जुबिली न्यूज़ डेस्क
उत्तर प्रदेश की सियासत से में बदलते समीकरणों का दौर चल रहा है। सूबे की सियासत के महत्त्व को ऐसे समझा जा सकता है कि दिल्ली की गद्दी पर कौन बैठेगा यह इसी पट्टी से तय होता है। ऐसे में आगमी विधानसभा चुनाव की तैयारी में बीजेपी समेत सभी दल जुट गए हैं। वहीं इस फाइनल मुकाबले से पहले राज्य में होने वाले उपचुनाव को लेकर भी राजनीतिक दल पूरी ताकत झोंके हुए हैं।
बता दें कि विधानसभा की 11 सीटों पर आगामी 21 अक्टूबर को होने वाले उपचुनाव में रामपुर सीट पर जबरदस्त मुकाबला देखने को मिलेगा। रामपुर सीट पर समाजवादी पार्टी के आजम खान का दबदबा रहा है और वो 9 बार इस सीट से जीत चुके हैं, लेकिन मुकदमों में फंसे आजम की मुश्किल कम नहीं हो रही है। हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को 29 मुकदमें में गिरफ्तार नहीं करने का आदेश दिया है।
रामपुर सीट से बसपा और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। बसपा ने आबकारी विभाग के पूर्व अधिकारी जुबेर मसूद खान को प्रत्याशी बनाया है, जबकि कांग्रेस ने अरशद अली खान को मैदान में उतारा है। बसपा की नजर दलित मुसलमान गठजोड़ पर है। रामपुर में 50 प्रतिशत से अधिक मुसलमान मतदाता हैं।
कांग्रेस ने भी मुस्लिम प्रत्याशी अरशद अली खां गुड्डू को चुनाव मैदान में उतारकर सोशल इंजीनयरिंग साधने की कोशिश की है। वहीं बीजेपी की ओर से भी किसी अल्पसंख्यक को उम्मीदवार बनाने की चर्चा है। जबकि परम्परागत रूप से इस सीट पर कब्जा करने वाली सपा ने अभी तक प्रत्याशी के नाम का ऐलान नहीं किया है, जबकि 30 सितंबर नामांकन की आखिरी तारीख है।
कांग्रेस और बसपा द्वारा मुस्लिम प्रत्याशी उतार देने से सपा के लिए रामपुर की राह थोड़ी ज्यादा मुश्किल हो गयी हैं। स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, सपा का एक तबका आजम खान की पुत्रवधू को प्रत्याशी बनाने की पुरजोर वकालत कर रहा है।
गौरतलब है कि जिस तरह बीजेपी ने अपने वोट प्रतिशत पर बढ़त बना रखी है, उसके बाद सभी दलों की नजर मुस्लिम-दलित गठजोड़ पर टिकी हुई हैं। ऐसे में जो दल इस गठजोड़ को अपनी ओर खींचने में सफल होगा उसे 2022 के विधानसभा चुनाव में लाभ मिलना तय है। शायद यही वजह है कि रामपुर की इस सीट पर इतना जोर दिया जा रहा है।
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