अभिषेक श्रीवास्तव
आज दशहरा है। बचपन से घुट्टी पिलायी गयी है कि आज के दिन असत्य पर सत्य की जीत हुई थी। परंपरा है, तो न मानने की कोई वजह भी नहीं। इसलिए आज असत्य पर सत्य की जीत को मनाने का सही मौका है।
हमारे यहां एक और परंपरा है कि जो मर जाता है उसे हम याद करते हैं, उसके बारे में बात करते हैं। इस हिसाब से आज उन असत्यों को याद करने का दिन है जिनके खिलाफ इस देश की सत्यप्रिय जनता ने बरसों लड़ाई लड़ी और इन असत्यों का एक−एक कर के वध किया।
सबसे पहला असत्य एक पशु से शुरू होता है। उस झूठे काले हिरन से, जो दरअसल सलमान खान की गाड़ी के सामने भागते हुए आया और सुसाइड कर लिया लेकिन आरोप उलटे हत्या का खान साहब पर लगा। सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। बचपन से सुना था, साक्षात् देख भी लिया। खान साहब परेशान तो हुए, लेकिन अंत में जीत गये। बिग बॉस जो हैं!
सबसे ताज़ा असत्य बंबई के उन पेड़ों का है जिन्होंने दावा किया था कि वे सब मिलकर एक जंगल बनाते हैं। इनके झूठे दावे के चक्कर में लाखों मासूम जनता फंस गयी। आखिरकार बंबई की अदालत ने सत्य का रास्ता अपनाया और फैसला दे दिया कि जंगल क्या होता है ये आदमी को पता है, पेड़ बेवकूफ होते हैं। फैसला आया कि आरे के पेड़ों का इलाका जंगल नहीं है। पेड़ों को अदालती फैसला मानना पड़ा और उन्होंने आरी लेकर खुद की गरदन पर आधी रात चला दी।
झूठे जानवर से शुरू होकर झूठे पेड़ों के बीच किसिम किसिम के झूठे मनुष्य बसते हैं। यूपी के दादरी में एक आदमी ने खुद को चौराहे पर घसीट कर जान से मार दिया क्योंकि उसने बीफ पकाया था। पंद्रह मासूमों पर हत्या का झूठा आरोप लगाया गया, पुलिस ने झूठी चार्जशीट भी बना दी लेकिन आखिरकार इंसाफ़ होकर रहा।
अव्वल तो मासूम आरोपियों को एनटीपीसी में सरकारी नौकरी दे दी गयी। एक जो बाद में मर गया, उसे तिरंगे में लपेट कर सम्मानित किया गया। सत्यप्रेमी जनता का मन इतने से नहीं भरा तो उसने मारे गये अखलाक के मामले में जांच करने वाले इंस्पेक्टर सुबोध सिंह को बुलंदशहर में निपटा दिया और इस तरह सूबे में सच का परचम बुलंद हुआ।
पड़ोस के राजस्थान वाले तो राजपूती आनबान शान के लिए जान तक दे देते हैं। वे कैसे पीछे रहते। वहां भी पहलू नाम के एक आदमी ने खुद को चौराहे पर घेरवाकर इतना पिटवाया कि मर जाए, फिर दादरी वाला मॉडल अपनाते हुए उसका आरोप दूसरों पर लगा दिया। वो तो गनीमत है कि रघुकुल रीति के मुताबिक पहलू के आरोपियों को इंसाफ़ मिला और वे छूट गये।
सत्य बड़ी चीज़ है। हमारे नेता, मंत्री, सब सत्य के मारे हुए हैं। एक मंत्री तो सत्य की जीत से इतना द्रवित हुए कि सीधे झारखंड पहुंच के उन लोगों को माला पहना आए, जिन्हें एक मुसलमान की हत्या में फंसाया गया था। अलीमुद्दीन रामगढ़ में बीफ लेकर जा रहा था और उसे इतनी ग्लानि इस बात की हुई कि उसने भी पहलू की तरह खुद को पिटवाकर मरवा दिया। आरोप आठ लोगों पर लगा। अदालत ने सत्य की जीत सुनिश्चित की। मंत्री सिन्हाजी ने सत्यवादियों का स्वागत किया।
सत्य और असत्य की जंग बहुत पुरानी है। रावण झूठा था, राम सच्चे थे। इसीलिए रावण मरा, राम जी जीते। आज भी राम ही जीत रहे हैं। हारने वाला रावण कहला रहा है। हां, एक समस्या वक्त के साथ यह पैदा हुई है कि लोकतंत्र नाम की व्यवस्था ने इंसाफ में देरी पैदा कर दी है। वो क्या कहते हैं न, कि जस्टिस डीलेड इज़ जस्टिस डिनाइड।
