केपी सिंह
राजस्थान में राजनीतिक बवंडर जारी है। काफी समय से यह तय माना जा रहा था कि भाजपा राजस्थान में भी काग्रेस की सरकार का तख्ता पलट कराने से नहीं चूकेगी। अग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति का पाठ लगता है कि भाजपा ने बढ़ी तन्मयता से पढ़ा है। दुनिया की सबसे शातिर अमेरिकन खुफिया एजेंसी सीआईए से भी उसने तमाम मक्कारियां और अय्यारियों को बड़े मन से गुना है।
सीआईए किसी देश को अस्थिर करने के लिए वहां के अंतर्विरोधों को खंगालती है और फिर उन्हें बढ़ाकर सही समय पर धावा बोल देती है। काग्रेस में हर राज्य में अंतर्विरोध है। भाजपा का संगठन काग्रेस पार्टी की दुखती रगो पर निगाह रखने में कसर नहीं छोड़ता। चाहे ज्योतिरादित्य सिंधिया हों या सचिन पायलट इन्होंने अचानक बगावत नहीं की। इनका विद्रोह भाजपाई मंथराओं की लम्बी ब्रेनवाश साधना का परिणाम रहा है। काग्रेस का अहंकारी नेतृत्व संवादहीनता के कारण भाजपाई वारों को समय पर निष्फल नहीं कर सका।
कर्नाटक, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में अपने गढ़ बचाने के लिए जब तक कांग्रेस नेतृत्व हरकत में आया तब तक उसका काम तमाम हो चुका था। इसके बाद उसके सामने कारवा गुजर गया गुबार देखते रहे के अलावा कोई चारा नहीं बचा था।
काग्रेस की बदकिस्मती यह है कि इसके बावजूद उसने सबक नहीं सीखा और राजस्थान में उसकी सरकार में सेंध लग जाना इसी का नतीजा है। सोनिया गांधी अपने पुत्र राहुल गांधी को स्थापित करने की कोशिश में चूक पर चूक करती जा रही हैं फिर भी उनका पुत्र मोह समाप्त नहीं हो रहा है। इसी कारण प्रियंका गांधी भाई का लिहाज करते हुए तब तक सक्रिय नहीं हुई जब तक पूरा रायता फैल नहीं गया। प्रियंका गांधी ने तब कोशिश शुरू की जब सचिन पायलट अपने को कही और इंगेज कर चुके थे।
खैर काग्रेस अभी यह खैर मना सकती है कि सचिन पायलट फिलहाल इतने विधायक नहीं जुटा पा रहे कि अशोक गहलोत की सरकार बोल्ड हो जाये। लेकिन भाजपा के आपरेशन के पैटर्न से अब तक सभी लोग परिचित हो चुके हैं।
भाजपा जब मिशन आउट शुरू करती है तो नगद नारायन की गंगा बहा डालती है। माननीयों के जमीर को खरीदने के लिए जितने बोरे खोलने पड़े उसमें कसर नहीं रखी जाती। इसके अलावा मंत्री पद जैसे बोनस की पेशकश अलग से रहती है। मध्य प्रदेश में उसने यही किया। दल बदलुओं को पहले भरपूर नकदी इनाम दिया फिर गैर विधायकों को थोक में मंत्री पद की शपथ कराने का रिकार्ड बनाया।
इस पर सोशल मीडिया और यदाकदा मुख्य धारा की मीडिया में भी भरपूर छींटाकशी हुई लेकिन लोकलाज जैसी दुनियादारी से भाजपा का तपस्वी नेतृत्व कब का परे हो चुका है। यहां तक कि इसके कारण आरिजिनल भाजपाई हकतलफी के एहसास से बिफर रहे हैं। पूर्व सांसद जयभान सिंह पवैया का बुधवार को बयान सामने आया है जिससे इसकी पुष्टि होती है लेकिन भाजपाई नेतृत्व जानता है कि नाराज होकर जाओगे कहा सारे ठौर तो उसने तहस नहस कर डाले हैं।
