- सिसक भी रही है आधुनिकता के शोर में पौराणिक अयोध्या
- सोशल मीडिया पर रामनगरी की खूबियों को गढ़ रहे अयोध्या के युवा
ओम प्रकाश सिंह
अयोध्या। रामनगरी के हर चौराहे पर दीपोत्सव का सरकारी गुणगान बज रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अयोध्या में प्रधानमंत्री दीपोत्सव देखने आ रहे हैं।
करोड़ों रुपए के सरकारी तामझाम का दीपोत्सव दुनिया के पर्यटकों को आमंत्रित करने की मुद्रा में है तो दूसरी तरफ चिराग तले अंधेरा के बीच अयोध्यावासी अपने राम पंडित की नगरी में मस्त हैं।
बुद्ध की जातक कथाओं में प्रभु राम को पंडित कहा गया है। सोशल मीडिया पर भी राम नगरी के युवा अयोध्या की महिमा को गढ़ रहे हैं।
जिस राम की पैड़ी पर दीपोत्सव का आयोजन हो रहा है वह स्वंय भगवान ने स्थापित किया था। पौणारिक कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मण जी सभी तीर्थ का भ्रमण करने जाना चाहते थे तब भगवान श्री राम ने यह कह कर राम की पैड़ी की स्थापना की और आदेश दिया की संध्या के समय सभी तीर्थ स्वयं यहाँ स्नान करने उपस्थित होंगे और उस अवधि में जो भी इसमें स्नान करेगा उसे सभी तीर्थों के समान ही पुण्य की प्राप्ति होगी।
प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या, जहां जन्म लेने को देवता भी लालायित रहते हैं। पिछले तीन दशक से हिंदुस्तान के सियासत की धुरी अयोध्या को विश्व की सबसे खूबसूरत नगरी बनाने का सपना संजो रखा है गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने। सपना, हकीकत की ओर बढ़ चला है।
विवादों से दूर अयोध्या के तमाम नौजवान रामनगरी को किस नजर से देखते हैं, अयोध्या की आबोहवा को कैसे महसूस करते हैं, मंदिरों की घंटियों और कल-कल निनाद करती सरयू के जल को अमृत समझते हैं।
बनारसी आवेश तिवारी लिखते हैं कि अयोध्या की गलियों से जब आप गुजरेंगे तो ।मुमकिन है आप कहेंगे यह कोई ऐसी जगह है जिसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने यह सोचकर सबसे छिपाकर रखा होगा कि इस पर कभी किसी की निगाह न पड़े। आज भी यह शहर दो चार हजार साल पहले कही टिका हुआ है।
भले लोग,अदभुत शांति,पतली सड़कें,घरों के आगे लंबे बारजे, राजा का महल, महल के सामने लगा गंवई बाजार,पुरानी इमारतों के अवशेष। अयोध्या में हर गली,हर मोड़ पर एक मंदिर है और हर इंसान राम का भक्त,लेकिन इन सबके बीच अब एक भगवा रंग उग आया है ,मुमकिन है आप अयोध्या आयें और आपको लगे कि किसी चुनाव क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं जहां भाजपा के अलावा किसी का भी प्रवेश वर्जित है।
हमारे राम तो जंगलों में बसते थे कहीं सो जाएं कुछ भी खा ले, हम इंसानों ने अपने राम को कैद करने की ठान ली है। मुझे डर है राम इस शोर से डरकर अयोध्या छोड़ न चले जाएं।
