डॉ. अभिनन्दन सिंह भदौरिया
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में बहुत सुना होगा लेकिन बुंदेलखंड की दूसरी रानी लक्ष्मीबाई के नाम से विख्यात रानी राजेन्द्र कुमारी को बहुत कम लोग जानते होंगे।
फतेहपुर जनपद के गाजीपुर गांव में रानी साहिबा का जन्म हुआ था। उनके पिता ठाकुर शिवराज सिंह ने अपनी बेटी का विवाह राठ मंगरौठ निवासी दीवान शत्रुघ्न सिंह से किया।
दीवान शत्रुघ्न सिंह उस समय स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे, इसका असर रानी साहिबा पर भी पड़ना स्वाभाविक था। इसलिए रानी राजेन्द्रकुमारी ने पर्दा प्रथा का त्याग कर दिया और स्वाधीनता की लड़ाई में कूद पड़ी।
उन्होंने दीवान साहब से कांग्रेस के कार्य संचालन की अनुमति मांगी। 1921 में दीवान साहब के जेल जाने के बाद रानी साहिबा ने कांग्रेस पार्टी के स्वाधीनता आंदोलन की बागडोर संभाल ली।
रानी साहिबा ने अपने सारे बहुमूल्य जेवरात कांग्रेस पार्टी के कोष में स्वाधीनता आंदोलन के संचालन हेतु, श्री पत सहाय रावत के माध्यम से दान दे दिये। उन्होंने 1921 में कांग्रेस के गया और झांसी सम्मेलन में भाग लिया जहाँ उन्हें कस्तूरबा गांधी, सरोजनी नायडू कमला नेहरू जैसी राष्ट्रीय स्तर की महिला नेताओं का सानिध्य प्राप्त हुआ।
रानी साहिबा के रात दिन भाग दौड़ और दीवान साहब के जेल में होने के कारण उनके एक मात्र अल्प वयस्क पुत्र का निधन हो गया। लेकिन रानी साहिबा इससे विचलित नही हुई बल्कि स्वाधीनता के इरादे उनके लिए और मजबूत हो गए।
उन्होंने सामाजिक सरोकार के काम भी किये राठ में शराब की दुकानों के सामने धरना दिया। 1933 में उन्हें एक वर्ष के कारागार की सजा हुई इस तरह उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिला कर काम किया और बुंदेलखंड में महिलाओं की प्रेरणाश्रोत बनी रही। स्वाधीनता के बाद उन्होंने मौदहा विधानसभा का प्रतिनिधित्व भी किया। लोग उन्हें बुंदेलखंड की दूसरी रानी लक्ष्मीबाई पुकारते है।
(लेखक एक निजी महाविद्यालय में प्राचार्य हैं)
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