जुबिली न्यूज डेस्क
भारतीय राजनीति में राम नाम जिक्र कोई नया नहीं है। कई वर्षों से राम जन्म भूमि और राम मंदिर पर सियासत होती रही है। हालांकि, अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय ने भारतीय राजनीति में राम नाम के प्रति आग्रह और स्वीकार्यता को एक नया फलक और विस्तार प्रदान किया है।
कांग्रेस समेत कई दलों ने इस बात को समझ लिया है कि राजनीतिक दृष्टि से राम का विरोध कहीं न कहीं घाटे का सौदा है। इससे बीजेपी के निरंतर विस्तार को भी जोड़कर देखा जाता है। बीजेपी राम मंदिर निर्माण का श्रेय लेने का कोई मौका नहीं छोड़ती। चाहे यूपी में हुए उपचुनाव हो या फिर बिहार में हुए विधानसभा चुनाव।
बीजेपी नेताओं ने हर जगह राम मंदिर का जिक्र कर जनता के मन में इस बात को बैठाने की कोशिश कि की राम के सियासत पर उनका ही हक है। इतना ही नहीं आरएसएस 15 जनवरी से राम मंदिर को लेकर एक विशेष अभियान चलाने जा रही है।
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संघ और बीजेपी के नेता इसके तहत ‘अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में हिंदू समाज के प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक परिवार की सहभागिता सुनिश्चित करने और हर परिवार को इस बात का अहसास कराएंगे कि राम मंदिर निर्माण में उनका भी सहयोग है।‘ इस अभियान में सभी स्वयं सेवक पूरी ताकत लगाएंगे।
मकसद साफ है कि किसी भी कीमत पर राम के नाम को बीजेपी अपने से दूर नहीं करना चाहती है लेकिन राम मंदिर पर कोर्ट के फैसले के आने के बाद कांग्रेस और अन्य दलों का राम नाम की सियासत को लेकर नजरिया बदला है।
शायद यही कारण है कि मध्य प्रदेश में सवा साल के अंदर सत्ता गंवाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने वहां के चुनाव में राम के प्रति बारंबार श्रद्धा और समर्पण का सार्वजनिक प्रदर्शन किया। मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार के दौरान राम वन गमन पथ को लेकर पूर्व सीएम कमलनाथ कई योजनाओं बनाईं थी।
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इतना ही नहीं कांग्रेस पार्टी की छत्तीसगढ़ सरकार इस वक्त पूरी तरह राममय होती नजर आ रही है। प्रदेश में सरकार गठन की दूसरी वर्षगांठ भगवान राम को समर्पित करने की तैयारी चल रही है। पूरा आयोजन माता कौशल्या की जन्म भूमि चंदखुरी में करने की तैयारी है।
जाहिर सी बात है कि इस दौरान छत्तीसगढ़ के भांजे श्रीराम की चर्चा भी होगी और उनके नाम का जयघोष भी होगा। गौरतलब है कि आज भी छत्तीसगढ़ के गांव चंद्रखुरी और आरंग में कौशल्या माता का मंदिर है। रायपुर जिले के इन गांवों में लोग आज भी लोग माता कौशल्या को पूजते हैं। इस रिश्ते के हिसाब से भगवान राम छत्तीसगढ़ के भांजे लगते हैं, ऐसे में यहां हर भांजे को आदर की दृष्टि से देखा जाता है।
ऐसी भी मान्यता है कि वनवास के दौरान भगवान राम ने छत्तीसगढ़ में ही 10 वर्ष बिताए थे और यहीं पर वनवास के दौरान उनकी मुलाकात शबरी से हुई थी। कुछ शोधपरक लेखों में यह भी उल्लेख मिलता है कि छत्तीसगढ़ के तुरतुरिया में वाल्मिकि आश्रम था और यहीं पर सीताजी को अयोध्या से निष्कासन के बाद आसरा मिला था और लवकुश का पालन-पोषण हुआ था।
राममय हो चुकी बघेल सरकार अपने दो वर्ष पूरे होने पर ‘भांजे राम’ का गुणगान बड़े स्तर पर करने जा रही है। बताया जा रहा है कि राज्य में उत्तर में कोरिया और दक्षिण में सुकमा से भगवान राम के वन गमन से जुड़े स्थानों को जोड़ती हुई कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा बाइक रैली निकाली जाएगी। दोनों दिशाओं से 14 दिसंबर को यह बाइक रैली शुरू होगी।
बाइक रैली के साथ साउंड सिस्टम भी चलेगा, जिसमें पूरे समय भजन और रामायण की चौपाइयां गूंजती रहेंगी। बाइक रैली का जगह-जगह पुष्प वर्षा के साथ स्वागत होगा। पूरे रास्ते बाइक दल के सदस्य रामायण पुस्तक और ध्वज प्रतीक चिह्न के रूप में एकत्र करेंगे। दोनों रैलियां 17 दिसंबर को चंदखुरी पहुंचेगी।
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दूसरी ओर बीजेपी को बघेल का राम प्रेम रास नहीं आ रहा है। बीजेपी नेता याद दिला रहे हैं राम जन्म भूमि मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कांग्रेस ने भगवान राम के अस्तित्व को ही नकार दिया था। अब उसी कांग्रेस पार्टी की सरकार में राम प्रेम पर बीजेपी को संदेह है।
दूसरी तरफ कांग्रेस ने अयोध्या के श्री राम मंदिर के लिए चंदे लिए जाने पर सवाल खड़ा कर दिया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तो बीजेपी पर मंदिर निर्माण के नाम पर चंदा का धंधा करने का आरोप लगा दिया है। बघेल ने कहा कि खुद को हिंदुवादी पार्टी कहने वाली बीजेपी पहले यह बताए कि उसने हिंदुओं के लिए किया क्या है?
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मुख्यमंत्री बघेल ने के चंदा और भगवान राम से प्रेम पर सवाल किया है। उन्होंने कहा कि भाजपाई राम और राम के विचार और आदर्शों की बात करने के योग्य नहीं हैं। राम भाजपा की बपौती नहीं है। राम जनमानस के प्रतीक हैं। सीएम ने कहा कि भगवान राम हमारी संस्कृति का हिस्सा है। राम छत्तीसगढ़िया संस्कृति में हैं, राम जन-जन के हैं।
अयोध्या में राम मंदिर भले ही बन जाए लेकिन राम और उनके मंदिर पर सियासत जल्द खत्म होने वाली नहीं है। आरएसएस और बीजेपी हर हिंदू को इस बात का अहसास कराने की योजना बना रहे है कि राम मंदिर निर्माण में उसकी भूमिका भी खास है तो वहीं कांग्रेस भी राम नाम की सियासत में खुल कर खुद पड़ी है। अब देखना ये होगा कि राम नाम की राजनीति, क्या अब कांग्रेस के ‘हिंदुत्व’ बनाम बीजेपी के ‘हिंदुत्व’ की होगी ।