ऐसा नहीं है कि काग्रेस ने विपक्ष की सरकारों में तोड़ फोड़ के कम खेल खेले हों। लेकिन यह तब हुआ जब लोकतंत्र शैशव अवस्था में था। उस समय सरकारिया आयोग की रिपोर्ट को धता बताई जा सकती थी लेकिन लोकतंत्र जैसे-जैसे मजता गया वैसे-वैसे सर्वसत्तावाद को लेकर जनचेतना मजबूत हुई। इसके बाद कोई दौर ऐसा आ सकता है जब फिर सर्वसत्तावाद फन उठाने लगे इसका अनुमान नहीं किया गया था। यह तो सामाजिक विकास के प्रगतिवाद की स्थापित मान्यता के विरूद्ध है। यह विपर्यास डराने वाला है क्योंकि इससे यह आशंका हो रही है कि देश में लोकतंत्र का गला इतना फलने फूलने के बाद भी आसानी से घोंटा जा सकता है।
अमेरिका में राष्ट्रपति किसी पार्टी का होता है और राज्यों के गवर्नर दूसरे पार्टी के। फिर भी सिस्टम अच्छी तरह चलता रहता है क्योंकि मजबूत लोकतंत्र में सर्वसत्तावाद स्वीकार नहीं किया जा सकता है। सर्वसत्तावाद तो तभी झलक गया था जब काग्रेस मुक्त भारत और कम्युनिष्ट मुक्त भारत जैसे नारे लगाये गये थे।
सर्वसत्तावाद के लक्ष्य के लिए ही नोटबंदी लागू की गई थी ताकि प्रतिद्वंदी पार्टियों को तबाह किया जा सके भले ही इससे देश की अर्थव्यवस्था भी तबाह हो गई हो। राजस्थान में सरकार बचाने के लिए अशोक गहलोत भी रूपयों का जबावी काउंटर इस्तेमाल न कर सकें इसके लिए उनके फाइनेंसरों पर ताबड़ तोड़ छापे इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट ने मार दिये। इसके पहले मध्य प्रदेश में भी मिशन आउट के दौरान कमलनाथ के फाइनेंसरों के यहां छापेमारी कराई गई थी। यह पहली बार है जब इन्कम टैक्स, ईडी आदि आर्थिक अपराध रोकने वाली एजेसियां व्यापक आधार पर कार्रवाईयां करने के बजाय केवल राजनैतिक आधार पर चांदमारी में जुटा दी गई हैं।
उम्मीद यह की गई थी कि आदर्शवादी मुखौटे की पार्टी होने के कारण भाजपा को जब निश्चिंत होकर सरकार चलाने का अवसर मिलेगा तो लोकतंत्र की तमाम कुरीतियों का अंत करने के लिए स्वस्थ्य मान्यताओं और परंपराओं को कायम किया जायेगा। पर परम स्वतंत्र बहुमत मिलने के बाद तो भाजपा लोकतंत्र की जड़ों में मटठा डालने में लग पड़ी है। जो कि उसके पितृ पुरूषों की भी भावनाओं के खिलाफ है। एक ओर भाजपा दावा करती है कि वह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है दूसरी ओर इतना कार्यकर्ता संसाधन मिल जाने पर भी उसे चुनाव जीतने के लिए बेहद खर्चीले इंतजाम की जरूरत पड़ रही है।
विरोधी दलों की सरकारों को धनबल के जोर पर अस्थिर करने का अभियान भी उसका परमानेंट जॉब बन गया है। राजनीति में इतने निवेश के लिए उसके पास थैलियां कहां से आ रही हैं यह अनुसंधान का विषय है। निश्चित रूप से राजनीति के इस तरीके में अभूतपूर्व परिमाण में कालेधन का इस्तेमाल हो रहा है फिर भी भोली भाली जनता यह समझ रही है कि भाजपा की सरकारें पूरी तरह ईमानदार हैं।
शातिर हथकंडों में ही हर समय लीन रहने की वजह से भाजपा नेतृत्व के हाथ से गवर्नेंस के सिरे भी छूटते जा रहे हैं। लोगों के मन में यह बैठा दिया गया है कि हिन्दुत्व ही पर्याप्त है फिर कोई व्यवस्था बचे या न बचे।
अगर हिन्दुत्व अव्यवस्था का पर्याय होता तो रामराज्य की चर्चा की जरूरत क्यों पड़ती। जिसमें भगवान राम खुद राजा थे फिर भी उन्हें चिंता रहती थी कि राजकाज ठीक ढंग से चल रहा या नहीं। यह पता करने के लिए रात की नींद खराब करके भेष बदलकर लोगों के बीच टहलें। इसका अर्थ यह है कि हिन्दुत्व मजबूत गवर्नेंस का दूसरा नाम है जिसकी बलि चढ़ाना हिन्दुत्व के नाम पर फरेब करने के बराबर है।
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