Tuesday - 29 October 2024 - 3:06 AM

क्या आरबीआई और सरकार के बीच खत्म हो गए मतभेद?

न्‍यूज डेस्‍क

केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के बीच खींचतान काफी लंबे समय से चली आ रही है। केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच चल आ रही तनातनी के बीच एक राहत भरी खबर आई है। बिगड़ती अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए मशक्कत कर रही मोदी सरकार को बैंकिंग कारोबार के नियामक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का सहारा मिला है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा किए गए कई महत्वपूर्ण ऐलान के कुछ ही दिन बाद आरबीआई ने सरकार के लिए खजाना खोल दिया है। दरअसल, रिजर्व बैंक ने अपने खजाने से सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये की भारी रकम देने का फैसला किया है। इसमें रिजर्व बैंक के सरप्लस फंड से मिलने वाले 1.23 लाख करोड़ रुपये शामिल होंगे। आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रही सरकार के लिए यह बड़ा उपहार जैसा है।

वहीं, दूसरी ओर आरबीआई के इस फैसले से विपक्ष नाराज है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री ने जो आर्थिक संकट पैदा किया है, उसे वह खत्म नहीं कर पा रहे हैं।

राहुल गांधी ने कहा कि अब आरबीआई से खजाने की चोरी काम नहीं आएगी। यह किसी डिस्पेंसरी से बैंड-एड चुराकर गोली के जख्म पर लगाना जैसा है, जो काम नहीं आएगी।

गौरतलब है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब हाल ही में गिरती अर्थव्यवस्था को थामने के लिए तमाम ऐलान किए, तो सबकी जुबान पर एक ही सवाल था कि रोकड़ा कहां है? मोदी सरकार के सामने रोकड़े का सबसे बड़ा संकट था। लेकिन आरबीआई ने सरकार के सामने खड़े पहाड़ जैसी समस्‍या को कम करने के लिए बहुत बड़ी मदद की है।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के सेंट्रल बोर्ड ने सोमवार को 1,76,051 करोड़ रुपये भारत सरकार को ट्रांसफर करने का एलान किया। इसमें 1,23,414 करोड़ रुपये वित्त वर्ष 2018-19 का सरप्लस और 52,637 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान शामिल है।

बता दें कि आरबीआई ने सरकार की सलाह से सेंट्रल बैंक के आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क की समीक्षा के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया था। ये कमेटी आरबीआई के पूर्व गर्वनर बिमल जालान की अध्यक्षता में बनाई गई थी। इस कमेटी में पूर्व डिप्टी गर्वनर राकेश मोहन जैसे लोग भी शामिल थे।कमेटी की सिफारिश पर ही ये तय कि गया है कि इस साल आरबीआई पौने दो लाख करोड़ रुपये सरकार को ट्रांसफर करेगी।

अभी तक आरबीआई का मेनडेट था कि वो अपने पास रिजर्व कैपिटल 12 परसेंट रखे। लेकिन अब कह दिया गया है कि आरबीआई इसे घटाकर 5.5 से 6.5 परसेंट के बीच में रखे। अगर मौजूदा दौर की बात करें तो आरबीआई के पास टोटल बैलेंस शीट का 6.8 परसेंट पैसा ही रिजर्व था।

कमेटी की सिफारिश के बाद आरबीआई ने सुझाए गए 5.5 से 6.5 परसेंट के बैंड का निचला हिस्सा पकड़ा है। अगर आरबीआई को अपनी ऑटोनॉमी दिखानी होती या अपने बैलेंसशीट की ज्यादा चिंता होती तो वह कह सकती थी कि वे इसे 6.5 परसेंट रखेंगे। अगर ऐसा होता तो सरकार को थोड़े कम पैसे जाते।

मंदी के आहट के बीच ऑटो, कताई उद्योग जैसे सेक्‍टर में कंपनियां घाटे में जा रही थी। केंद्र सरकार को इस वक्त पैसों की बहुत जरूरत थी। ऐसे में आरबीआई के इस फैसले से सरकार को बहुत बड़ी राहत मिल गई है। सरकार के हाथ में थोड़े पैसे आ गए हैं।

आरबीआई के ताजा फैसले के बाद कहा जा सकता है कि आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच जो मतभेद थे वो खत्म हो गया। लेकिन एक चर्चा अभी भी होगी कि क्या भारत का सेंट्रल बैंकर पहले की तरह से ऑटोनॉमस है।

आपको याद होगा कि कैश सरप्लस के मुद्दे पर केंद्रीय बैंक और सरकार के विवाद के चलते आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल ने पिछले साल दिसंबर में इस्तीफा दे दिया था। विभिन्न अनुमानों के मुताबिक आरबीआई के पास 9 लाख करोड़ रुपए का सरप्लस फंड है। यह आरबीआई के कुल एसेट का करीब 28% है। सरकार का कहना था कि दूसरे बड़े देशों के केंद्रीय बैंक अपने एसेट का 14% रिजर्व फंड में रखते हैं।

रिजर्व बैंक का सरप्लस फंड मिलने से सरकार को वित्तीय घाटा काबू में रखने में मदद मिलेगी। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में जीडीपी के 3.3% के बराबर वित्तीय घाटे का लक्ष्य रखा है। सरप्लस कैपिटल ट्रांसफर के अलावा मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार को आरबीआई से 90 हजार करोड़ रुपए डिविडेंड के रूप में मिलने की उम्मीद है। पिछले साल 68 हजार करोड़ मिले थे।

 

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