2023 लोकसभा चुनाव की तैयारी का वर्ष होगा। चुनावी मैनेजमेंट में सबसे आगे भाजपा तैयारियों के रोड मैप में समाज के हर वर्ग का दिल जीतने का तिलिस्म तैयार कर रहा है। सबसे ज्यादा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समाज से दूरियों को कम करने के लक्ष्य पर इस वर्ष काम तेज़ होगा। कोशिश रहेगी कि यहां क़रीब बीस फीसद आबादी वाला अल्पसंख्यक समाज भाजपा के विरुद्ध लामबंद ना हो। मुस्लिम समाज में लोकप्रिय रक्षा मंत्री और लखनऊ के सांसद ये अहम अहम ज़िम्मेदारी निभा सकते हैं।
आधी से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले रामपुर के उप चुनावों में लोकसभा व विधानसभा सीटें जीतने के बाद भाजपा के हौसले बुलंद हैं। हर बूथ की जिम्मेदारी निभाने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं में हर धर्म और हर जाति के वर्कर्स शरीक हों तो कोई वर्ग एकमुश्त भाजपा के खिलाफ लामबंद नहीं हो सकेगा। रामपुर में अक़लियत का विश्वास जीतने की कोशिश की गई थी। पार्टी ज्वाइन करवाकर मुस्लिम वर्कर्स भी बूथ की ताक़त बने थे। ये प्रयोग सफल हुआ। अब आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में इस प्रयोग को वृहद पैमाने पर अमल में लाने के लिए राजनाथ सिंह जैसे कद्दावर नेता आगे आएंगे। पसमांदा समाज को लुभाने की योजना के साथ गैर सियासी मुस्लिम बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों से राजनाथ सिंह संवाद स्थापित करेंगे। लखनऊ से ये कवायद शुरू होगी और हर जिले के दानिशवरों, गणमान्य लोगों से मुलाकातों का सिलसिला शुरू होगा।
शीर्ष पदस्थ सूत्रों के मुताबिक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में दिनेश शर्मा जैसे कई ऐसे नेता भी शामिल होंगे जिनकी मुस्लिम समाज में पकड़ हैं, ये लोग पसमांदा समाज के साथ मुस्लिम बुद्धिजीवियों और अलग-अलग क्षेत्रों की प्रतिष्ठित हस्तियों के बीच भाजपा और मुस्लिम समाज की दूरियों को जानेंगे और उसे खत्म करने या गलतफहमियां दूर करने की कोशिश करेंगे।
भाजपा नेताओं द्वारा केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं में अल्पसंख्यक समाज को बराबर का लाभ मिलने के सच का अहसास कराया जाएगा। इसी सिलसिले में अधिक से अधिक मुस्लिम समाज के लोगों की ज्वाइनिंग का भी लक्ष्य रखा गया है।आगामी निकाय चुनाव में इस बार अल्पसंख्यक समाज के लोगों को भी टिकट दिया जाएगा। ख़ासकर ऐसी आबादी में जहां भाजपा का जनाधार कम और मुस्लिम आबादी अधिक है ऐसे वार्डों में जिताऊ मुस्लिम उम्मीदवार उतारने के लिए अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ को ज्वाइनिंग करवाने की जिम्मेदारी दी गई है।
स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई के दौर में शिया समुदाय का विश्वास जीतने की कोशिश में भाजपा ने किसी हद तक थोड़ी-बहुत सफलता हासिल की थी। किंतु शिया समुदाय के देश के सबसे बड़े धार्मिक नेता मौलाना कल्बे जव्वाद हर दौर में भाजपा के खिलाफ खड़े रहे किंतु योगी सरकार की नीतियों से प्रभावित होकर वो आज भाजपा को अन्य दलों से बेहतर बताते हैं। विधानसभा चुनाव 2022 से पहले मौलाना ने योगी सरकार की कानून व्यवस्था की तारीफ भी की थी। मौलाना का तर्क है कि साम्प्रदायिक दंगों से मुक्त होने से सबसे अधिक सुकून-इत्मेमान और लाभ अल्पसंख्यक समाज को होता है क्योंकि जब भी फिरकावाराना (साम्प्रदायिक) दंगे होते हैं तब इससे अधिक जान-माल का नुक़सान कम तादाद वाले फिरक़े (अल्पसंख्यक समुदाय) का होता है। मौलाना ये याद दिलाते रहते हैं कि तथाकथित मुस्लिम हमदर्द समाजवादी पार्टी की सरकारों में सबसे अधिक साम्प्रदायिक दंगे हुए और इसमें सबसे ज्यादा जान मार का नुक़सान मुसलमानों का हुआ। जबकि योगी सरकार में मुसलमान सुरक्षित हैं।
शिया समुदाय का विश्वास जीतने की कोशिश के बाद अब सुन्नी समुदाय और ख़ासकर पसमांदा समाज का भरोसा जीतने के लिए भाजपा ने यूपी सरकार में दानिश अंसारी को मंत्री बनाया। अब शिया और सुन्नी समुदाय के भाजपा नेताओं, कार्यकर्ताओं मंत्री दर्जा प्राप्त मंत्रियों सहित अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ को मुसलमानों के समस्त वर्गों की भाजपा से दूरियां कम करने का लक्ष्य दिया है।
फखरुद्दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी के अध्यक्ष (राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त) अतहर सग़ीर ज़ैदी ‘तूरज’ ने उर्दू अदब (साहित्य) की हस्तियों और विभिन्न फिरक़ों के धार्मिक विद्वानों (उलेमा) को क़रीब लाने के लिए नये-नये कार्यक्रमों का सिलसिला जारी रखा है। जिसमें शिया-सुन्नी मुस्लिम स्कॉलर के नाम से स्कालरशिप देने की योजना शुरू हुई है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मीर अनीस और मिर्ज़ा दलबीर जैसी उर्दू अदब की हस्तियों के नाम पर कार्यक्रमों का सिलसिला और इनके नाम व साहित्यिक योगदान पर सेमिनार के आयोजन एवं अवार्ड बांटने के प्रोग्राम रखें हैं। दबीर और अनीस का मर्सिया साहित्य मोहम्मद साहब के नाती इमाम हुसैन की कर्बला की शहादत की त्रासदी पर आधारित है। इसलिए इन कालजयी साहित्यिक दिग्गजों से इमाम हुसैन को शिद्दत से मानने वाले भावनात्मक रूप से जुड़े हैं। और इस तरह के साहित्यिक, सामाजिक और शैक्षणिक कार्यक्रमो के जरिए भाजपाई मुस्लिम आवाम को जोड़ने और उनका दिल जीतने का प्रयास कर रहे हैं।
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राजनीतिक पंडितों का कहना है कि जिस तरह विपक्षी भाजपा के विश्वास से जुड़े ग़ैर यादव पिछड़ी जातियों/ओबीसी समाज की खींचातानी के लिए प्रयासरत हैं। इसके पलटवार में भाजपा यूपी के बीस फीसद मुस्लिम समाज जिसे सपा की एकमुश्त ताक़त समझा जाता है, उसमें सेंध लगाने की खामोश कोशिश कर रही है। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि अल्पसंख्यक समाज का वोट हासिल करने में वो भले ही ज्यादा कामयाब ना हो पर दूरियां कम होने से बीस प्रतिशत आबादी वाले वर्ग का भाजपा के विरुद्ध आक्रामक कठोर जज्बा साॉफ्ट हो सकेगा और एकमुश्त एकजुटता की लामबंदी का खतरा टल सकेगा।
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