न्यूज डेस्क
पिछले करीब 70 साल से देश की अदालतों में चल रहे अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की आखिरी दलील की तारीख सामने है। बुधवार यानी आज सुप्रीम कोर्ट में हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से अपनी-अपनी आखिरी दलील रखी जाएगी, जिसके बाद अयोध्या मामले में फैसले की उम्मीद बढ़ जाएगी।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में हिंदू पक्षकार अपनी अंतिम दलील रखेंगे, इसके बाद मुस्लिम पक्ष के वकील को जवाब देने के लिए एक घंटे का समय मिलेगा।
बुधवार को हिंदू पक्ष के वकील सीएस. वैद्यनाथन को बहस के लिए 45 मिनट मिलेंगे, इसके अलावा हिंदू पक्षकारों के अन्य वकीलों को भी इतना ही समय मिलेगा। बाद में मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन को जवाब देने के लिए 1 घंटे का समय मिलेगा।
6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर रोजाना सुनवाई चल रही है। हिंदू पक्ष, मुस्लिम पक्ष लगातार अपनी दलीलें अदालत में रख रहे थे। हिंदू पक्ष के वकीलों की तरफ से ASI की रिपोर्ट, पुराण, ग्रंथ, भावनाओं का हवाला दिया गया, कई बार अदालत में तीखे तर्क भी रखे। वहीं दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष की ओर से भी ASI की रिपोर्ट, मौजूदा स्थिति और इस्लामिक इतिहास का हवाला देकर अदालत का रुख अपनी ओर करने का प्रयास किया।
सर्वोच्च अदालत में इस मामले की आखिरी बहस तो बुधवार को होगी, लेकिन गुरुवार को भी ये मामला चलेगा। गुरुवार को मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर बहस होगी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट आगे की कार्यवाही के बारे में बता सकता है। बीते दिनों सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि वह इस मामले की सुनवाई 18 अक्टूबर से पहले खत्म करना चाहते हैं, क्योंकि बाद में फैसला लिखने के लिए एक महीने तक का वक्त भी चाहिए।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर होने जा रहे हैं, ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि वह इस तारीख से पहले अयोध्या मामले में फैसला सुना सकते हैं।अगर बहस खत्म होती है तो 17 नवंबर तक करीब एक महीना ही बचेगा, ऐसे में इस मामले में फैसले की उम्मीद बढ़ सकती है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा इस मामले की सुनवाई कर रही संविधान पीठ में जस्टिस एस.ए. बोबड़े, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एसए नज़ीर भी शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले इस मामले में मध्यस्थता का रास्ता अपनाने के लिए भी कहा था. इसके लिए अदालत की तरफ से तीन सदस्यों की एक कमेटी का गठन किया गया था, जिसका काम दोनों पक्षों से बात करना था और मामला मध्यस्थता के दमपर सुलझाने की बात थी।
हालांकि, इस पर बात नहीं बन पाई थी जिसके बारे में कमेटी ने अदालत को भी बताया था। इसी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले में रोजाना सुनवाई की बात कही थी, तब से हर हफ्ते पांच दिन इस मसले पर सुनवाई जारी है।
बताते चले कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए। इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी थी।