स्वामी चिन्मयानंद के साथ यही हो रहा है। वैसे, देश को पूरा भरोसा है कि स्वामीजी सच की चादर में लिपटे जल्द बाहर आएंगे। वैसे भी जिस लड़की ने उन पर आरोप लगाया था उसे सत्यप्रिय महंतजी ने भीतर करवा दिया है। आधा न्याय तो हो चुका है।
महाराज जी के राज में सत्य की रक्षा धड़ल्ले से दिनदहाड़े होती है। खुद को पत्रकार बताने वाले एक जीव ने बस बदनाम करने के चक्कर में दिखा दिया कि बच्चे सरकारी स्कूल में नून रोटी खा रहे हैं। बताइए, इतना सफेद झूठ कौन बोलता है भला। थाली में कुछ तो रंगीन आइटम देखना चाहिए था। वो तो रामराज का माहौल है जो पत्रकार पर तुरंत मुकदमा दर्ज हुआ और सच्चाई की जीत हुई।
झूठे लोगों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। मर्यादा पुरुषोत्तम के जीवन का यही संदेश है। जैसे अपने शाहजी का जीवन खुद में संदेश है। वे कभी झूठ नहीं बोलते। उन्होंने अभी कहीं कहा था कि नागरिकता संशोधन विधेयक लाते वक्त इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि हिंदू, सिक्ख, जैनी, पारसी, ईसाई आदि भाइयों के साथ कोई अन्याय न हो। इससे बड़ा सच कौन बोलेगा भला? अब कुछ लोग हैं जो पूछ रहे हैं कि इसमें मुसलमान का जिक्र क्यों नहीं है। क्या मुसलमान भाई नहीं हैं?
लोग नॉनसेंस हैं। सच बोलने का भी एक सलीका होता है। संस्कार होता है। मनु बाबा सिखा गये हैं। उन्होंने कहा है कि सच बोलो लेकिन प्रिय सच बोलो− सत्यम् ब्रूयात्, प्रियम् ब्रूयात्। देखिए न, कैसा प्रिय सच बोला है उन्होंने। बुरा बोला ही नहीं तो बुरा लगेगा किसे और क्यों? जबरी भाई लोग इसमें अपना नाम खोज रहे हैं। बेमतलब के मनगढ़ंत झूठ पर आज भी टिके पड़े हैं कि हिंदू मुस्लिम भाई भाई। मानते रहो। अपनी बला से। साहेब और उनके मुसाहेब नहीं मानते। वे तो सच बोलते हैं।जो मानते हैं, वही बोलते हैं।
असल में ये सारा झूठ कुछ हिंदुओं का फैलाया हुआ है। इन्हीं के चक्कर में बाकी अकलियतें सच से दूर होती जा रही हैं। ये सच्चे हिंदू नहीं हैं। असल में सबसे पहले असत्य से निपटने के लिए हमें अपने उन ‘भाइयों’ से निपटना होगा जो झूठ फैलाते हैं। दाभोलकर, कलबुर्गी, पानसारे, लंकेश, एक−एक कर के हमने इन जयचन्दों का वध किया। फिर भी झूठ की खेती बरकरार है।
बताइए, क्या जरूरत पड़ी थी 50 नामचीन लोगों को अपनी बुढ़ौती में झूठा पत्र लिखने की, वो भी किसको? सीधे प्रधान को, जो वज़ीर साहब की मानें तो गांधी के मार्ग पर चलने वाला इकलौता जीवित मनुष्य बच रहा है धरती पर। अब सहिष्णुता की भी कोई सीमा होती होगी। साहेब तो नीलकंठ हैं, सारा ज़हर पचा गए पत्र पढ़कर, लेकिन सच्चार्इ के योद्धाओं को यह रास नहीं आया। अदालत ने बिहार के हरिश्चंद्र वकील की अर्जी पर एफआइआर लिखने का आदेश दे दिया है। अब लिखो झूठे पत्र!
इस देश में मित्रों, कुछ भी चलेगा लेकिन झूठ नहीं। सरकार बहादुर की कटिबद्धता इतनी है कि असत्य पर सत्य की जीत को सुनिश्चित करने के लिए वे कुछ भी करेंगे। जरूरत पड़ी तो झूठ भी बोलेंगे। जो झूठ सच तक ले जाए, वह झूठ नहीं सच होता है। वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति। सच की रक्षा में जान भी चली जाए तो ग़म नहीं!
ओह, सॉरी… अपनी नहीं, दूसरे की। हमें तो सच को जिताने के लिए जिंदा रहना है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और व्यंगकार हैं )
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