रामनगरी के हर पहलू को सकारात्मकता के साथ दिखाने बताने के लिए सोशल मीडिया पर कई ग्रुप सक्रिय हैं। उसमें से एक है अयोध्या वासी. फेसबुक के पेज पर जाइए तो बिना रामनगरी आए योगी की अयोध्या देख सकते हैं। अयोध्यावासी लिखते हैं कि हम अयोध्या वाले अपने मन के मालिक लोग हैं।
हमको सुपरमार्केट नहीं चाहिए गुरु, हम चौक से मेवा और मसाला लेंगे। नवीन मंडी से सब्जी लेंगे। हमको एसी की ठंडक भी नहीं चाहिए गुरु, हमको मिटटी की महक पसंद है। हम खुल्ला चावल और गेहूं लेंगे और साफ़ करके ड्रम में रखेंगे। हमको कोहिनूर बासमती और शक्तिभोग भी नहीं चाहिए।
हमें गोलगप्पे, चाट और समोसा खाना है तो महावीर की टिकिया, प्रहलाद की टिकिया, राम जी का समोसा चौक की कचौड़ी,परम की मिठाई, अयोध्या की कुल्हड़ वाली दही जलेबी, आश्रम की चाय, नियावा का छोला भटूरा, गणेश के यहाँ का समोसा चाहिए. आप घुमने सी बीच पे जाओ, अपनी लाईफ को किसी नाईट क्लब में एन्जाॅय करो, हमारी दुनिया तो गुप्तारघाट पे ही मस्त है और नयाघाट और रामकी पैड़ी से ज्यादा शुकून क्या कुछ और देगा हमको।
यहाँ हर मोड़ और हर चाय की दूकान पे राजनीतिक विशेषज्ञ है जो किसी भी मुद्दे पे जोरदार राय और परिणाम तक पंहुचा सकते हैं। सब यहाँ मालिक हैं। गाली को यहाँ मजाक के तौर पे लेते हैं।
यहाँ आपको असली समाजवाद देखने को मिलेगा। यहाँ 20 साल के लड़के का आपको 65 साल के जिंदादिल से दोस्ती दिख जाएगी वो भी लंगोटी वाली यारी। होली और ईद, क्रिसमस और खिचड़ी सब एक मौज में मनाई जाती है। जी सही कहा आपने मैं कही भी रहूँगा अयोध्यवासी ही रहूँगा।
इसको पसंद करने वाले हर इंसान के दिल में कम या ज्यादा अयोध्यवासी वाला नखरा जरुर है। हम अयोध्या के गुरुर के शिकार हैं दिल में दिल में अयोध्या लिए फिरते हैं।
अयोध्या के मंदिरों में बजती हुई घंटियों का सुकून देने वाला शोर सच में अद्दभुत होता। जहाँ लोगो की सुबह की नींद घड़ियों के अलार्म की जगह मंदिरों के घंटों से खुलती हो, जहाँ रात को सोते समय लोगो के कान में लोरियां नही आरती की घंटियां गूँजती हो।
ऐसी है मेरी अयोध्या. मेरी अयोध्या के आगे तो स्वर्ग भी फीका है. जुबान पर मेरे श्रीराम, माथे पर तिलक है। दुनियां न जाने किसे इश्क़ लिखती हैं हर दफा मैंने अयोध्या को इश्क़ लिखा हैं। जिंदगी भी हैं कभी नयाघाट तो कभी राम की पैड़ी जैसी इसे हर रंग में जिया जाय मैंने इस जिंदगी को जीना अपने अयोध्या से सीखा हैं।
सरयू जी के किनारे ठहरे हुए नावों पर बैठकर शाम डूबते सूरज को देखना भी मोक्ष पाने जैसा ही है। मैं जीना चाहता हूं अयोध्या की खूबसूरत सुबह,एक ऐसी सुबह जिसमें गुनगुनाती धूप हो और अल्हड सी ठंडी ठंडी बहती हवा। अयोध्या आपको पहले दिन पसंद नही आएगा, पहले दिन बड़े शहर पसंद आते हैं।
मैं मुसाफिर होना चाहता हूं अयोध्या के घाटो का और डूब जाना चाहता हूं सरयू मैया की लहरों में ,मैं जीना चाहता हूं खुद के भीतर अयोध्या को समेटे हुए।
