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डंके की चोट पर : 28 बरस हो गए राम को बेघर हुए

शबाहत हुसैन विजेता

आज उस काले दिन की 28वीं सालगिरह है जिस दिन राम को बेघर किया गया था. एक भीड़ जो साज़िशन अयोध्या बुलाई गई थी उसने बुज़दिली का वह कारनामा अंजाम दिया था जिसकी वजह से भारतीय संविधान की रूह कांप गई थी.

हद थी उस दिन दिल्ली और यूपी की सरकारें मिट्टी के माधो की तरह तमाशा देख रही थीं. जिस तरह से यूपी सरकार के पास आज मोहसिन रज़ा नाम का प्यादा है ठीक उसी तरह उस दौर में एजाज़ रिज़वी हुआ करते थे.

जिस वक्त बाबरी मस्जिद गिर रही थी उस वक्त एजाज़ रिज़वी अयोध्या में जयश्री राम के नारे लगाने में मशगूल थे. भीड़ जब लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की तरफ लपकी उस वक्त एजाज़ रिज़वी भी बुरी तरह से पीटे गए थे. उनका कुर्ता और बनियाइन तक फाड़ दी गई थी. बाद में उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी ने फटकारते हुए कहा था कि तुम्हें बीजेपी में मुस्लिम चेहरे की शक्ल में रखा गया है. हिन्दू बनाकर ही रखना है तो तुमसे पहले और भी बहुत से लोग हैं.

दरअसल उस दौर में इतनी नैतिकता बाकी बची थी आज वह भी खत्म हो गई. मोहसिन रज़ा और बुक्कल नवाब उसी बदली हुई नैतिकता की जीती जागती तस्वीरें हैं. नैतिकता बची थी इसी वजह से छह दिसम्बर 92 की शाम कल्याण सिंह ने राजभवन पहुंचकर गवर्नर को इस्तीफ़ा सौंपते हुए कहा था कि हम बाबरी मस्जिद नहीं बचा पाए. हालांकि बाद में उनका इस्तीफ़ा अस्वीकार करते हुए उन्हें बर्खास्त कर दिया गया.

बाबरी मस्जिद बाबर ने नहीं मीर बाक़ी ने बनवाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते वक्त कहा कि मन्दिर गिराकर मस्जिद बनाने के सबूत नहीं मिले. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने का मुकदमा चलता रहेगा.

बाबरी मस्जिद गिराए जाने का मुकदमा भी अब खत्म हो चुका है. बाबरी मस्जिद गिराने वाले बाइज्जत बरी किये जा चुके हैं. राम मन्दिर बनाने का काम शुरू हो चुका है. मन्दिर-मस्जिद के नाम पर सियासत करने वाले राम मन्दिर बनाने का वादा पूरा करने का दंभ भरते घूम रहे हैं. बिहार से हैदराबाद तक अयोध्या की बात कर रहे हैं.

बेहतर होगा कि इस मुद्दे पर विमर्श कर लिया जाए कि 28 साल पहले अयोध्या में आतंक का जो खेल खेला गया था उससे राम को क्या फायदा हुआ था. राम तो पक्की और मज़बूत इमारत में मौजूद थे. राम के लिए क्या मन्दिर और क्या मस्जिद. मस्जिद-मन्दिर का फर्क तो आम आदमी के लिए है.

बाबरी मस्जिद गिरी थी तो मामला सिर्फ एक मस्जिद के गिरने का नहीं था. यह मामला तो राम को बेघर करने का था. राम के सर से छत छीन लेने का था. उन्हें पंडाल में ले आने का था. उन्हें सर्दी, गर्मी और बरसात की मार को झेलने को विवश करने का था.

28 साल मर्यादा पुरुषोत्तम को पंडाल में रहने को मजबूर किया गया, अब भव्य मन्दिर बनाकर क्या राम को खुश कर लेंगे. राम क्या बड़ा मन्दिर पाकर खुश हो जाएंगे. जिसने सौतेली माँ की चाह के मद्देनजर चौदह साल जंगलों की ख़ाक छानी. मौसमों की मार सही, फूल जैसी पत्नी सीता की तकलीफें देखीं.

वह 14 साल बाद जंगल से लौट भी आये तो सुकून हासिल नहीं कर पाए. कभी धोबी को दिक्कत थी तो कभी किसी को दिक्कत थी. राम ने सबकी दिक्कतों को समझा. सभी की सोच की इज्जत की. सीता महल में नहीं रह गईं तो ज़मीन पर सोने लगे. रात-रात भर करवट बदलते रहते मगर होठों पर किसी के लिए भी कभी शिकायत नहीं आयी. उसी आलम में सरयू में जलसमाधि लेकर राम ने बता दिया कि यह दुनिया किस किस्म की है.

जो राम को भव्य मन्दिर देने की बात करते हैं उन्होंने तो राम को 28 बरस का बनवास कटवा दिया. राम को 28 साल बाद फिर से राजा बनाने की तैयारी है. फिर से उनका वैभव लौटाने की तैयारी है. यह हंसी की बात है कि भिखारी राजा को महल देने जा रहा है.

छह दिसम्बर 1992 को अयोध्या में जब अनियंत्रित भीड़ बाबरी मस्जिद को गिरा रही थी तब जो हालात और तस्वीरें थीं उसे पूरी दुनिया देख रही थी. भारतीय संविधान की आत्मा पर कुदालें और फावड़े चल रहे थे. सेक्युलरिज्म की छाती पर भीड़ का तांडव चल रहा था.

अब तो सेक्युलरिज्म का ही मज़ाक उड़ाया जाने लगा है. जो भारतीय संविधान की आत्मा का हिस्सा है वह अब मज़ाक का हिस्सा बनने लगा है. 28 साल बाद आज अचानक कैफ़ी आजमी की नज़्म ज़ेहन में उभर रही है.

राम बनवास से जब लौटकर घर में आये
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये.

रक्से दीवानगी आंगन में जो देखा होगा
छह दिसम्बर को श्रीराम ने सोचा होगा.
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये.

धर्म क्या उनका है, क्या ज़ात है ये जानता कौन
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा लोग जो घर में आये

शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा खंजर
तुमने बाबर की तरफ फेंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की खता ज़ख्म जो सर में आये.

पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
कि नज़र आये वहां खून के गहरे धब्बे.

पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राम यह कहते हुए अपने द्वारे से उठे.

राजधानी की फिजा रास नहीं आयी मुझे
छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे.

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अयोध्या में भव्य राम मन्दिर का निर्माण चल रहा है. निर्माण कराने वाले यह सूचना हर चुनावी सूबे में पहुंचाने में लगे हैं. राम के नाम पर सियासत और छह दिसम्बर 92 का वो काला दिन अगर आपस में जोड़ दिया जाए तो वो दृश्य जीवंत होने लगेगा जो भारत भूषण ने राम की जलसमाधि में दिखाया था. राम पर सियासत करने वालो को राम की जलसमाधि को न सिर्फ पढ़ना चाहिए बल्कि समझना चाहिए. यकीन दिलाता हूँ कि बहुत शर्म आयेगी.

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