Friday - 25 October 2024 - 9:40 PM

राजा गणपति आर:एक नौजवान आईएएस अफसर की दास्तां

  • चिरागों का अपना मकां नहीं होता,जहां भी होते वे रोशनी करते

यशोदा श्रीवास्तव

हेलो! मैं डीएम बोल रहा हूं। एक हफ्ते पहले आपने अपने जमीन के कब्जे की शिकायत की थी,क्या हुआ,कोई कार्रवाई हुई,मौके पर कोई अफसर गया था,आप संतुष्ट हैं? इस वक्त सिद्धार्थनगर जिले के दूर दराज से डीएम के पास फरियाद लेकर आ रहे लोगों के पास डीएम डाक्टर राजा णपति आर के फोन हर रोज किसी न किसी फरियादी के पास पंहुच रहे हैं।

सिद्धार्थनगर नेपाल सीमा पर स्थति यूपी का एक जिला है जहां के लोग पहली बार किसी आला हाकिम के फोन से अपनी शिकायतों के निस्तारण की स्थिति बता पा रहे हैं।

बतौर डीएम राजा गणपति आर की यह पहली तैनाती है। वे यहां अभी 28 जून को आए हैं।

इसके पहले वे लखनऊ में स्वास्थ महकमें के आला हाकिम थे। डीएम पद पर ज्वाइनिंग के दिन से ही वे लोगों में अंग्रेजों के जमाने की लाट साहबी की डरावनी भावना से मुक्त कर लोकसेवक की अनुभूति कराने की कोशिश में लग गए हैं।

जनता का हित सर्वोपरि की भावना से वे हर रोज अपने दफ्तर में समय से दाखिल होते हैं जहां सौ सवा सौ फरियादियों को सुनते हैं। उनके दरख्वास्त लेते हैं और उसके निस्तारण के लिए संबंधित अधिकारी को लिखते हैं या फोन पर निर्देश देते हैं।

मुमकिन है ऐसा करने वाले यूपी में और भी आला अफसर हों लेकिन राजा गणपति आर औरों से इसलिए अलहदा हैं कि ये न सिर्फ शिकायत कर्ता से फोन पर उसकी समस्या के निस्तारण के बाबत पूछते हैं,जरा भी हीलाहवाली करने वाले संबंधित अधिकारी की भी क्लाश लेते हैं।

डीएम राजा गणपति आर की कार्यशैली का असर जिले के तहसीलों तक पड़ता हुआ दिख रहा है जहां अफसर से लेकर कर्मचारी तक न केवल राइट टाइम हुए हैं,उनमें जनता के प्रति व्यवहार में भी आश्चार्यजनक बदलाव आया है। इस बीच खबर यह भी है कि कामचोर व बिल्कुल ही न सुधरने के संकल्प वाले तमाम अधिनस्थ अपने तबादले की जुगत में लग गए हैं।

अभी कुछ रोज पहले जिला बाढ़ की चपेट में था। जाहिर है ऐसे वक्त में नेता ही खुद को जनता का भगवान सिद्ध करने की होड़ में होते हैं। लेकिन यहां तो डीएम को ही लोग भगवान मान बैठे। उन्होंने लोगों को एहसास कराया कि बाढ़ पिकनिक का नजारा नहीं होता,सेवा और ईमानदारी से राहत का वक्त होता है।

कहना न होगा कि मात्र दो महीने में ही लोग अपने जनप्रतिधियों को भूलकर डीएम के पास जाना ज्यादा आसान मानने लगे हैं। डीएम राजा गणपति आर की अनूठी कार्यशैली से लोगों में भय है कि डीएम साहब को कहीं किसी की नजर न लग जाय! क्योंकि जनता को उलझाकर रखने वाले नेताओं को जरूरतमंदों को फौरी न्याय देने वाले अफसर रास नहीं आते। लक दक खादी के वस्त्रों में लिपटा नेता जहां एसी कमरों में राजा महाराजा की तरह दरबार लगाता है वहीं आईएएस अफसर राजा गणपति आर गरीबों की झोपड़ी में जमीन पर बैठकर उनकी बात सुनते हैं।
कहा गया है कि चिरागों का अपना मकां नहीं होता,वे जहां भी होते रोशनी करते! यह बात राजा गणपति आर पर बिल्कुल फिट बैठती है। अर्थात ऐसा नहीं कि वे सिद्धार्थनगर में बतौर डीएम आए तभी ऐसा करते हैं। इसके पहले वे जहां भी जिस पद पर रहे उसके अनुकूल अपने कर्तव्यों का पालन करते रहे।

प्रयागराज के करछना तहसील में एसडीएम के पद पर अपनी तैनाती के दौरान किए गए उनके कार्य पूरे प्रदेश में नज़ीर के तौर पर देखें जाते रहे। तहसील स्तरीय जितने काम थे सब के सब प्राथमिकता के आधार पर निपटाने में यह तहसील प्रदेश में अग्रणी रहा। जनता इनके कार्यों से इतना खुश थी कि इनके स्थानांतरण की खबर पर सड़कों पर उतर आई और तब तक डटी रही जबतक इनका स्थानांतरण रुक नहीं गया। एक अफसर के प्रति जनता का ऐसा प्रेम उमड़ना भी एक नजीर है।

डीएम राजा गणपति आर कहते हैं कि जनता के हितार्थ सरकार द्वारा इतनी योजनाएं हैं कि यदि उसे ही इमानदारी पूर्वक लागू करवा दिया जाय तो खुशहाली ढूंढने किसी जंगल में जाने की जरूरत ही नहीं। साफ है कि सरकारी योजनाओं को जनता तक पहुंचाना और उसे लागू करना न केवल इस नौजवान अफसर का संकल्प है,वे इसके लिए पूरी निष्ठा से लगे भी रहते हैं।

सोचिए कोई अफसर युवाओं को सड़क किनारे दौड़ता देख कैसे गांव गांव में ओपन जिम और पार्क बनवाए देता है। जी हां! अपने सीडीओ पद की तैनाती के दौरान राजा गणपति आर ने इटावा में ऐसा कर दिखाया। इटावा में अपने 18 महीने की तैनाती के दौरान इन्होंने जिले के ग्रामीण इलाकों का काया कल्प कर दिया। इटावा आज यदि पार्क ओपन जिम,तालाबों का सुंदरीकरण,वृक्षारोपण,सड़क,बिजली पानी सारी सुविधाओं से चकाचक है तो यह निश्चित ही राजा गणपति आर की ही देन है। वे चार साल तक निदेशक प्रशासन शिक्षा व स्वास्थ्य के पद पर भी रहे। इस दौरान उन्होंने यहां इमानदार कार्यशैली को बढ़ावा दिया,स्वास्थ्य निदेशालय को भ्रष्टाचार मुक्त करने का भी भरपूर प्रयास किया‌। इस महकमें में रहते हुए उन्हें कर्मचारी संगठनों के विरोध का भी सामना करना पड़ा लेकिन निर्वाध गति से वे अपना काम करते रहे। सिद्धार्थनगर के डीएम पद पर नियुक्ति के पहले ये और इनकी आईएएस पत्नी जो रीभा लखनऊ में ही तैनात थे। पत्नी जे रीभा अभी भी लखनऊ में ही निदेशक अल्पसंख्यक हैं।

Radio_Prabhat
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