न्यूज डेस्क
पश्चिमी रेलवे ने अपने परिसर में पेस्ट कंट्रोल (चूहा मारने की दवा) के छिड़काव के लिए तीन साल में 1.52 करोड़ रुपए खर्च किए हैं।
यह जानकारी एक आरटीआई आवेदन के जवाब में मिली है। रेलवे ने आरटीआई के जवाब में कहा कि उसने तीन साल में 5,457 चूहों को मारने के लिए 1.52 करोड़ रुपये खर्च किए।
गौरतलब है कि भारतीय रेलवे का सबसे छोटा जोन पश्चिम रेलवे है जो मुख्य तौर पर पश्चिमी भारत से उत्तर भारत को जोडऩे वाली रेलों का संचालन करता है।
रेलवे ने चूहे मारने पर जितना खर्च किया है, अगर इसका औसत निकाला जाए तो रेलवे ने यार्ड और रेल कोच में पेस्ट कंट्रोल छिड़काव के लिए हर रोज 14 हजार रुपये खर्च किए। इस भारी-भरकम खर्च के बाद भी हर रोज केवल पांच चूहे मारे गए।
वहीं पश्चिमी रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी रविंदर भाकर ने कहा कि इस तरह का निष्कर्ष निकालना अनुचित है।
भाकर ने कहा कि कुल खर्च की तुलना मारे गए चूहों से करना अनुचित है। तर्क देते हुए मुख्य जनसंपर्क अधिकारी भाकर कहते हैं कि अगर हम यह देखें कि कुल मिलाकर हमने क्या प्राप्त किया है तो यह आंकड़ा निर्धारित किया नहीं जा सकता है।
फायदों को गिनाते हुए उन्होंने आगे कहा कि इन सभी फायदों में से एक यह भी है कि पिछले दो सालों में पहले के मुकाबले चूहों के तार काट देने की वजह से सिग्नल फेल होने की घटनाओं में कमी आई है।
गौरतलब है कि रेलवे कोच और यार्ड में कीटों और कुतरने वाले जानवरों जैसै चूहों से निपटने के लिए रेलवे विशेषज्ञ एजेंसियों की सेवाएं लेता है। इन एजेंसियों का कार्य रेलवे रोलिंग स्टॉक, स्टेशन परिसर और आसपास के यार्ड में पेस्ट का छिड़काव कर कीटों और चूहों की समस्या का समाधान करना है।
कीटों और चूहों पर बेहतर ढंग से नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न तकनीक अपनाई जाती है, जैसे- चमगादड़, गोंद बोर्ड, कुछ अप्रूव किए गए केमिकल और जाल आदि का इस्तेमाल किया जाता है।
कीटनाशकों का छिड़काव प्रत्येक ट्रेन के लिए निर्धारित शेड्यूल के आधार पर किया जाता है। कीटनाशक के छिड़काव से पहले ट्रेन के हर डिब्बे में पहले ड्राई स्वीपिंग यानी झाड़ू लगाई जाती है। कीटों और चूहों पर केमिकल के ज्यादा प्रभाव के लिए तय समय पर केमिकल में बदलाव किया जाता है।
जब पैंट्री कार में छिड़काव किया जाता है तो इससे पहले प्लेटफॉर्म पर पूरा कोच खाली करा लिया जाता है। जिसके बाद इसकी अच्छे से सफाई की जाती है और पैंट्री कार को 48 साल के लिए सील कर दिया जाता है। इन सब चीजों के लिए समय पहले से ही निर्धारित कर लिया जाता है।
रेलवे को मानना है कि कीटों और चूहों की इस नियंत्रण प्रक्रिया की वजह से उसे अभी तक काफी अच्छे परिणाम मिल रहे है। रेलवे का कहना है कि हाल के वर्षों में कीटों और चूहों की समस्या की वजह से आने वाली यात्री शिकायतों में लगातार कमी आ रही है। इसके अलावा संपत्ति को नुकसान से बचाने में भी सफलता मिली है।
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