जुबिली न्यूज डेस्क
लोक जनशक्ति पार्टी के संरक्षक व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का 74 साल की उम्र में गुरुवार को निधन हो गया है। राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा है कि रामविलास के निधन के बाद बिहार चुनाव में सियासी समीकरण बदल सकते हैं।
दरअसल, बिहार चुनाव से पहले ही एलजेपी ने एनडीए से नाता तोड़ लिया है। चुनावी माहौल में पासवान की मौत के आंसू से कई जिलों में नेताओं के समीकरण बिगड़ सकते हैं। चर्चा है कि खेल तो सभी दलों का खराब होगा लेकिन ज्यादा असर जेडीयू पर पड़ेगा। जेडीयू के खिलाफ एलजेपी ने हर सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं।
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आपको बता दें कि बिहार की राजनीति में रामविलास पासवान का पिछले 51 सालों से दखल था। बिहार में रामविलास पासवान दलितों के इकलौते बड़े नेता थे। लोकसभा के लिए बिहार में सुरक्षित सीटों पर पासवान परिवार का ही कब्जा है। बिहार की राजनीति की त्रिमूर्ति में एक मूर्ति रामविलास पासवान थे। लालू और नीतीश के साथ बिहार में पिछले 30 साल से बिहार की राजनीति जिन तीन चेहरों की धुरी पर नाचती रही उनमें से एक चेहरा रामविलास पासवान थे।
बिहार के 5 जिलों में दलित वोटर एक बड़े फैक्टर के रूप में काम करते हैं। समस्तीपुर, खगड़िया, जमुई, वैशाली और नालंदा में महादलित वोटों की अच्छी खासी आबादी है। पासवान के साथ एक बड़ा फैक्टर यह भी था कि अगड़ी जाति के लोग भी उन्हें पसंद करते थे। क्योंकि उन्होंने कभी भी कोई विवादित बयान नहीं दिया था।
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चिराग भी इस चुनाव में सहानुभूति कार्ड खेलने की कोशिश करेंगे। वहीं, दूसरे सियासी दल अभी रामविलास पासवान पर खुल कर वार नहीं कर पाएंगे। नीतीश कुमार भी सीधे वार करने से बचते रहेंगे। ऐसे में इसका फायदा चिराग को मिल सकता है। इस चुनाव में उन्होंने दलितों के साथ-साथ अगड़ी जाति के लोगों को भी लुभाने की कोशिश की है। 42 में से 18 सीटों पर चिराग ने अगड़ी जाति के लोगों को उम्मीदवार बनाया है।
माना जा रहा है कि पासवान के निधन से बिहार चुनाव में एक सहानुभूति की लहर बन सकती है। जिसका फायदा राम विलास पासवान की पार्टी एलजेपी को हो सकता है। क्योंकि उनके बेटे चिराग पासवान पहले से ही बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।
बिहार की राजनीति में पासवान सभी वर्गों ने नेता माने जाते थे। अगड़े, पिछड़े और दलितों के बीच उनकी समान पैठ थी। पासवान ने बेटे चिराग को पार्टी की जिम्मेदारी दी थी। चिराग ने बिहार चुनाव की घोषणा से पहले ही जेडीयू और नीतीश कुमार पर जमकर हमला बोला और एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। माना जा रहा है कि त्रिकोणीय संघर्ष में सबसे ज्यादा नुकसान जेडीयू को होगा। विश्लेषकों के अनुसार, एलजेपी एनडीए के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है।
बिहार में आज की तारीख में महादलित और दलित वोटरों की आबादी कुल 16 फीसदी के करीब है। 2010 के विधानसभा चुनाव से पहले तक रामविलास पासवान इस जाति के सबसे बड़े नेता बताये जाते रहे हैं। दलित बहुल्य सीटों पर उनका असर भी दिखता था।
हालांकि, 2005 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी ने नीतीश का साथ नहीं दिया था। इससे खार खाए नीतीश कुमार ने दलित वोटों में सेंधमारी के लिए बड़ा खेल कर दिया था। 22 में से 21 दलित जातियों को उन्होंने महादलित घोषित कर दिया था। लेकिन इसमें पासवान जाति को शामिल नहीं किया था।
नीतीश कुमार के इस खेल से उस वक्त महादलितों की आबादी 10 फीसदी हो गई थी और पासवान जाति के वोटरों की संख्या 4.5 फीसदी रह गई थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार के इस मास्टरस्ट्रोक का असर पासवान पर दिखा था।
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2009 के लोकसभा चुनाव में वह खुद चुनाव हार गए थे। 2014 में पासवान एनडीए में आ गए। नीतीश कुमार उस समय अलग हो गए थे। 2015 में पासवान एनडीए गठबंधन के साथ मिल कर चुनाव लड़े लेकिन उनकी पार्टी बिहार विधानसभा में कोई कमाल नहीं कर पाई। बाद में नीतीश कुमार महागठबंधन छोड़ कर एनडीए में आ गए, तो गिले-शिकवे को भूल कर 2018 में पासावन जाति को महादलित वर्ग में शामिल कर दिया।
समस्तीपुर से रामविलास के भतीजे हैं सांसद
समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र में महादलित वोटरों की संख्या साढ़े तीन लाख के करीब है। यहां से रामविलास पासवान के भतीजे प्रिंस राज सांसद हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा सीटें आती हैं। छह में कल्याणपुर और रोसड़ा सुरक्षित सीटें हैं। रोसड़ा से रामविलास पासवान भी कभी चुनाव लड़ सकते हैं।
