- अब नहीं होंगे ‘गुप्त संदेशवाहक’
जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी के बीच रेलवे ने अपनी 160 साल पुरानी परंपरा को खत्म कर दिया है। रेलवे ने यह कदम खर्चों में कटौती करने के लिए किया है।
भारतीय रेलवे की एक पुरानी परंपरा ‘पर्सनल और डाक मैसेंजर’ के लिए कोरोना महामारी घातक साबित हुई है। कोरोना की वजह से रेलवे को काफी नुकसान हुआ है। रेलवे ने अपने खर्चों में कटौती के लिए अधिकारियों से कहा है कि वह इन संदेशवाहकों का इस्तेमाल बंद कर दें।
निजी और डाक संदेशवाहकों की यह परंपरा अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही थी। रेलवे बोर्ड ने अब अधिकारियों को संदेशवाहकों के बजाय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए आपस में बातचीत करने की सलाह दी है।
कोरोना महामारी रोकने के लिए हुई तालाबंदी से रेलवे को भारी नुकसान हुआ है। कोरोना संकट के चलते रेल सेवाएं बुरी तरह बाधित हुई हैं। यही वजह है कि रेलवे का राजस्व घटकर मई माह में 58 फीसदी रहा।
रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि इन संदेशवाहकों के भत्ते और उनकी सैलरी रेलवे के बजट पर काफी असर डाल रहे थे। 26 जुलाई के एक पत्र में रेलवे बोर्ड ने कहा कि ‘लागत को कम करने और खर्चों को घटाने के तहत बोर्ड की इच्छा है कि रेलवे के सभी अधिकारी, पब्लिक यूनिट्स और रेलवे बोर्ड वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बातचीत करेंगे। इसके अनुसार, निजी और डाक संदेशवाहकों की बुकिंग को तुरंत बंद किया जाना चाहिए।’
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डाक और निजी संदेशवाहक अहम संदेशों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाते थे। ये संदेशवाहक रेलवे के ‘गुप्त’ और ‘संवेदनशील’ संदेशों को एक विभाग से दूसरे विभाग ले जाते थे।
वहीं रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि तकनीक के विकास के साथ ही औपनिवेशिक काल के इस सिस्टम का गलत इस्तेमाल किया जा रहा था। कई बार अधिकारियों द्वारा इन संदेशवाहकों का अपने निजी काम के लिए इस्तेमाल किया जाता था। यही वजह है कि बीते एक दशक से इस व्यवस्था को बंद करने की कोशिशें चल रहीं थी।
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