न्यूज डेस्क
दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंकने के बाद भी बीजेपी को सिर्फ 8 सीटें ही हासिल हुईं हैं। चुनाव में मिली करारी हार के बाद से ही बीजेपी इस पर मंथन कर रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में जिस तरह का प्रदर्शन दिल्ली बीजेपी इकाई ने किया है उस पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि हमेशा मोदी-शाह ही चुनाव नहीं जिता सकते हैं, इसलिए संगठन का पुनर्गठन किया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के अंग्रेजी मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ ने दीन दयाल उपाध्याय को कोट करते हुए दिल्ली में बीजेपी की हार की समीक्षा छापी है। समीक्षा के दौरान पार्टी की दिल्ली इकाई और चुनाव में उतारे गए उम्मीदवारों के बारे में अवलोकन छापा है।
लेख में कहा गया है कि एक संगठन के तौर पर हर चुनाव केवल नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भरोसे नहीं लड़ा जा सकता। विधानसभा स्तर पर राज्य इकाइयों को ही आगे आना होगा। लेख में कहा गया है कि स्थानीय आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए दिल्ली में संगठन के पुनर्निर्माण के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
दिल्ली चुनाव को लेकर ‘ऑर्गनाइजर’ में लिखा गया है कि साल 2015 के बाद से बीजेपी ने जमीनी स्तर पर खुद की ढांचागत व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए कोई काम नहीं किया।
लेख में बताया गया है कि चुनाव के आखिरी चरण में प्रचार-प्रसार को चरम पर ले जाने में भी पार्टी पूरी तरह से विफल रही, जिसके कारण पार्टी को चुनाव में काफी नुकसान हुआ। ‘दिल्ली डायवर्जेंट मेंजेट’ शीर्षक से छपे इस लेख में दिल्ली के वोटरों के मिजाज को समझने की भी बात कही गई है।
लेख में कहा गया है कि शाहीनबाग नैरेटिव बीजेपी के लिए सफल नहीं रहा क्योंकि अरविंद केजरीवाल इस मामले में पूरी तरह से स्पष्ट दिखाई दिए। लेख में बताया गया है कि अरविंद केजरीवाल के भगवा अवतार को बीजेपी समझ ही नहीं पाई, जबकि पार्टी के नेताओं को इस ओर ध्यान देने की जरूरत थी।
लेख में कई तरह के सवाल भी किए गए हैं। ‘सीएए के बहाने मुस्लिम कट्टरपंथ के इस जिन्न का जो प्रयोग किया गया, केजरीवाल के लिए परीक्षण का नया मैदान बन सकता है। केजरीवाल इस खतरे का जवाब कैसे देते हैं? हनुमान चालीसा का उनका जप कितनी दूर था?’
लेख के जरिए यह बताने की कोशिश की गई है कि दिल्ली इकाई इस पूरे चुनाव में हर मुद्दे पर विफल रही। लेख में 2015 के बाद जमीनी स्तर पर संगठनात्मक ढांचे को पुनर्जीवित करने में बीजेपी की स्पष्ट विफलता को चुनाव की हार के प्रमुख कारणों में से एक माना गया है।
बताते चले कि इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 62, बीजेपी को 8 सीटें मिली थीं। इस चुनाव में भी कांग्रेस अपना खाता नहीं खोल सकी थी।