इन दोनों सीटों पर महादलित वोट काफी मायने रखते हैं। कल्याणपुर सुरक्षित सीट जेडीयू के खाते में चल गया है। यहां से उम्मीदवार महेश्वर हजारी हैं। एलजेपी ने भी इस सीट पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है। ऐसे में जेडीयू को यहां नुकसान संभव है। वहीं, रोसड़ा बीजेपी के खाते में गया है। बीजेपी के खिलाफ एलजेपी ने कोई उम्मीदवार नहीं दिया है, तो इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है।
हाजीपुर से भाई हैं सांसद
रामविलास पासवान खुद हाजीपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ते रहे हैं। 2019 में उनके भाई पशुपति कुमार पारस यहां से चुनाव लड़े। हाजीपुर में भी करीब साढ़े तीन लाख से ज्यादा दलित वोटरों की संख्या है। इस संसदीय क्षेत्र में 7 विधानसभा सीट आता है। जिसमें हाजीपुर, महुआ, राजापाकर, जंदाहा, महनार, पातेपुर और राघोपुर विधानसभा क्षेत्र आता है। राजापाकर सुरक्षित सीट है और यह जेडीयू के खाते में गया है। इस सीट पर एलजेपी ने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। ऐसे में यहां भी जेडीयू को नुकसान की संभावना है। साथ ही दूसरे सीटों पर भी दलित वोटरों का असर है।
खगड़िया है रामविलास पासवान का घर
खगड़िया लोकसभा सीट पर भी एलजेपी का कब्जा है। रामविलास पासवान खगड़िया के अलौली सीट से ही राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। पहली बार वह इसी सीट से विधायक बने थे। खगड़िया में दलित वोटर करीब 4 लाख के करीब हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा सीटें आती हैं। जिसमें सिमरी बख्तियारपुर, हसनपुर, अलौली, खगड़िया, बेलदौर और परबत्ता है।
अलौली सुरक्षित सीट है। इस पर जेडीयू ने उम्मीदवार दिया है। ऐसे में पासवान की पार्टी भी इस सीट से उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। पासवान की सहानुभूति लहर में यहां सीधा नुकसान जेडीयू को ही होगा। बाकी सीटों पर महादलित निर्णायक भूमिका में तो नहीं हैं, लेकिन जिसके साथ चले जाएं, वह मजबूत जरूर हो जाता है। खगड़िया लोकसभा सीट के 6 में से 4 सीटें जेडीयू के खाते में गई है।
जमुई से हैं चिराग पासवान सांसद
जमुई लोकसभा क्षेत्र भी सुरक्षित सीट है। यहां से रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान सांसद हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में 6 विधनासभा क्षेत्र आता है। जिसमें जमुई जिले का 4 है। जमुई जिले की 2 सीटें जेडीयू के खाते में गई है। झाझा और चकाई, चिराग ने दोनों ही सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। झाझा से रविंद्र यादव को टिकट दिया है और चकाई से संजय कुमार मंडल को दिया है। दलित वोटों के साथ-साथ चिराग ने यहां अतिपिछड़ी जातियों के वोट में सेंधमारी की कोशिश की है। साथ में सहानुभूति फैक्टर अलग काम करेगा। इसका सीधा नुकसान जेडीयू को ही संभव है।
नीतीश के घर में भी दलित वोटरों की संख्या
नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में भी महादलित वोटरों की अच्छी आबादी है। नालंदा लोकसभा क्षेत्र में 7 विधानसभा सीट आते हैं। 2014 में जेडीयू उम्मीदवार के खिलाफ यहां एलजेपी के सत्यानंद शर्मा ही मैदान में उतरे थे। एलजेपी ने जेडीयू को कड़ी टक्कर दिया था। नालांदा में महादलितों की आबादी साढ़े 4 लाख के करीब है। नालांदा की 7 में से 6 विधानसभा सीटें जेडीयू के पास है। राजगीर सुरक्षित सीट है। चिराग ने सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। ऐसे में यहां भी खेल बिगड़ सकता है।
भारतीय राजनीति व केंद्रीय मंत्रिमंडल में उनकी कमी सदैव बनी रहेगी और मोदी सरकार उनके गरीब कल्याण व बिहार के विकास के स्वपन्न को पूर्ण करने के लिए कटिबद्ध रहेगी।
मैं उनके परिजनों और समर्थकों के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूँ और दिवंगत आत्मा की शांति की प्रार्थना करता हूँ। ॐ शांति
— Amit Shah (@AmitShah) October 8, 2020
शाह के ट्वीट के भी हैं मायने
एलजेपी बिहार में एनडीए से अलग है। चिराग ने ऐलान कर दिया है कि हम बीजेपी के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेंगे। वहीं, बीजेपी नेताओं ने 2 टूक कहा है कि चिराग पीएम की तस्वीर यूज नहीं कर सकते हैं। लेकिन रामविलास पासवान के निधन के बाद अमित शाह का ट्वीट कुछ और इशारा कर रहा है। उनके निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए अमित शाह ने ट्वीट कर लिखा है कि मोदी सरकार उनके गरीब कल्याण और बिहार के विकास के स्वपन्न को पूर्ण करने के लिए कटिबद्ध रहेगी। इस ट्वीट के कई सियासी मायने हैं। जो कुछ और इशार कर रही है।