एक कुल्लड़ भर चाय के लिए बैठना चाहता हूं घाट की सीढ़ियों पर और देखना चाहता हूं सरयू की लहरों पर कूदते नावों को, देखना चाहता हूं सूरज को उगते हुए सरयू के किनारे दूर कही क्षीतिज में , मैं देखना चाहता हूँ सूरज की किरणों को निर्मल सरयू में बहते हुए।
मैं महसूस करना चाहता हूँ अयोध्या की सुबह अल्हड़ सी, वैरागी सी हवा को , मंदिर में बजते घंटियों को. हाँ मैं जीना चाहता हूं अयोध्या की एक ऐसी खूबसूरत सुबह खुद के भीतर अयोध्या को समेटे हुए। बात अयोध्या कि हो तो इसे शब्दों में व्यक्त करना मूर्खता है। इसके लिए तो यहाँ आना पड़ता है।
अयोध्या को जीना पड़ता है। आने के बाद अगर सड़क पे चौराहों के भीड़ में ऑटो ,बाईक, रिक्शों की पें-पे ट्रिन-ट्रिन, चें-चें भरी कानों को चुभने वाली आवाजों के पीछे झाँक कर अगर सुन सकोगे तो जान सकोगे की अयोध्या क्या है। यहाँ की गलियों में राम की धुन जो सुन सकोगे तो जान सकोगे की अयोध्या क्या है।
जब जीवन और मृत्यु दोनो संस्कार एक उल्लास से होते देख जीवन का दर्शन जान सकोगे तो जान सकोगे की अयोध्या क्या है। यहाँ कि मंदिर कि घंटियों में जीवन का सार है। यहाँ कि घाटों पर बैठ के अनपढ़ भी शंकराचार्य बन जाता है। जर्रे जर्रे से राम कि ध्वनि आती है।
श्री राम यानि मंगल ,सर्वे भवन्तु सुखिनः, सब सुखी हो, हर आरती के बाद ,हर ख़ुशी के बाद यहाँ लोग हाथ उठा के बोलते है “धर्म कि जय हो अधर्म का विनाश हो प्राणियों में सद्भावना हो विश्व का कल्याण हो। कैसी भावना है वसुधैव कुटुंबकम कि अपनी नहीं ,परिवार कि नहीं ,विश्व का कल्याण हो।
ये है अयोध्या है , इसकी आत्मा इसकी पहचान है. यहाँ के घाट ,यहाँ कि गलियाँ ,यहाँ के मंदिर यहाँ का दर्शन यहाँ के लोग, बड़े बड़े लोग यहाँ आ के अपनी विद्वत्ता भूल कर यही रम जाते है। बेशक हर शहर की तरह यहाँ कुछ कमियाँ है पर इसके लिए यहाँ के चाहने वालों को ही सोचना पड़ेगा ,आगे आना पड़ेगा, पर साथ इसकी अस्मिता का ध्यान भी रखना पड़ेगा। जय श्रीराम हमेशा गूंजता रहे, घंटियों का निनाद ना रुके। सरयू मैया की लहरे यूँ ही अनवरत चले, वो प्रेम ना कही गुम हो जाए, वो तहज़ीब ना कहीं गुम हो जाए बस इतना ही।
मैं तो यही चाहता हूँ कि अंतिम श्वांस अयोध्या में निकले. सरयू मैया आंखों के सामने हो, कानो में घंटियों कि आवाज के साथ जय श्रीराम कि आवाज आये। उछलती लहरों की आवाजें, सीढ़ियों की बोली, घंटियों की शोर से गूंजता दिल। अयोध्या फ़ैज़ाबाद इश्क न होकर कुछ और है।
अयोध्या वैराग्य है, हवाओं की गंध में लाशों की चिरांध और आरती की महक. उफ्फफ, अयोध्या इश्क न होकर अघोर है। कहते हैं कि दुनिया से मिलना हो बड़े शहर जाइए, और खुद से मिलना हो तो अयोध्या आइए। कोटि कल्प काशी बसै, मथुरा कल्प हजार l एक निमिस सरजू बसै, तुलै न तुलसीदास बंदरो और अयोध्या का एक अजीब सा नाता है, इसके बगैर अयोध्या पूरी अधूरी लगती है।
क्योंकि ये ज़िन्दगी अयोध्या की गलियों में खो कर और भी ज्यादा खूबसूरत लगने लगती है। अयोध्या जहां जीना तो खूबसूरत है ही, मगर मरना उसे कही ज्यादा खूबसूरत है।