सुरेंद्र दुबे
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भगवान रामलला को अपनी जमीन मिल गई है। पर राजनैतिक दलों की जमीन खिसक गई है। दशकों से भगवान राम के नाम पर राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी अब इस उधेड़बुन में लगी हुई है कि मंदिर के नाम पर मजबूत हुई भारतीय जनता पार्टी की जमीन को मंदिर के ही इर्द-गिर्द कैसे रखा जाए। अगर ये जमीन उनसे खिसक गई तो भाजपा को बहुत बड़ा राजनैतिक नुकसान होगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कांग्रेस, सपा और बसपा सबसे ज्यादा खुश हैं। हालांकि, वे इसका सार्वजनिक रूप से इजहार नहीं करते कि कहीं मुस्लिम समुदाय बिदक न जाए। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर का मुद्दा सुलझा दिया है तो विपक्ष को मस्जिद के नाम पर मुस्लिम समुदाय की हिमायत करने की कोई राजनैतिक मजबूरी नहीं रह गई है। मौलाना भी राम मंदिर निर्माण के लिए प्रस्तावित ट्रस्ट में जगह बनाने की जुगाड़ में लगे हुए हैं। उन्हें ये पता चल गया है कि अब बाबरी मस्जिद के नाम पर राजनीति नहीं हो सकती, इसलिए वे भी शांत हैं।
राम मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया है, पर इसमें सबसे ज्यादा विश्व हिंदू परिषद को नुकसान हुआ है। उसकी अपनी जमीन पूरी तरह लापता है। न तो सुप्रीम कोर्ट ने उनका कहीं जिक्र किया और न हीं भाजपा उनकी चर्चा कर रही है। जबकि राम मंदिर के लिए आंदोलन खड़ा करने में सबसे प्रभावी भूमिका उनकी ही रही है। राम जन्म भूमि न्यास का अस्तित्व ही खत्म हो गया है।
मंदिर के लिए देश-विदेश में आंदोलन करने व चंदा इकट्ठा करने का काम अकेले विश्व हिंदू परिषद ही करती रही है। विश्व हिंदू परिषद की सारी ताकत अब इस बात पर लगी हुई है कि प्रस्तावित ट्रस्ट में कैसे उसकी प्रभावी भूमिका निर्धारित हो, पर इसके आसार बहुत कम नजर आ रहे हैं क्योंकि सरकार ट्रस्ट में हिंदू व मुस्लिम पक्ष के नामी-गरामी संतों व मौलवियों को शामिल कर धर्म निरपेक्ष दिखना चाहती है।
सरकार का धर्म निरपेक्ष दिखने की कवायद कट्टर हिंदुवादी व आरएसएस के लोगों को भा नहीं रही है क्योंकि उनकी तो सारी राजनीति ही कट्टर हिंदुवाद पर ही टिकी हुई है। वे नहीं चाहते कि मंदिर निर्माण के लिए बनने वाली कमेटी ऐसी हो, जिसमें उनकी जमीन ही न दिखाई दे।
विश्व हिंदू परिषद पूर्णत: हिंदुत्व की थ्यौरी पर ही आधारित है। इसलिए अगर पूरा मंदिर धर्म निरपेक्षता के ताने-बाने से बन गया तो फिर विहिप का भविष्य धुंधला जाएगा। वर्षों से कारसेवक पुरम में मंदिर के लिए कारीगरों द्वारा बनाई गई शिलाएं यूं हीं विहिप मंदिर में नहीं लग जाने देगी। वह चाहेगी कि उसके त्याग और बलिदान की भी चर्चा हो।
एक जमाना था जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का दबदबा होता था। भाजपा उसकी राजनैतिक शाखा थी और विश्व हिंदू परिषद उसकी हिंदू वाद का प्रचार-प्रसार करने वाली शाखा थी। यानी भाजपा और विहिप के जरिए आरएसएस अपनी परिकल्पनाओं को आगे बढ़ाती थी। पर अब समय बदल गया है। श्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पांच साल बाद भाजपा सबसे ताकतवर हो गई है।
आरएसएस और विहिप अब उसकी शाखाएं बन कर रह गई हैं। बल्कि सही अर्थों में कहा जाए तो सब कुछ मोदी मय हो गया है। भाजपा का मतलब मोदी हो गया है और आरएसएस, विहिप और भाजपा सब मोदी की छतरी के नीचे फलफूल रहे हैं। उनके बाद एक महत्वपूर्ण छतरी श्री अमित शाह हैं। बाकी सब लोग इन्हीं दोनों की गणेश परिक्रमा तक सिमट गए हैं। ऐसे में विहिप के लिए अपनी जमीन बचाए रखना काफी मुश्किल हो रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भगवान रामलला को छोड़कर सबकी जमीन खिसका दी है। मंदिर के नाम पर वर्षों से आंदोलन कर रहे निर्मोही अखाड़ा को तो सुप्रीम कोर्ट ने सीधे-सीधे जमीन से बेदखल कर दिया। भारतीय जनता पार्टी की सारी राजनैतिक जमीन संकट में पड़ गई है। आरएसएस व विहिप दोनों ही नई जमीन तलाशने में जुट गए हैं। मंदिर-मस्जिद के नाम पर राजनीति करने वाले तमाम मौलानाओं की भी जमीन खिसक गई है। ज्यों-ज्यों श्री रामलला की जमीन पर मंदिर निर्माण का काम आगे बढ़ेगा त्यों-त्यों इन सारी पार्टियों की जमीन का दायरा सिमटता जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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