जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी और हुई देशव्यापी तालाबंदी की वजह से देश की अर्थव्यवस्था काफी खराब हो गई है। भारी संख्या में लोगों की नौकरी जा रही है। सरकार अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कोशिश तो कर रही है पर उसे कामयाबी मिलती नहीं दिख रही।
देश की अर्थव्यवस्था को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास फिर चिंता जतायी है। उन्होंने कहा है कि कुछ संकेतक भारत में आर्थिक गतिविधियों के स्थिर होने की ओर इशारा कर रहे हैं, लेकिन रिकवरी क्रमिक तौर पर ही होगी।
भारत के प्रमुख अर्थशास्त्रियों और बैंकों का अनुमान है कि कोरोना महामारी के कारण भारत की अर्थव्यवस्था मौजूदा वित्त वर्ष में, यानी मार्च 2021 के अंत तक तकरीबन 10 प्रतिशत तक संकुचित सकती है।
गवर्नर शक्तिकांत दास ने बुधवार को इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों को बताया कि “कुछ संकेतक चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक गतिविधियों के स्थिरीकरण की ओर इशारा करते हैं।”
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दास ने कहा कि “अर्थव्यवस्था में सुधार अभी गति में नहीं पहुंचा है, सभी संकेतों पर गौर करें तो रिकवरी धीरे-धीरे होने की संभावना है क्योंकि कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले अर्थव्यवस्था के फिर से खुलने की दिशा में बाधा साबित हो रहे हैं।”
मालूम हो कि भारत कोरोना संक्रमण के मामले में सिर्फ अमेरिका से पीछे है। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए सख्त तालाबंदी के बावजूद भारत में कोरोना संक्रमण के मामले 51 लाख पार कर चुका है।
आरबीआई गर्वनर ने इस मौके पर गैर-बैंक वित्त कंपनियों (एनबीएफसी) को बेहतर ढंग से विनियमित करने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।
उन्होंने कहा कि सरकार, नियामकों और उद्योगों को अर्थव्यवस्था के कायाकल्प के लिए संयुक्त रूप से काम करने की आवश्यकता होगी। साथ ही उत्पादकता वृद्धि, निर्यात, पर्यटन और खाद्य प्रसंस्करण पर ज़्यादा से ज़्यादा ध्यान देने की आवश्यकता होगी।
उन्होंने कहा, “अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए जो भी कदम उठाने की जरूरत होगी, रिजर्व बैंक उसके लिए पूरी तरह तैयार है।”
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दास ने कहा कि आरबीआई की ओर से लगातार बड़ी मात्रा में नकदी उपलब्ध कराये जाने से सरकार के लिए कम दर पर और बिना किसी परेशानी के बड़े पैमाने पर उधारी सुनिश्चित हो पाई है। पिछले एक दशक में यह पहला मौका हैजब उधारी लागत इतनी कम हुई है।
उन्होंने कहा कि अत्यधिक नकदी की उपलब्धता से सरकार की उधारी लागत बेहद कम बनी हुई है और इस समय बॉन्ड प्रतिफल पिछले 10 वर्षों के निचले स्तर पर हैं।