मौजूद सभी नोटों के कुल मूल्य का 86 प्रतिशत प्रतिबंधित हो गया।
यह वही रिपोर्ट है जिसकी अनुशंसा के आधार पर केंद्रीय बैंक ने 1.76 लाख करोड़ रुपये की अधिशेष राशि सरकार को हस्तांतरित करने का फैसला किया है।